इस समय उन्नत देशों से आशा की जाती है कि वे दरियादिली दिखाएँगे। वे अपनी कंपनियों से पूछें कि क्या कोरोना से उन्होंने कोई सबक़ नहीं सीखा? अपने एकाधिकार से वे पैसे का अंबार ज़रूर लगा लें लेकिन ऊपर से बुलावा आ गया तो वे उस पैसे का क्या करेंगे? वे जरा भारत को देखें। भारत ने कई जरूरतमंद देशों को करोड़ों टीके मुफ्त में बाँट दिए या नहीं?
यह तर्क निराधार नहीं है लेकिन जिस देश की कंपनी भी ये टीके बनाएगी, वह मूल कंपनी के निर्देशन में बनाएगी और उस देश की सरकार की कड़ी निगरानी में बनाएगी। उन टीकों की क़ीमत भी इतनी कम होगी कि ग़रीब देश भी अपने नागरिकों को उन्हें मुफ्त में बाँट सकेंगे।