न्यायाधीशों का आचरण सदा संदेह से भी परे होना चाहिए। वे नेता या उद्योगपति नहीं हैं। जो सरकारें ऐसी नियुक्तियाँ करती हैं, उन्हें अपनी इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं होती। कुर्सी में बैठते ही उनकी खाल दरियाई घोड़ों की तरह मोटी और सुन्न हो जाती है। राज्यसभा के इन 12 नामजदों में ऐसे दर्जनों लोगों को भी उच्च सदन में राष्ट्रपति लोग अक्सर भेजते रहे हैं, जो किसी नगरपालिका में बैठने लायक नहीं होते।
उस सर्वोच्च पद पर बैठने के बाद अब श्री गोगोई ढाई सौ की इस रेवड़ में क्यों शामिल हो रहे हैं? क्या उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करके अपने आप को काफ़ी नीचे नहीं उतार लिया है?