मंगलेश जी कोई अभिजात्य शब्दशिल्पी नहीं थे, जन आंदोलनों के पक्ष में और सत्ता के ख़िलाफ़ सड़क पर उतर कर प्रतिरोध करने वालों में से थे। एक ऐसे समय में जब सत्ता की चरण वंदना की होड़ लगी हुई हो, मंगलेश डबराल अपनी दो टूक टिप्पणियों की वजह से हमेशा निशाने पर रहे। असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्य अकादेमी सम्मान लौटने के लिए उन पर 'अवार्ड वापसी गैंग' के नाम पर बेहद घटिया हमले किये गए।
हम जानते हैं कि हम कितने कुटिल और धूर्त हैं।हम जानते हैं कि हम कितने झूठ बोलते आए हैं।हम जानते हैं कि हमने कितनी हत्याएँ की हैं,कितनों को बेवजह मारा-पीटा है, सताया हैऔरतों और बच्चों को भी हमने नहीं बख़्शा,जब लोग रोते-बिलखते थे हम उनके घरों को लूटते थेचलता रहा हमारा खेल परदे पर और परदे के पीछे भी।हमसे ज़्यादा कोई नहीं जानता हमारे कारनामों का कच्चा-चिट्ठाइसीलिए हमें उनकी परवाह नहींजो जानते हैं हमारी असलियत।हम जानते हैं कि हमारा खेल इस पर टिका हैकि बहुत से लोग हैं जो हमारे बारे में बहुत कम जानते हैंया बिलकुल नहीं जानते।और बहुत से लोग हैं जो जानते हैंकि हम जो भी करते हैं, अच्छा करते हैंवे ख़ुद भी यही करना चाहते हैं।(‘हत्यारों का घोषणापत्र’ से)
तानाशाह मुस्कुराता हैभाषण देता है और भरोसा दिलाने की कोशिश करता है कि वह एक मनुष्य हैलेकिन इस कोशिश में उसकी मुद्राएँ और भंगिमाएँ उन दानवों-दैत्यों-राक्षसों कीमुद्राओं का रूप लेती रहती हैं जिनका ज़िक्र प्राचीन ग्रंथों-गाथाओं-धारणाओं-विश्वासों में मिलता है। वह सुंदर दिखने की कोशिश करता है आकर्षक कपड़े पहनता हैबार-बार बदलता है लेकिन इस पर उसका कोई वश नहीं कि यह सबएक तानाशाह का मेकअप बन कर रह जाता है।इतिहास में तानाशाह कई बार मर चुका है लेकिन इससे उस पर कोई फर्क नहीं पड़ताक्योंकि उसे लगता है उससे पहले कोई नहीं हुआ है।(‘तानाशाह’ से)
मुझे इस तरह मारा गयाजैसे मारे जा रहे हों एक साथ बहुत से दूसरे लोगमेरे जीवित होने का कोई बड़ा मक़सद नहीं थाऔर मुझे मारा गया इस तरह जैसे मुझे मारना कोई बड़ा मक़सद हो।जब मैं अपने भीतर मरम्मत कर रहा था किसी टूटी हुई चीज़ कीजब मेरे भीतर दौड़ रहे थे अल्युमिनियम के तारों की साइकिल केनन्हे पहिएतभी मुझपर गिरी आग, बरसे पत्थरऔर जब मैंने आख़िरी इबादत में अपने हाथ फैलाएतब तक मुझे पता नहीं था बन्दगी का कोई जवाब नहीं आता('गुजरात के मृतक का बयान ' से )
मंगलेश डबराल बहुत गहरी संवेदनाओं वाले कवि, सौम्य, विनम्र, शालीन और नर्मदिल इंसान और धर्मनिरपेक्षता, बहुलता, अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए प्रतिबद्ध, दृढ़ प्रगतिशील बुद्धिजीवी, पत्रकार थे।
उनमें ज्ञान और रुतबे के अहंकार से सर्वथा मुक्त एक आडम्बरविहीन आत्मीयता थी जो अकेलेपन और अजनबियत के इस दौर में बहुत आश्वस्त करती थी। आप उनसे सिनेमा, साहित्य, संगीत, समाज पर बात करके समृद्ध हो सकते थे।
निराला शारीरिक व्याधि और मानसिक संताप को कितने गद्यात्मक ढंग से और कैसी अपूर्व काव्यात्मकता के साथ बतलाते हैं। और फिर, जीवन एक विषण्ण वन है। विषाद से भरा हुआ जंगल। विषण्णता के लिए वन जैसी सघन, विस्तृत और रहस्यमय उपस्थिति का प्रतीक। विषण्णता का अर्थ है उदासी, दुःख, अवसाद, विषाद। इसे व्यंजित करने के लिए वन से ज़्यादा समर्थ प्रतीक क्या हो सकता है। और इन उदास पंक्तियों में कैसा संगीत है। निराला का एक और गीत याद आता है।' शिशिर की शर्वरी/ हिंस्र पशुओं भरी।' हम देख सकते हैं कि शिशिर की रात किस तरह वनैले पशुओं से भरी हुई है। यह रात हमें घेरे हुए लगती है। निराला के यहाँ कितना बड़ा सिनेमा है।
मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देतीवह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थीवह मुख्य गायक का छोटा भाई हैया उसका शिष्यया पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदारमुख्य गायक की गरज़ मेंवह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल सेगायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल मेंखो चुका होता हैया अपने ही सरगम को लाँघकरचला जाता है भटकता हुआ एक अनहद मेंतब संगतकार ही स्थाई को सँभाले रहता हैजैसा समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामानजैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपनजब वह नौसिखिया थातारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गलाप्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआआवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआतभी मुख्य गायक को ढाढस बँधाताकहीं से चला आता है संगतकार का स्वरकभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथयह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं हैऔर यह कि फिर से गाया जा सकता हैगाया जा चुका रागऔर उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती हैया अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश हैउसे विफलता नहींउसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।('संगतकार' से)