कर्नाटक विधानसभा ने नफ़रती भाषण रोकने वाला एक नया विधेयक पास कर दिया है। इसका नाम है कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल, 2025। यह देश का पहला ऐसा राज्य स्तर का कानून है जो नफरत भरे भाषण और इससे जुड़े अपराधों को रोकने के लिए बनाया गया है। इस बिल को पास करने के दौरान विपक्षी बीजेपी के विधायकों ने जोरदार विरोध किया। उनका कहना है कि इस क़ानून का दुरुपयोग हो सकता है। इससे सोशल मीडिया पर या राजनीतिक बातचीत में असहमति जताने वालों को चुप कराया जा सकता है।

विधानसभा में बहस के दौरान गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने बिल का बचाव किया। उन्होंने कहा कि यह क़ानून ज़रूरी है ताकि समुदायों के बीच नफ़रत और झगड़ा फैलाने वाली बातें रोकी जा सकें। उन्होंने कहा कि कर्नाटक जैसे राज्य में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएँ होती रहती हैं, उन्हें रोकने के लिए यह बिल मदद करेगा।
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बिल का मक़सद क्या है?

यह बिल समाज में नफरत, दुश्मनी या दुर्भावना बढ़ाने वाले भाषण और अपराधों को रोकना और सजा देना चाहता है। इसे बोलकर, लिखकर, छापकर, तस्वीर दिखाकर या ऑनलाइन तरीक़े से फैलाई जाने वाली नफरत को रोकने के लिए लाया गया है।

यह कानून भारतीय न्याय संहिता 2023 और सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 के साथ पुराने कानूनों के साथ चलेगा और यह उन्हें कमजोर नहीं करेगा।

नफरती भाषण क्या माना जाएगा?

बिल में उस लिखी हुई बात, तस्वीर या ऑनलाइन संदेश को नफ़रती भाषण बताया गया है जो किसी जीवित या मृत व्यक्ति, समूह या संगठन के खिलाफ नफरत, दुश्मनी या चोट पहुंचाने के इरादे से फैलाया जाए।

नफ़रती भाषण में न सिर्फ बोलना, बल्कि इसे बढ़ावा देना, उकसाना, इसके फैलाने में मदद करना करना भी शामिल है। इसका मतलब है कि जो मूल बात कहे और जो उसे आगे फैलाए, दोनों पर कार्रवाई हो सकती है।

सजा और जुर्माना क्या है?

  • पहली बार अपराध करने पर: कम से कम 1 साल से 7 साल तक जेल और 50000 रुपये जुर्माना।
  • दोबारा अपराध करने पर: कम से कम 2 साल से 7 साल तक जेल और 1 लाख रुपये जुर्माना।
  • सभी अपराध गंभीर और संज्ञेय माने गए हैं और जमानत आसानी से नहीं मिलेगी। केस ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास कोर्ट में चलेगा।
कोर्ट पीड़ितों को उनकी चोट और नुकसान के हिसाब से अच्छा मुआवजा दे सकता है। इससे सिर्फ सजा ही नहीं, पीड़ित को राहत भी मिलेगी।
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अपराध होने से पहले कार्रवाई के अधिकार

एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, स्पेशल मजिस्ट्रेट और डीएसपी रैंक से ऊपर के पुलिस अधिकारी को अधिकार है कि अगर लगे कि कोई अपराध करने वाला है तो वे पहले ही उसे रोकने के क़दम उठा सकते हैं। यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के नियमों से होगा।

कुछ चीजों में छूट के प्रावधान भी

किताबें, पैंफलेट, लेखन, चित्रकला या ऑनलाइन सामग्री जो सार्वजनिक हित में हों, उन्हें इस बिल में क़ानून से छूट दी गई है। इसमें विज्ञान, साहित्य, कला या धार्मिक विरासत से जुड़ी सामग्री भी शामिल है। अगर साबित हो जाए कि यह अच्छे उद्देश्य से है तो इन्हें नफ़रत वाले अपराध से छूट मिलेगी।

ऑनलाइन नफ़रत रोकने के लिए सरकार एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगी। वह सोशल मीडिया कंपनियों या वेबसाइटों को आदेश दे सकेगी कि नफरत वाली सामग्री हटाई जाए या ब्लॉक की जाए।
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अगर कोई संगठन या संस्था से नफरत वाला अपराध होता है, तो अपराध के समय संस्था में मौजूद रहे इंचार्ज और जिम्मेदार भी दोषी माने जाएँगे जब तक वह साबित न कर दे कि उसे पता नहीं था या उसने रोकने की पूरी कोशिश की थी।

यह कानून तब लागू होगा जब राज्य सरकार नोटिफिकेशन जारी करेगी। कर्नाटक सरकार का कहना है कि इससे समाज में शांति बनी रहेगी, लेकिन विपक्ष को डर है कि इससे अभिव्यक्ति की आजादी पर असर पड़ेगा। विपक्ष के नेता आर. अशोक ने कहा है कि यह क़ानून पुलिस को ‘हिटलर’ में बदल देगा, इसमें जमानत नहीं होगी, सिर्फ जेल होगी। अब देखना यह है कि यह कानून कितना प्रभावी साबित होता है।