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स्तब्ध हैं कश्मीर के लोग, फ़िजा बदली हुई है, ऐसा कभी नहीं था

जम्मू-कश्मीर में पहले भी कर्फ़्यू लगा है, सुरक्षा बलों की गश्त पहले भी हुई है, पुलिस ने पहले भी तलाशी ली है, इंटरनेट कनेक्शन और फ़ोन लाइन पहले भी निष्क्रिय किए गए हैं। पर इस बार की बात कुछ और है। क्या है वह बात? इस बार लोगों की आँखों में गहरी निराशा है, हताशा है, कुंठा है और है पराजय की भावना! ये चीजें आज की कश्मीर घाटी को पहले से अलग करती हैं। यह निराशा, हताशा और कुंठा पहले कभी नहीं देखी गई थी।  
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर मुज़ामिल जलील, बशारत मसूद और आदिल अख़ज़र ने कश्मीर घाटी के अलग-अलग जगहों पर घूम कर लोगों की आंखों में पसरी इस बेबसी को पढ़ने की कोशिश की। उनकी रिपोर्ट पढ़ने से साफ़ लगता है कि इस बार की बात कुछ और है, इस बार जो हुआ है, कभी पहले नहीं हुआ था। 
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आँखों में तूफान!

क्या हुआ इस बार? इस बार केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 में महत्वपूर्ण बदलाव कर जम्मू-कश्मीर को मिल रहे विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया। अब यह दो टुकड़ों में बँट जाएगा और दोनों ही केंद्र शासित क्षेत्र हो जाएंगे। तो क्या हुआ? यह तो अस्थायी प्रावधान था, जो एक न एक दिन ख़त्म होना ही था, सत्तारूढ़ दल का तो यही तर्क है। 
क्या हुआ, इसे समझने के लिए श्रीनगर में रहने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक स्थानीय नेता से अख़बार ने बात की। उन्होंने हालिया फ़ैसले को बहुत बड़ा आघात क़रार दिया। 
उन्होंने कहा, 'यह बहुत बड़ा आघात है। इस एकतरफा फ़ैसले पर प्रतिक्रिया होगी, 1846 के अमृतसर समझौते के बाद लोगों के अधिकार छीनने का सबसे बड़ा कदम है, उस समझौते के तहत कश्मीरियों की ज़मीन, उनका पानी, आसमान सब कुछ बेच दिया गया था।'

दुनिया से कटे हुए

घाटी को बाहरी दुनिया से काट दिया गया है. इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल फ़ोन, लैंडलाइन फ़ोन, केबल टीवी, सब कुछ ठप कर दिया गया है। लोगों को अपने पास पड़ोस के लोगों से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। प्रशासन ने अपन कर्मचारियों और सुरक्षा बल के लोगों को भी कर्फ़्यू पास नहीं दिया है, सरकारी पहचान पत्र को स्वीकार नहीं किया जा रहा है। 
सड़कों पर बैरिकेड लगे हैं, कंटीले तार लगा दिए गए हैं, सभी चौक चौराहे पर जवान मुस्तैद हैं। श्रीनगर में एक ही सड़क पर थोड़ी बहुत छूट है, यह वह सड़क है जो हवाई अड्डे से जवाहर नगर को जोड़ती है। प्रेस को हर कोई नापसंद करता है, स्थानीय लोग भी और सुरक्षा बल वाले भी। जहाँगीर चौक पर एक पत्रकार ने कर्फ़्यू का वीडियो बनाने की कोशिश की तो वहाँ तैनात पुलिस अफ़सर ने उसे पीट दिया।

बिफरे हुए लोग

ज़्यादातर सरकारी मकान, स्कूल-कॉलेज, अदालत, सुरक्षा बल वालों के कब्जे में हैं, वे वहाँ रह रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने स्थानीय लोगों से बात कर उनके मन की थाह लेने की कोशिश की। अधिकतर लोग बिफरे हुए हैं, उनमें अविश्वास की भावना भरी हुई है। उन्हें लगता है कि केंद्र के इस फ़ैसले से राज्य में जनसंख्या अनुपात बदल जाएगा, यहाँ भी आबादी में मुसलमानों का अनुपात कम हो जाएगा। 

श्रीनगर के अबी गुज़र इलाक़े में रहने वाले 30 साल के एक युवक ने कहा, 'हम जानते हैं कि वे क्या करेंगे, पहले वे यहां निवेश के नाम पर आएंगे।'
पूरी घाटी में भारत का समर्थन करने वाले लोग परेशान हैं, चुप हैं, स्तब्ध हैं। अलगाववादियों की बात गूंज रही है, हमने तो पहले ही कह दिया था कि ऐसा होगा, वही हुआ।

चुप हैं भारत समर्थक

पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के एक स्थानीय नेता ने कहा, 'सरकार ने उन लोगों को निराश किया है, जो अपने ही लोगों असहमत थे, जिन्होंने अपना ख़ून बहाया था क्योंकि वे धर्मनिरपेक्ष भारत में यकीन करते थे और धर्मनिरपेक्ष भारत मे ही रहना चाहते थे।'
आम जनता मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से उम्मीद करते हैं कि वे इस स्थिति को चुनौती देने के लिए एकजुटता कायम करें और एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा करें। 

बेबस लोग!

कश्मीर विश्वविद्यालय के मुहम्मद उमर ने कहा, 'जिस तर्क पर वे 70 से टिके हुए थे, वह संसद में 15 मिनट में धाराशायी कर दिया गया। नेताओं के पास कहने को कुछ नहीं है, वे बस इतना कर सकते हैं कि माफ़ी माँगे और उनके साथ खड़े हो जाएँ।'
नेशनल कॉन्फ़्रेंस के एक कार्यकर्ता के पिता आतंकवादियों के हाथों मारे गए थे। वे बेदह हताश हैं। 

'मेरे पिता भारत के सिद्धांतों के लिए मारे गए और मैं इन्हीं सिद्धांतों के लिए राजनीति में आया। उन्होंने आतंकवादियों की गोलियाँ खाईं क्योंकि उन्हें लगता था कि धर्मनिरपेक्ष भारत में कश्मीर सुरक्षित है। ताजा़ फ़ैसले के बाद मैं अपने ही फ़ैसले पर सवाल खड़े करता हूँ।'


नेशनल कॉन्फ़्रेंस का एक कार्यकर्ता

पीडीपी के एक नेता ने कहा कि मुख्यधारा की 4 बड़ी पार्टियों की एक बैठक हुई। केंद्र सरकार के फ़ैसले को संवैधानिक फ़र्जीवाड़ा क़रार देते हुए वे कहते हैं, 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ अक्सेसन की कोई पवित्रता नहीं रही।' 
पीडीपी नेता ने कहा, 'एनआईए और एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट जैसी एजंसियों के ज़रिए पहले तो वे अलगाववादियों को परेशान करते थे, हमें लगता था कि वे उन अलगाववादियों को अलग थलग करना चाहते हैं। पर अब तो वे हम तक पहुँच गए, जिन लोगों ने 70 साल तक तिरंगा उठाए रखा, जो कश्मीर में असली भारतीय हैं, उन तक वे पहुँच गए।'
जो लोग छुटि्टियों में घर गए हुए थे और लौटना चाहते हैं, वे परेशान हैं। ईद आने वाली है। इंटरनेट बंद हैं, टिकट कैसे कटे? घाटी बंद है, कहाँ जाएँ, कैसे जाएँ? श्रीनगर मुख्य इलाक़ों को हवाई अड्डे से जोड़ने वाली सड़क पर तैनात पुलिस किसी को आगे नहीं बढ़ने दे रही है, इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज जाने वाले लोगों को भी रोक दिया गया है। क्या करें, कहा जाएँ? पूरी घाटी यही सवाल कर रही है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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