टाटा समूह के भीतर चल रहा विवाद अब केंद्र सरकार तक पहुँच गया है। कंपनी प्रबंधन और बोर्ड में मतभेदों पर गृहमंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कंपनी के नेतृत्व से क्या कहा?
भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा समूह के भीतर अस्थिरता की ख़बरें सामने आई हैं। यह उथल-पुथल इतनी है कि मामला केंद्र सरकार तक पहुँच गया। द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन, टाटा सन्स के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा के साथ बैठक की। सरकार ने टाटा ट्रस्ट के नेतृत्व को निर्देश दिया है कि वे आंतरिक मतभेदों को सुलझाकर टाटा ट्रस्ट और टाटा सन्स में स्थिरता बहाल करें। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी में यह तनाव टाटा ट्रस्ट के चार ट्रस्टियों के एक समूह से पैदा हुआ है, जिनपर कथित तौर पर 'सुपर बोर्ड' के रूप में कार्य करने का आरोप है और इससे चेयरमैन नोएल टाटा के अधिकार को चुनौती मिल रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, एन चंद्रशेखरन और डेरियस खंबाटा के साथ लगभग एक घंटे की बैठक की। इस बैठक में मंत्रियों ने साफ़ संदेश दिया कि किसी भी तरह से स्थिरता बहाल की जानी चाहिए और आंतरिक मतभेदों का टाटा सन्स के संचालन पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रियों ने टाटा समूह के नेतृत्व को सुझाव दिया कि वे निर्णायक क़दम उठाएँ, जिसमें उन ट्रस्टियों को हटाने की संभावना भी शामिल है, जिनके कार्य समूह की स्थिरता को ख़तरे में डाल सकते हैं।
ट्रस्टियों में आंतरिक कलह?
सीएनबीसी-टीवी18 ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि सरकार टाटा ट्रस्ट के चार ट्रस्टियों द्वारा 'तख्तापलट की कोशिश' को चुपचाप नहीं देख सकती। रिपोर्ट के अनुसार, इन ट्रस्टियों में डेरियस खंबाटा, जे.एच.सी. जहांगीर, प्रमीत झवेरी और मेहली मिस्त्री शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि इन ट्रस्टियों ने टाटा सन्स की गवर्नेंस में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है, जिसमें बोर्ड मीटिंग के मिनट्स की जांच और कंपनी की नामांकन और पारिश्रमिक समिति द्वारा चुने गए स्वतंत्र निदेशकों को मंजूरी देना शामिल है। इन क़दमों को 'गंभीर कॉरपोरेट गवर्नेंस चिंताओं' के रूप में देखा जा रहा है।
रिपोर्टों के मुताबिक़, रतन टाटा के निधन के बाद से टाटा ट्रस्ट में आंतरिक विभाजन गहरा गया है। हाल के महीनों में यह मतभेद और साफ़ हो गया है, जिसमें दोराबजी टाटा ट्रस्ट के चार ट्रस्टी एक तरफ़ और नोएल टाटा सहित तीन अन्य ट्रस्टी दूसरी तरफ़ खड़े हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार 77 वर्षीय पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस बोर्ड में नामित निदेशक के रूप में पुनर्नियुक्ति पर विचार करने के लिए 11 सितंबर को हुई बोर्ड बैठक में यह मतभेद उभरकर सामने आया। दरअसल, अक्टूबर 2024 में रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ट्रस्ट ने एक नीति लागू की जिसके तहत टाटा संस के नामित निदेशकों की 75 वर्ष की आयु पूरी होने पर वार्षिक पुनर्नियुक्ति की जानी थी। इसके अनुसार, ट्रस्ट के अध्यक्ष नोएल टाटा और ट्रस्टी वेणु श्रीनिवासन ने विस्तार का प्रस्ताव रखा। लेकिन मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहाँगीर एच.सी. जहाँगीर और डेरियस खंबाटा ने इसका विरोध किया, जिसके कारण प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया।
इसके बाद एक नाटकीय मोड़ आया। इसके बाद बड़े ट्रस्टी समूह ने मिस्त्री को नामित करने का प्रयास किया, लेकिन टाटा और श्रीनिवासन ने 'ना' कह दिया। यह सब ऐसी अफवाहों के बीच हो रहा है कि मिस्त्री और उनके चार ट्रस्टियों का गुट नोएल टाटा को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें 11 अक्टूबर को रतन टाटा के निधन के बाद चेयरमैन बनाया गया था। इस पूरे हंगामे के बीच, टाटा के वफ़ादार माने जाने वाले विजय सिंह ने बोर्ड से इस्तीफ़ा दे दिया। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए ट्रस्टियों की गुरुवार को फिर से बैठक होनी है। हालाँकि अभी तक कोई औपचारिक एजेंडा जारी नहीं किया गया है।
बाजार की नजर
टाटा सन्स में लगभग 66% हिस्सेदारी रखने वाले टाटा ट्रस्ट में गवर्नेंस से जुड़े मुद्दों ने सरकार और बाजार का ध्यान आकर्षित किया है। सरकार ने कथित तौर पर सख्त रुख अपनाया है और वह उम्मीद करती है कि ट्रस्ट्स अपने मतभेदों को आंतरिक और गोपनीय तरीके से सुलझाएंगे, ताकि कोई सार्वजनिक टकराव या स्थिति और न बिगड़े।
टाटा समूह भारत के औद्योगिक क्षेत्र में एक अहम स्थान रखता है। समूह के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है। सरकार का हस्तक्षेप और ट्रस्टियों के बीच कथित मतभेद समूह की गवर्नेंस और भविष्य की दिशा पर सवाल उठा रहे हैं। टाटा नेतृत्व से अपेक्षा की जा रही है कि वह जल्द से जल्द स्थिरता बहाल करे और समूह की विरासत को बनाए रखे।