भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच सीटों का समझौता हो गया और वे अगला लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगी, साधारण दिखने वाली यह घोषणा दोनों दलों ही नहीं, देश की राजनीति पर कई सवाल खड़े करती है। दोनों के बीच जो जूतम-पैज़ार हुई और दोनों के बीच जो कटुता थी, और उसके बाद उन्होंने जिस तरह एक साथ चुनाव लड़ने की कसमें खाईं, उससे यह सवाल उठता है कि क्या राजनीति में निजी फ़ायदे के लिए किसी हद तक जाया जा सकता है। राजनीति में 'अनजान लोगों के एक साथ सोने' की बात तो कही जाती है, राजनीति को 'असंभव संभावनाओं की दुनिया' माना जाता है, पर क्या कहीं कोई सीमा नहीं होती है, ये सवाल लाज़िमी हैं।

चुनाव 2019 : महाराष्ट्र में बीजेपी 25 और शिवसेना 23 सीटों पर लड़ेगी चुनाव 

हिन्दुत्व की राजनीति करने वाले दोनों दल क़रीब दो दशकों से साथ-साथ हैं, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक की केंद्र सरकारों में दोनों ने सत्ता की साझेदारी की, कांग्रेस को दूर रखने की बात कह कर दोनों महाराष्ट्र  में साथ-साथ चुनाव लड़ीं और साझा सरकारें चलाईं। लेकिन इधर शिव सेना लगातार बीजेपी पर हमले करती रही है।  ख़ास कर हाल के दिनों में शिव सेना तो बहुत अधिक उग्र हो गई थी। उसने बीजेपी की नीतियों, कार्यक्रमों, फ़ैसलों की तीखी आलोचना की, केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारों को जम कर कोसा, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को भी नहीं बख़्शा।

संजय राउत से लेकर उद्धव ठाकरे तक बीजेपी सरकार और मोदी पर लगातार तीखे हमले करते, शिवसेना मुखपत्र 'सामना' में बीजेपी के ख़िलाफ़ लेख छपते रहे, हिन्दुत्व, राम मंदिर, नोटबंदी, हर किसी के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने का मुद्दा, रोज़गार के मौक़े बनाने में नाकामी, पाकिस्तान, क्रिकेट, कुछ भी नहीं बचा।

बात यहाँ तक बढ़ गई कि नरेंद्र मोदी को 'चोर' और 'कुंभकर्ण' तक कह डाला। इसके बाद शिवसेना राहुल गाँधी की तारीफ़ करने लगी, राहुल की आलोचना करने के लिए मोदी पर हमले करती रही। और फिर एक दिन अचानक चुनावी समझौता कर सीटों के समझौते की घोषणा कर दी।

क्या है मामला : महाराष्ट्र में शिवसेना का बिहार फ़ॉर्मूला और पवार की करतबबाज़ी?

नरेंद्र मोदी

रोज़गार निर्माण

बीजेपी-शिवसेना के लिए 2014 जैसी जीत हासिल करना मुश्किल

रफ़ाल सौदा

शतरंज की बिसात : उद्धव के घर कौन सी राजनीतिक गोठियाँ बिठाने गए थे प्रशांत किशोर?

राम मंदिर

'अच्छे दिन', जीएसटी

'सामना' ने 22 जुलाई, 2017 को उद्धव ठाकरे का एक बड़ा इंटरव्यू छापा, जिसमे पार्टी के प्रमुख ने नोटबंदी, जीएसटी, अच्छे दिन, संघ-राज्य रिश्ते, लोकतंत्र तमाम मुद्दों पर सीधे- सीदे नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर हमले किए। 

बुलेट ट्रेन

गाय, हिन्दुत्व

शिवसेना ने बीजेपी के प्रिय विषय गाय पर भी उसे नहीं बख़्शा और जम कर हमले किए, जबकि वह स्वयं उग्र हिन्दुत्व की राजनीति करती है। 

भारत  रत्न, सावरकर

'सामना' ने 27 जनवरी को अपने संपादकीय में भारत रत्न देने के मुद्दे पर सरकार को घेरा और विनायक दामोदर सावरकर को यह सम्मान नहीं दिए जाने पर सवाल किया। 

शिवसेना ने बीजेपी पर जो हमले किए, उसकी सूची बहुत लंबी है, सिर्फ़ चुनिंदा उदारण देना ही मुमकिन है। शिवसेना ने ख़ुद को बीजेपी से अधिक उग्र हिन्दुत्ववादी दल साबित करने के लिए राम मंदिर पर उसकी मंशा पर सवाल खड़े किए और बार-बार कहा कि वह सिर्फ़ वोट पाने के लिए राम मंदिर की बात करती है, जबकि शिवसेना हर हाल में मंदिर बनवाएगी। लेकिन सबसे दिलचस्प यह है कि पार्टी ने नरेंद्र मोदी को नहीं बख़्शा और उन पर ज़ोरदार हमले एक नहीं, कई बार किए। उनकी कई नीतियों का खुले आम विरोध किया और उनका नाम लेकर उन पर हमला बोला। शिवसेना तो इस हद तक चली गई कि प्रधानमंत्री को 'चोर' तक कह दिया, रफ़ाल पर जेपीसी की माँग का समर्थन कर दिया और राहुल गाँधी की तारीफ़ कर दी। उसने यह सब कुछ बीजेपी के साथ सत्ता में साझेदारी करते हुए किया, अगले चुनाव के लिए सीटों के बँटवारे पर बातचीत करते हुए किया। अब जबकि तालमेल का एलान हो गया है, शिव सेना अपने साझेदार और प्रधानमंत्री पद के बारे में क्या कहती है या पहले की कही बातों पर कैसे टिकती है, यह देखना दिलचस्प होगा।