भारत ने रीजनल कॉम्प्रेहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल होने से इनकार बिल्कुल अंत में किया। प्रधानमंत्री का कहना है कि भारत की चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रीजनल कॉम्प्रेहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल होने से इनकार कर सबको चौंका दिया है। इस मुद्दे पर पिछले 5 साल से बहुपक्षीय बातचीत चल रही थी, कई दौर की बैठक हो चुकी थी और 16 में से 5 चैप्टर पर तो बातचीत पूरी भी हो चुकी थी। ज़्यादातर मामलों पर भारत ने रज़ामंदी दे दी थी और ऐसा लगने लगा था कि भारत इसमें शामिल हो जाएगा।
क्या है आरसीईपी
भारत जुड़ गया होता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र होता। साल 2017 के एक अध्ययन के अनुसार, आरसीईपी में कुल 3.4 अरब लोग हैं और उनकी अर्थव्यवस्थाओं का कुल नेटवर्थ 49.5 खरब डॉलर था। यह दुनिया की कुल जीडीपी का 39 प्रतिशत था।
चौंकाने वाला फ़ैसला
प्रधानमंत्री के एलान करने के बाद लोग इसलिए चौंके क्योंकि इसमें शामिल नहीं होने का फ़ैसला बहुत देर से आया था और बिल्कुल यकायक हुआ था। भारत ने यह संकेत दे रखा था कि वह इसमें शामिल होने जा रहा है।
लेकिन इसके पहले आसियान और भारत के बीच पिछले 5 साल से बातचीत चल रही थी, 24 दौर की बातचीत हो चुकी थी, मंत्री स्तर की बातचीत 13 बार हो चुकी थी, 16 में से 7 चैप्टर पर बातचीत पूरी हो गई थी। फिर क्या हो गया?
भारत सरकार ने पिछले साल दिसंबर में आरसईपी के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए तीन सलाहकार नियुक्त किए थे। इंडियन कौंसिल ऑफ़ रीसर्च फ़ॉर इकोनॉमिक रिलेशन्स, सेंटर फ़ॉर रीज़नल ट्रेड और आईआईएम बंगलुरू की प्रोफ़ेसर रूपा चंद।
इन तीनों सलाहकारों के साथ उद्योग और व्यापार जगत के प्रतिनिधियों की एक बैठक 26 दिसंबर को लखनऊ में हुई थी। समझा जाता है कि इस बैठक में इन लोगों ने व्यापार, सेवा और निवेश, इन तीनों ही मामलों में घनघोर आपत्ति जताई थी और ज़ोर देकर कहा था कि इससे भारत को नुक़सान होगा।
मुक्त व्यापार क्षेत्र
यदि भारत आरसीईपी में शामिल हो गया तो अगले 20 साल तक लगभग 80 प्रतिशत उत्पादों के मामले में यह पूरी तरह मुक्त क्षेत्र हो जाएगा, यानी, कोई कर नहीं लगेगा। कुछ उत्पादों पर ही भारत सीमा शुल्क लगा सकेगा।
व्यापार असंतुलन
इसकी वजह समझने के लिए आसियान और भारत के बीच के व्यापार असंतुलन पर ध्यान देते हैं। साल 2017-18 में आशियान के 10 देशों से भारत ने 47 अरब डॉलर का आयात किया था, 33.8 अरब डॉलर का निर्यात किया था, कुल 80.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। कुल मिला कर 13.3 अरब डॉलर का ट्रेड गैप यानी आयात-निर्यात में अंतर रह गया था।
इसके अलावा दक्षिण कोरिया के साथ 11.9 अरब डॉलर, जापान से 6.2 अरब डॉलर, ऑस्ट्रेलिया से 10.2 अरब डॉलर और सबसे कम न्यीज़ीलैंड से 29 करोड़ डॉलर का ट्रे़ड गैप था।
लेकिन सबसे ज़्यादा बड़ा ट्रेड गैप चीन के साथ था। साल 2017-18 में भारत-चीन दोतरफा व्यापार 89.4 अरब डॉलर था। इसमें भारत ने 73.30 अरब डॉलर का आयात, 13.1 अरब डॉलर का निर्यात किया था। कुल मिला कर 63.10 अरब डॉलर का ट्रेड गैप रह गया था।
आरसीईपी के 15 देशों के साथ भारत का आयात-निर्यात अंतर कुल मिला कर 105 अरब डॉलर का है। इसमें भारत ने सिर्फ़ 60.20 अरब डॉलर का निर्यात किया था, लेकिन 165.20 अरब डॉलर का निर्यात किया था। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यद भारत आरसीईपी में शामिल हो जाता तो यह ट्रेड-गैप और ज़्यादा बढ़ता।
इसके अलावा भारत की कुछ दूसरी चिंताएँ भी हैं। इन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इससे भारत का नाराज़ होना स्वाभाविक है।
देश की आर्थिक स्थिति बेहद बुरी है और इसे सरकारी एजेन्सियाँ भी मान रही है। सरकारी एजेन्सियों के आँकड़ों के मुताबिक, जीडीपी वृद्धि दर, आयात-निर्यात, खपत, माँग, उत्पादन, निवेश सबकुछ गिर रहा है। ऐसे में आरसीईपी में शामिल होने से बचा खुचा भी चौपट हो जाएगा।