कर्नाटक कांग्रेस में जारी सत्ता संघर्ष पर नया खुलासा हुआ है। क्या सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच हुए ‘गुप्त समझौते’ से हालात बिगड़े? डीके शिवकुमार के कबूलनामे, कांग्रेस हाईकमान की भूमिका क्या हैं?
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया
कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद पर खींचतान की ख़बरों को बार-बार खारिज किए जाने के बाद भी आख़िरकर खींचतान की बड़ी वजह खुलकर सामने आ ही गई। उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार ने अपने गृह क्षेत्र कनकपुरा में मीडिया से बातचीत में पहली बार स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री पद को लेकर 'पांच-छह कांग्रेसी नेताओं के बीच एक गुप्त समझौता' हुआ था, लेकिन उन्होंने इसे सार्वजनिक करने से साफ़ इनकार कर दिया क्योंकि इससे पार्टी कमजोर या शर्मसार होगी। उसी दिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान से जल्द फैसला लेने की अपील कर दी ताकि भ्रम की स्थिति खत्म हो।
तो सवाल है कि आख़िर ऐसा क्या समझौता हुआ था कि उसके खुलासे से पार्टी शर्मसार हो जाएगी या फिर पार्टी कमजोर हो जाएगी? क्या डीके शिवकुमार की यह बात करने भर से शर्मसार होने जैसी स्थिति नहीं हो गई? सवाल यह भी है कि क्या कथित गुप्त समझौते के सामने आने से ही पार्टी शर्मसार या कमजोर होगी, क्या अभी जो पार्टी में हालात हैं उससे ऐसा नहीं हो रहा है?
शिवकुमार क्या बोले?
मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान पर शिवकुमार ने अपनी सफ़ाई दी है। कनकपुरा में पत्रकारों से बात करते हुए डीके शिवकुमार ने कहा, 'मैंने कभी मुख्यमंत्री बनाओ-बनाओ नहीं कहा। पांच-छह लोगों के बीच एक गुप्त समझौता है। मैं इसे सार्वजनिक रूप से नहीं बोलना चाहता क्योंकि इससे पार्टी को शर्मिंदगी होगी और कमजोर पड़ेगी। मैं अपने अंतर्मन की सुनता हूं। पार्टी है तो हम हैं, कार्यकर्ता हैं तो हम हैं।'शिवकुमार ने हालाँकि यह साफ़ नहीं किया कि समझौता कब और किस-किस के बीच हुआ। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि यह समझौता मार्च 2023 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के दिल्ली स्थित आवास पर हुआ था। उस बैठक में सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, खड़गे, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और एआईसीसी महासचिव रणदीप सुरजेवाला मौजूद थे। यह भी कहा जा रहा है कि समझौते के तहत ढाई साल बाद सिद्धारमैया की जगह शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही गई थी। हालाँकि, इसकी आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं हो पायी।
सिद्धारमैया का यू-टर्न- हाईकमान जो कहे…
पिछले कई महीनों तक सिद्धारमैया यही कहते रहे थे कि कांग्रेस सरकार पांच साल पूरे करेगी और मैं पूरा कार्यकाल मुख्यमंत्री रहूंगा। लेकिन 22 नवंबर को देर रात खड़गे से मुलाक़ात के बाद उनका लहजा अचानक बदल गया। मंगलवार को बेंगलुरु में उन्होंने कहा, दिल्ली जाने वाले विधायकों को जाने दो। विधायकों को दिल्ली जाने की आज़ादी है। उनकी राय क्या है, देखते हैं। आख़िरी फ़ैसला हाईकमान का होता है। इस भ्रम को खत्म करने के लिए हाईकमान को फैसला करना होगा। अगर हाईकमान चाहे तो मैं जारी रखूंगा। सिद्धारमैया
कर्नाटक मुख्यमंत्री
खड़गे ने टाला सवाल
संविधान दिवस के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने बेंगलुरु पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नेतृत्व परिवर्तन के सवाल को टालते हुए कहा, 'यह कोई ऐसा विषय नहीं है जिसपर यहाँ सार्वजनिक रूप से चर्चा की जाए। मैं विशेष रूप से संविधान दिवस के कार्यक्रम में आया हूँ। उसके बाद समीक्षा बैठकें हैं, फिर आगे बढ़ूंगा।'दोनों खेमों का दावा अलग-अलग
सिद्धारमैया खेमे के क़रीबी नेता दावा करते हैं कि 'कोई लिखित या मौखिक समझौता नहीं हुआ था'। वहीं शिवकुमार खेमे के लोग कहते हैं कि समझौता हुआ था और अब उसे निभाने का वक्त आ गया है। शिवकुमार के समर्थक कहते हैं कि शिवकुमार खुले टकराव के मूड में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने साफ़ कर दिया है कि उनके पास बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन है। उनका मानना है कि विद्रोह की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि शिवकुमार गांधी परिवार के प्रति पूरी तरह वफादार हैं।
दिल्ली में चल रही जोरदार लॉबिइंग
पिछले कुछ दिनों से शिवकुमार खेमे के कई मंत्री और विधायक दिल्ली जाकर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और खड़गे से मिल रहे हैं। दूसरी तरफ़ सिद्धारमैया खेमा भी लगातार यह संदेश दे रहा है कि अभी बदलाव का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि सरकार अच्छा काम कर रही है और 2028 के लोकसभा चुनाव से पहले स्थिरता ज़रूरी है।
कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद की इस खींचतान ने पार्टी की अंदरूनी कलह को फिर से सामने ला दिया है। अब सभी की निगाहें कांग्रेस हाईकमान पर टिकी हैं कि वह कब और किसके पक्ष में फ़ैसला सुनाता है। डीके शिवकुमार की मानें तो इतना तो अब साफ़ है कि ढाई साल का वह 'गुप्त समझौता' अब गुप्त नहीं रहा।