Satara Doctor Rape and Murder: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सतारा में बीड की एक डॉक्टर की कथित आत्महत्या की जाँच के लिए एक महिला आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया है। डॉक्टर ने एक पुलिस अधिकारी पर रेप का आरोप लगाया था।
गिरफ्तार पुलिस सब-इंस्पेक्टर गोपाल बडाने
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सतारा के एक होटल में मृत पाई गईं बीड की एक महिला डॉक्टर की कथित आत्महत्या मामले की जाँच के लिए एक विशेष जाँच दल (SIT) गठित करने का आदेश दिया है।
सरकार ने यह कदम नागरिकों और राजनीतिक दलों के दबाव के बीच उठाया है। तमाम राजनीतिक-समाजिक संगठन महिला डॉक्टर के परिवार के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं। पीड़िता के परिवार ने भी दोषियों को कड़ी सज़ा सुनिश्चित करने के लिए SIT जाँच की अपील की थी।
SIT का गठन
गृह विभाग का प्रभार संभाल रहे मुख्यमंत्री फडणवीस ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) को तुरंत एक महिला IPS अधिकारी के नेतृत्व में SIT गठित करने का निर्देश दिया है।
घटना का विवरण
मध्य महाराष्ट्र के बीड जिले की रहने वाली यह डॉक्टर 23 अक्टूबर को फलटन के एक होटल के कमरे में फंदे से लटकी मिली थीं। उन्होंने अपनी हथेली पर लिखे सुसाइड नोट में आरोप लगाया था कि सब-इंस्पेक्टर गोपाल बडाने ने उनके साथ कई बार रेप किया, जबकि प्रशांत बाणकर, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, ने उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। बाद में इस मामले में एक बीजेपी सांसद का नाम भी परेशान करने वालों में आया।
फडणवीस सरकार ने घटना को रफादफा करने की कोशिश की
मुख्यमंत्री को नागरिकों और राजनीतिक दलों के भारी दबाव के बाद ही SIT गठित करने का फैसला लेना पड़ा। घटना 23 अक्टूबर को हुई, और SIT का आदेश 9 दिनों बाद आया। आलोचकों का मानना है कि यदि सरकार न्याय के प्रति गंभीर होती, तो वह इतना समय नहीं लेती और तत्काल जाँच के आदेश देती। इस देरी को सरकार द्वारा मामले को 'लीपापोती' (cover-up) करने की कोशिश के रूप में देखा गया, खासकर जब सुसाइड नोट में एक पुलिस अधिकारी पर सीधे तौर पर रेप और दूसरे आरोपी पर उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। परिजनों ने तो पोस्टमार्टम में भी गड़बड़ी का आरोप लगाया था और कहा था कि डॉक्टर पर झूठी रिपोर्ट बनाने के लिए राजनीतिक और पुलिस का दबाव था। मृत डॉक्टर ने पहले भी कुछ पुलिस अधिकारियों द्वारा झूठे मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालने की शिकायत की थी, लेकिन पुलिस ने उल्टा उन पर ही जाँच में बाधा डालने का केस दर्ज कर दिया था। इस घटना ने भी सरकार और पुलिस की कार्रवाई पर संदेह को बढ़ाया।
SIT जाँच की निष्पक्षता पर संदेह
SIT के गठन के बावजूद, इसकी निष्पक्षता पर गंभीर संदेह बना हुआ है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि SIT का नेतृत्व एक महिला IPS अधिकारी करेंगी, लेकिन जाँच करने वाली टीम अंततः पुलिस विभाग का ही हिस्सा होगी। आरोपी सब-इंस्पेक्टर एक पुलिस अधिकारी है। ऐसे में, यह संदेह होना स्वाभाविक है कि क्या अधीनस्थ या सहकर्मी पुलिस अधिकारी के खिलाफ सख्त और निष्पक्ष रिपोर्ट दे पाएंगे, खासकर तब जब उच्च अधिकारी भी कथित रूप से पहले दबाव डाल चुके हों।
SIT सीधे राज्य सरकार (गृह विभाग) के आदेश पर गठित हुई है। विपक्ष और आलोचकों का तर्क है कि जब तक जाँच हाईकोर्ट की निगरानी (Court-monitored) में नहीं होती, तब तक उस पर सरकार का अप्रत्यक्ष नियंत्रण बना रहेगा, जिससे राजनीतिक प्रभाव की संभावना बनी रहेगी। इसलिए निष्पक्ष जांच पर संदेह जताया जा रहा है।