दूसरे शब्दों में आजकल सरकार और किसानों की यह फर्जी मुठभेड़ चलती चली जा रही है। यदि इसमें कोई बड़ी हिंसा और प्रतिहिंसा हो गई तो देश का बहुत गहरा नुक़सान हो जाएगा। इस फर्जी मुठभेड़ को रोकने का सबसे आसान तरीक़ा मैं कई बार सुझा चुका हूँ। केंद्र सरकार इन क़ानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने संसद में यह लगभग ठीक ही कहा है कि उन तीनों कृषि क़ानूनों में काला क्या है, यह अभी तक कोई नहीं बता सका है। जैसे सरकार अभी तक किसानों को तर्कपूर्ण ढंग से इन क़ानूनों के फायदे नहीं समझा सकी है, वैसे ही किसान भी इसके नुक़सान आम जनता को नहीं समझा सके हैं।