अमेरिका और यूरोप द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों के बाद भारत अपनी सबसे बड़ी आपूर्ति रूस से कच्चे तेल के आयात को तेजी से कम करने की तैयारी में है। रॉयटर्स की गुरुवार को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देश के प्रमुख निजी खरीदार रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने मॉस्को से कच्चे तेल के आयात को काफी हद तक कम करने या पूरी तरह रोकने की योजना बनाई है। सरकारी रिफाइनर भी अपनी खरीद योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब ट्रंप ने दावा किया है कि भारत इस साल तक पूरी तरह रूसी तेल आयात बंद कर देगा।

रिपोर्ट के अनुसार यह निर्णय यूक्रेन संघर्ष के कारण अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा रूसी ऊर्जा कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर लगाए गए अतिरिक्त प्रतिबंधों के बाद आया है। ब्रिटेन ने पिछले हफ्ते इन दोनों रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे, जबकि यूरोपीय संघ ने 19वें दौर के प्रतिबंधों को मंजूरी दी, जिसमें रूसी तरलीकृत प्राकृतिक गैस यानी एलएनजी के आयात पर प्रतिबंध शामिल है। अमेरिकी ट्रेजरी ने कंपनियों को 21 नवंबर तक रोसनेफ्ट और लुकोइल के साथ लेनदेन समाप्त करने का समय दिया है।
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भारत की रूसी तेल खरीद की स्थिति

2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी खरीदारों द्वारा रूसी तेल खरीद कम करने से भारत ने छूट वाले रूसी कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया। इस वर्ष के पहले नौ महीनों में भारत ने प्रतिदिन लगभग 17 लाख बैरल रूसी कच्चा तेल आयात किया। 2022 से रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक रहे रिलायंस इंडस्ट्रीज अब सरकारी नीति दिशानिर्देशों के अनुरूप अपनी खरीद पैटर्न को समायोजित करने की योजना बना रहा है। रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि पश्चिमी प्रतिबंधों की सूची बढ़ने के कारण रिलायंस तेजी से कटौती करने जा रहा है।

इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन यानी आईओसी, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी बीपीसीएल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी एचपीसीएल और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड जैसे सरकारी रिफाइनर अपनी रूसी तेल खरीद की समीक्षा कर रहे हैं ताकि रोसनेफ्ट या लुकोइल से सीधे कोई आपूर्ति न हो। 

रायटर्स की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यह एक बड़ी कटौती होगी। हालांकि, कुछ कार्गो पहले से रास्ते में हैं और 21 नवंबर से पहले पहुंच जाएंगे, इसलिए आयात तुरंत शून्य नहीं होगा।

अमेरिकी दबाव!

यह बदलाव तब हो रहा है जब भारत को अमेरिकी निर्यात पर 50% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें आधे टैरिफ रूसी तेल खरीद के जवाब में लगाए गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के साथ एक संभावित व्यापार समझौते की बातचीत में रूसी तेल आयात को एक प्रमुख बाधा बताया है। अब ट्रंप ने कहा है कि भारत वर्ष के अंत तक रूसी तेल आयात को लगभग शून्य कर देगा। ट्रंप ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत का जिक्र करते हुए कहा था, 'भारत ने शानदार काम किया है।'

नए प्रतिबंध ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रूस के खिलाफ पहला प्रमुख कदम हैं, जो व्लादिमीर पुतिन के प्रति उनकी बढ़ती नाराजगी को दिखाते हैं। ये प्रतिबंध रूसी तेल निर्यात को रोकने और मॉस्को पर वित्तीय दबाव बनाने के लिए हैं। 
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तेल कीमतों में उछाल

भारत की रूसी तेल आयात समीक्षा की खबरों के बीच गुरुवार को तेल कीमतों में लगभग 3% की तेजी दर्ज की गई। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स में 1.94 डॉलर या 3.1% की बढ़ोतरी हुई, जो प्रति बैरल 64.53 डॉलर पर पहुंच गया। अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट यानी डब्ल्यूटीआई क्रूड में 1.89 डॉलर या 3.2% की वृद्धि हुई, जो 60.39 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ। जानकारों का कहना है कि यह उछाल कड़े प्रतिबंधों और रूसी निर्यात में कमी की आशंका के कारण है, जो वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित कर सकता है। यदि भारत अमेरिकी दबाव में रूसी तेल खरीद कम करता है तो एशियाई मांग अमेरिकी क्रूड की ओर मुड़ सकती है, जिससे कीमतें बढ़ेंगी।

भारतीय रिफाइनर क्या करेंगे?

रॉयटर्स के अनुसार सरकारी रिफाइनर अपनी आपूर्ति व्यवस्थाओं की समीक्षा कर रहे हैं ताकि रोसनेफ्ट या लुकोइल से कोई सीधी खेप न आए। सरकारी रिफाइनर आमतौर पर मध्यस्थों के माध्यम से रूसी तेल खरीदते रहे हैं। सीधे रोसनेफ्ट से सौदा करने वाला निजी रिफाइनर रिलायंस अब मध्य पूर्व और अफ्रीका के वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख कर सकता है। पिछले दो वर्षों में रूसी कच्चे तेल के सस्ते दामों ने भारतीय रिफाइनरों को फायदा पहुँचाया था, लेकिन अब अमेरिकी दबाव बढ़ रहा है।