क्या किसी ख़ास मुद्दों पर किताबें पढ़ना या रखना किसी अपराध का सबूत हो सकता है? मध्य प्रदेश पुलिस ने एक एक्टिविस्ट के ख़िलाफ़ दायर चार्जशीट में फासीवाद पर एक हिंदी किताब और कम्युनिस्ट आंदोलन पर किताब को सबूत के रूप में शामिल किया है। आरोपी एक्टिविस्ट सौरव बनर्जी 'हाउ वी ऑट टू लिव' यानी HOWL के सह-संस्थापक हैं। उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है।
सौरव बनर्जी को जुलाई में धर्मांतरण की अफवाहों के बाद दक्षिणपंथी भीड़ द्वारा कथित रूप से पीटा गया था। मई में HOWL संगठन पर 'हिंदू-विरोधी गतिविधियों' का आरोप लगाया गया था। 24 जुलाई को HOWL ने इंदौर प्रेस क्लब में आरोपों का खंडन करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इस आयोजन को कथित रूप से स्थानीय दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा बाधित कर दिया गया। बनर्जी को आयोजन स्थल के अंदर पीटा गया, जबकि अन्य सदस्य भाग निकले। 26 जुलाई को उनके खिलाफ एफ़आईआर दर्ज की गई।
जांच अधिकारी मयंक वर्मा द्वारा 23 सितंबर को देवास की एक ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर चार्जशीट में बनर्जी को भारतीय न्याय संहिता की धारा 299 और 302 के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने का दोषी बताया गया है।
पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने बनर्जी को जमानत दे दी है, जिससे उन्हें जेल से रिहा होने का मौका मिला। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चार्जशीट में पुलिस ने सबूत के रूप में 'फासीवाद से संबंधित हिंदी किताब' और 'कम्युनिस्ट आंदोलन तथा फासीवाद' पर किताब जब्त करने का ज़िक्र किया है। ये किताबें HOWL के कार्यालय या बनर्जी के पास से बरामद बताई गई हैं।
चार्जशीट में क्या आरोप हैं
चार्जशीट के अनुसार, मुख्य शिकायतकर्ता सचिन बामनिया और उनके भाई पंकज ने दावा किया कि वे मौजूद थे जब बनर्जी ने कथित रूप से भगवान राम और सीता का अपमान किया। अन्य गवाहों ने भी इसी तरह के बयान दिए, हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि वे घटनास्थल पर नहीं थे।
गवाहों ने आरोप लगाया है कि सौरव बनर्जी पिछले पांच वर्षों से गांव में सक्रिय थे, उनके समूह ने 'नशीले पदार्थों का सेवन' कराया और स्थानीय लोगों को रविवार की बैठकों में आमंत्रित किया।
एक अन्य ग्रामीण देवराज ने बनर्जी पर अपने कृषि भूमि पर अवैध निर्माण करने और किराए के समझौते पर हस्ताक्षर कराने के लिए गुमराह करने का आरोप लगाया। पुलिस ने यह भी दावा किया कि बनर्जी के खातों में 'अमेरिकी डॉलर में धन प्राप्त हुआ' है और संभावित विदेशी फंडिंग की जांच के लिए अधिक समय मांगा है।
HOWL ने क्या कहा
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार HOWL के सह-संस्थापक प्रणय त्रिपाठी ने कहा, 'हमारे पास दर्शनशास्त्र और इतिहास पर कई किताबें हैं, जिनमें कई हिंदी अनुवाद शामिल हैं। ये किताबें सामान्य ज्ञान के लिए हैं, न कि किसी षड्यंत्र का हिस्सा।' त्रिपाठी ने चार्जशीट को 'राजनीतिक प्रतिशोध' करार दिया और कहा कि संगठन सामाजिक न्याय और पर्यावरण के मुद्दों पर काम करता है।
वकील का बचाव
बनर्जी के वकील ज्वलंत सिंह चौहान ने सभी आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा, 'मेरा मुवक्किल जन्म से हिंदू है और झूठे आरोपों का शिकार हुआ है। उन्होंने कभी किसी देवता के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी नहीं की। विदेशी भुगतान वैध अनुवाद कार्य के लिए था, जिसका कर फाइलिंग में पूरी तरह खुलासा किया गया है। एफ़आईआर में धर्मांतरण का कोई उल्लेख नहीं है- ये दावे दुर्भावनापूर्ण हैं और सत्ता के दुरुपयोग की साफ़ मिसालें हैं।'
HOWL क्या है?
HOWL डॉक्टर, पत्रकार, इंजीनियर कामकाजी पेशेवरों का आत्मनिर्भर एक सामुदायिक समूह है। यह मध्यप्रदेश के देवास ज़िले के पर्वतपुरा पंचायत के अंतर्गत आने वाले शुक्रवासा गाँव में जंगल और पहाड़ियों के बीच है। यह समूह दलित, आदिवासी एवं पिछड़े तबकों में शिक्षा, जागरूकता और सरकारी योजनाओं के जरिए वहाँ के निवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य कर रहा था।
ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार पेशे से पत्रकार सौरव बनर्जी फ़रवरी 2021 में एक कैंपिंग ट्रिप में शुक्रवासा आए थे और जब उन्होंने क्षेत्र की मौजूदा स्थिति के साथ-साथ लोगों की स्थिति को देखते हुए वह वहीं रहकर कुछ लोगों के साथ समूह का गठन किया। धीरे-धीरे ग्रामीण HOWL समूह से स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मान के अधिकार जैसे मुद्दों के कामों से जुड़ने लगे। इन्होंने पर्वतपुरा पंचायत विकास समिति का गठन किया और यह सब वहां के निवासियों के सहयोग से किया गया। HOWL समूह और विकास समिति ने मिलकर गाँव के पुरुषों, महिलाओं को जागरूक व शिक्षित करने के साथ-साथ सरकारी योजना तक पहुँच के लिए दस्तावेज बनाने, स्वास्थ्य संबंधी सुविधा मुहैया करवाने से लेकर स्वास्थ्य शिविर लगवाने तक का काम किया। सैनिटरी पैड वितरण, संवैधानिक अधिकारों व सभ्य जीवन और अन्य विकास संबंधी मुद्दों पर नियमित जागरूकता अभियान, बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अभियान, आत्मनिर्भर व स्वरोजगार के उद्देश्य से आटा चक्की स्थापित करना, मुर्गी पालन, मछली पालन जैसे काम भी किए गए।
बहरहाल, यह मामला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है, जहां कई यूज़र इसे विचारधारा पर हमला बता रहे हैं। मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले लोगों ने पुलिस की जांच पर सवाल उठाए हैं, खासकर किताबों को सबूत बनाने को लेकर। जानकारों का कहना है कि बीएनएस की धारा 299 यानी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना का दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल सकता है।
यह घटना भारत में एक्टिविस्टों पर बढ़ते दबाव को दिखाती है, जहाँ राजनीतिक विचारधाराओं वाली किताबें भी सबूत बन सकती हैं। उच्च न्यायालय की जमानत का फैसला एक राहत है, लेकिन चार्जशीट के निपटारे तक यह मामला न्यायिक बहस का विषय बनेगा। यह सवाल उठाता है कि क्या लोकतंत्र में किताबें पढ़ना अपराध है?