2008 के मालेगाँव बम विस्फोट मामले में सातों आरोपी के बरी होने के फ़ैसले को चुनौती देते हुए पीड़ितों के परिजनों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की है। हाईकोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआईए, पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य बरी हुए आरोपियों को नोटिस जारी कर दिए हैं। यह नोटिस पूरी तरह पीड़ितों के परिजनों की कोशिश से संभव हुआ। वे लगातार इसके लिए जूझ रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार ने इसके लिए कोई अपील नहीं की है। लेकिन यही महाराष्ट्र सरकार 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में बरी किए गए आरोपियों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गई है। कहा जा रहा है कि सरकार इसके लिए पूरी ताक़त लगा रही है। 

तो बम ब्लास्ट के ही दो मामलों में सरकार का यह दोहरा रवैया क्यों? क्या इसका आरोपियों के धर्म से कुछ लेना देना है? ये सवाल इसलिए कि हाल ही में 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में बरी हुए लोगों के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, लेकिन मालेगाँव मामले में एनआईए ने ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया। विशेषज्ञों और राजनीतिक हलकों में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार का यह रवैया दोहरा मापदंड नहीं दिखाता?

मालेगाँव ब्लास्ट केस

9 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगाँव शहर में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण के फटने से छह लोग मारे गए थे और 101 से अधिक घायल हो गए थे। यह विस्फोट रमजान के पवित्र महीने के दौरान हुआ था, जब शहर में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था। अभियोजन पक्ष का दावा था कि यह हमला दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया गया था।

महाराष्ट्र एंटी-टेररिज़्म स्क्वायड यानी एटीएस ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय एराहिरकर, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर धर द्विवेदी सहित सातों आरोपियों को गिरफ्तार किया। एटीएस के अनुसार, यह साजिश भोपाल, इंदौर और अन्य जगहों पर हुई सभाओं में रची गई थी। 2011 में मामला एनआईए को सौंप दिया गया, जिसने 2016 में एक पूरक चार्जशीट दायर की, लेकिन इसमें प्रज्ञा ठाकुर को कई आरोपों से मुक्त कर दिया।

31 जुलाई 2025 को स्पेशल एनआईए कोर्ट के जज ए.के. लहोटी ने सभी सातों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत हत्या, आपराधिक साजिश और अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के पास 'विश्वसनीय और ठोस साक्ष्य' का अभाव था और 'केवल संदेह वास्तविक प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता।' अदालत ने जाँच में खामियों का हवाला देते हुए आरोपियों को संदेह का लाभ दिया।

इस फ़ैसले के बाद पीड़ितों के परिजनों ने तुरंत अपील की घोषणा की। एडवोकेट मतीन शेख के माध्यम से दायर अपील में कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने 'डाकिया या मूक दर्शक' की तरह काम किया और अभियोजन पक्ष की कमजोरियों को सुधारने का प्रयास नहीं किया। अपील में एनआईए पर भी आरोप लगाया गया कि एजेंसी ने एटीएस की मजबूत जांच को कमजोर करने के लिए मामले को 'हल्का' किया। 

हाईकोर्ट का रुख

बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मंगलवार को अपील पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि 'बरी लोगों के खिलाफ अपील हर किसी के लिए खुला द्वार नहीं है।' अदालत ने पूछा कि क्या पीड़ितों के परिजन ट्रायल के दौरान गवाह के रूप में पेश हुए थे। गुरुवार को सुनवाई के बाद अदालत ने सभी बरी आरोपियों को उनके वर्तमान पते पर नोटिस जारी करने का आदेश दिया। एनआईए और महाराष्ट्र सरकार को भी नोटिस भेजे गए हैं। बता दें कि एनआईए ने इस मामले में अभी तक बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की है, जबकि पीड़ित परिवारों का कहना है कि एजेंसी की जांच ही मामले को कमजोर करने का कारण बनी।

ट्रेन ब्लास्ट केस में सरकारी अपील: दोहरा चरित्र?

अब सवाल उठ रहा है कि 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में सरकार ने तुरंत अपील क्यों दायर की, लेकिन मालेगाँव में ऐसा क्यों नहीं? 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात बम धमाकों से 200 से अधिक लोग मारे गए और 700 से ज्यादा घायल हुए थे। यह भारत के सबसे घातक आतंकी हमलों में से एक था।

2015 में स्पेशल एमसीओसीए कोर्ट ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया- इसमें से पांच को फांसी और सात को उम्रकैद। लेकिन 21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 12 को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष पूरी तरह विफल रहा। इसके तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया, हालांकि बरी आरोपियों को जेल वापस जाने से छूट दी। कोर्ट ने सभी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
इसके विपरीत, मालेगाँव मामले में एनआईए चुप्पी साधे हुए है। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने टिप्पणी की, 'क्या प्रधानमंत्री मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ट्रेन ब्लास्ट की तरह मालेगाँव में बरी लोगों के खिलाफ अपील दायर करेंगे?' ओवैसी ने 2016 में स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर रोहिणी सलियन के बयान का हवाला दिया, जिन्होंने कहा था कि एनआईए ने उन्हें हिंदुत्व नेताओं पर नरमी बरतने का निर्देश दिया था।

ये दोनों मामले भारत की आतंकवाद-विरोधी जांच व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करते हैं। मालेगाँव पीड़ितों के लिए अपील एक नई उम्मीद है, लेकिन सरकार के कथित चुनिंदा रुख से न्याय की प्रक्रिया पर संदेह गहरा रहा है। हाईकोर्ट की अगली सुनवाई से साफ होगा कि क्या बरी करने का फ़ैसला बरकरार रहेगा या दोषसिद्धि साबित होगी। न्याय की तलाश में पीड़ित परिवारों का संघर्ष जारी है।