क्या होगा : बीजेपी-शिवसेना के लिए 2014 जैसी जीत हासिल करना मुश्किल
बोला हमला : 'ईवीएम से चुनाव हो तो लंदन, अमेरिका में भी जीत सकती है बीजेपी'
बड़ा सवाल : उद्धव के घर कौन सी राजनीतिक गोठियाँ बिठाने गए थे प्रशांत किशोर?
शिवसेना 2014 के चुनाव के बाद से ही अपने मुखपत्र 'सामना' के ज़रिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर बीच-बीच में हमले करती रही। 2018 में इन दोनों पार्टियों के बीच तल्ख़ी और बढ़ गई थी। 'सामना' ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निशाना बनाया। केंद्र सरकार के नोटबंदी, जीएसटी और अन्य कदमों की शिवसेना ने खूब आलोचना की। 2018 में शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अयोध्या में रैली कर राम जन्मभूमि का मुद्दा उठाया और बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश की। ऐसे में यह कयास लगाने जाने लगे थे कि 2019 में बीजेपी और शिवसेना में गठबंधन होगा या नहीं।
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हाल ही में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मुंबई में उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात की थी। इस मुलाक़ात के बाद ऐसा संदेश निकला था कि प्रशांत किशोर अपने आँकड़ों के खेल से शिवसेना नेताओं को मनाने में सफल हो गए हैं। लेकिन दो दिन बाद ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस का पुणे के एक कार्यक्रम में बयान आया था कि बीजेपी राज्य में सभी 48 सीटों पर लड़ेगी। इसके अगले ही दिन शिवसेना ने इसके ख़िलाफ़ 'सामना' में संपादकीय लिखकर बीजेपी को घमंडी बता दिया था। इससे माना जा रहा था कि अब दोनों दल गठबंधन के लिए राजी नहीं होंगे।
कुछ दिन पहले ऐसी ख़बरें आई थीं कि शिवसेना ने स्पष्ट कर दिया है कि 1995 के बाल ठाकरे के फ़ॉर्मूले के आधार पर ही बीजेपी के साथ गठबंधन किया जा सकता है। इस फ़ॉर्मूले के अनुसार विधानसभा में शिवसेना-बीजेपी में सीटों का बंटवारा 171-117 सीटों का होता था। लेकिन 2014 में मोदी लहर में लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद बीजेपी, शिवसेना को 171 तो दूर 152 सीटें भी देने को तैयार नहीं हुई और गठबंधन टूट गया था।