महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने ही उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के विभाग के प्रदर्शन को ख़राब क्यों बताया है? क्या दोनों नेताओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं है और क्या यह बयान भाजपा-शिवसेना गठबंधन के बीच अंदरूनी कलह को नहीं दिखा रहा है? तो क्या महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर सत्ता के शीर्ष पर तनाव की आशंका बढ़ गई है?

इन सवालों के जवाब दोनों नेताओं के बीच चलती रही बयानबाजी से भी मिल सकते हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में मुंबई में एक बैठक के दौरान शिंदे के विभाग पर सीधी चोट की। एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शहरी विकास विभाग के प्रदर्शन पर नाखुशी जताई और उसे एक 'पुअर शो' क़रार दिया। फडणवीस ने विशेष रूप से प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत, स्वच्छ भारत मिशन और पीएम किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का जिक्र किया।
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सीएम की बैठक में शिंदे नहीं पहुँचे

यह टिप्पणी केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन पर एक समीक्षा बैठक के दौरान की गई। फडणवीस ने कथित तौर पर संबंधित अधिकारियों को योजनाओं के कार्यान्वयन में तुरंत सुधार करने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री की यह बैठक ऐसे कई विभागों के मंत्रियों और सचिवों के साथ थी जो ऐसी परियोजनाओं को क्रियान्वित कर रहे थे। हालाँकि शिंदे मौजूद नहीं थे, लेकिन महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे और जन स्वास्थ्य राज्य मंत्री मेघना बोर्डिकर जैसे अन्य विभागों के मंत्रियों ने इसमें भाग लिया। शुक्रवार को उस घटनाक्रम के बाद शिंदे शनिवार को फडणवीस के नेतृत्व में हुई बैठक में भी शामिल नहीं हुए। 

एचटी की रिपोर्ट के अनुसार फडणवीस ने कथित तौर पर कहा कि केंद्र सरकार शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति, स्वच्छता, हरित पार्कों और झीलों के पुनरोद्धार के लिए अमृत मिशन के तहत धनराशि उपलब्ध करा रही है। उन्होंने आगे कहा, 'इस मिशन में शहरी क्षेत्रों के लोगों के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन लाने और उनके जीवन को आसान बनाने की क्षमता है। इसलिए, एजेंसियों को इस मिशन के तहत सभी लंबित कार्यों को 31 मार्च, 2026 से पहले पूरा करना चाहिए। मिशन के तहत रुकी हुई प्रशासनिक स्वीकृतियाँ तुरंत दी जानी चाहिए।' रिपोर्ट के अनुसार शिंदे के विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मंत्री ने अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि अगर परियोजनाएँ समय पर पूरी नहीं हुईं, तो कार्रवाई की जाएगी और यूडीडी ने इस संबंध में एक आदेश भी जारी किया है। 

शिंदे शनिवार को छत्रपति संभाजी नगर के लिए यूडीडी के नेतृत्व वाली जलापूर्ति योजना से संबंधित फडणवीस द्वारा आयोजित एक समारोह में भी शामिल नहीं हुए।

एचटी के संपर्क करने पर शिंदे खेमे के मंत्री प्रताप सरनाइक ने पिछले सप्ताह बैठकों और समारोहों से शिंदे की अनुपस्थिति पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं पता कि वह आज छत्रपति संभाजी नगर समारोह में क्यों शामिल नहीं हुए।' 

क्या दोनों के बीच सबकुछ ठीक नहीं? 

देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। 2014 से 2019 तक फडणवीस के मुख्यमंत्री कार्यकाल में शिंदे उनके मंत्रिमंडल में मंत्री थे, लेकिन शिवसेना के साथ गठबंधन के कारण कई मुद्दों पर मतभेद उभरे थे। शिंदे को अक्सर फडणवीस की शैली पसंद नहीं आती थी। 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद जब शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, तो शिंदे ने उद्धव ठाकरे के साथ जाने का फैसला किया, लेकिन जून 2022 में उनकी बगावत ने सब बदल दिया।

शिंदे के विद्रोह के बाद फडणवीस ने उन्हें समर्थन दिया और शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया, जबकि खुद उपमुख्यमंत्री बने। लेकिन दिसंबर 2022 में फडणवीस ने फिर से मुख्यमंत्री का पद संभाला और शिंदे उपमुख्यमंत्री बने। तब से कई खटपट की खबरें सुर्खियां बनीं। शिंदे सरकार के गठन के तुरंत बाद मंत्रालयों के बंटवारे पर विवाद हुआ। शिंदे को गृह विभाग चाहिए था, लेकिन फडणवीस ने कई महत्वपूर्ण विभाग खुद रख लिए। इससे शिंदे गुट में असंतोष फैला।
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मुंबई मेट्रो और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर दोनों नेताओं के बीच मतभेद सामने आए। इससे गठबंधन में तनाव बढ़ा। हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार, शिंदे कई कैबिनेट मीटिंग्स में अनुपस्थित रहे। इसके अलावा, शिंदे के समर्थक विधायकों के बीच असंतोष की खबरें आईं, जहां कुछ ने फडणवीस पर शिवसेना को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया।

पिछले विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों नेताओं के बीच सीट बंटवारे पर खींचतान हुई थी। फडणवीस ने कहा कि भाजपा को अधिक सीटें मिलनी चाहिए, जबकि शिंदे ने शिवसेना के लिए 150 से अधिक सीटों की मांग की।

इन घटनाओं से साफ है कि सतह के नीचे तनाव हमेशा बना रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि फडणवीस केंद्र के साथ अपने मजबूत संबंधों का इस्तेमाल शिंदे पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं, जबकि शिंदे अपने विधायकों की निष्ठा बनाए रखने के चक्कर में स्वतंत्र रुख अपना रहे हैं। 
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विपक्षी नेताओं का तंज

विपक्षी नेता इसे फडणवीस और शिंदे के बीच आंतरिक युद्ध बताते रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा था, 'भाजपा के अंदर ही कलह शुरू हो गई। शिंदे सरकार फेल है, और फडणवीस इसका खुलासा कर रहे हैं।' सुप्रिया सुले ने भी कहा था कि यह गठबंधन की नाकामी है और महाराष्ट्र को स्थिर सरकार चाहिए। उद्धव ठाकरे भी कहते रहे हैं कि शिंदे सरकार में फूट साफ दिख रही है और जनता देख रही है।

बहरहाल, देवेंद्र फडणवीस का "खराब प्रदर्शन" वाला बयान शिंदे सरकार की कमजोरियों को उजागर करता है और दोनों नेताओं के बीच लंबे समय से चली आ रही खटपट को फिर से सामने ला रहा है। चाहे यह आंतरिक सुधार हो या सत्ता संघर्ष, यह महाराष्ट्र के गठबंधन को कमजोर कर सकता है। फडणवीस का यह ताज़ा बयान महाराष्ट्र की राजनीति को नया मोड़ दे सकता है, खासकर आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनजर। जानकारों का कहना है कि फडणवीस भाजपा को मजबूत करने के लिए शिंदे पर दबाव बना रहे हैं। यदि तनाव बढ़ा, तो केंद्र का हस्तक्षेप जरूरी हो सकता है।