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हाथरस को नाटकीय रंग देने की सरकार की कोशिश, विदेशी साजिश का लगाया आरोप

हाथरस बलात्कार व हत्या मामले के पीछे पीएफआई! जातीय दंगा कराने की थी साजिश! बड़ी फंडिंग का खुलासा! ‘जस्टिस फॉर हाथरस’ नाम से वेबसाइट बनी, फिर बंद हुई! वेबसाइट के पीछे पीएफ़आई और एसडीपीआई जैसे संगठनों का हाथ होने की आशंका! मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए फेक न्यूज़, फोटो शॉप्ड तस्वीरें, अफवाह, एडिटेड विजुअल्स का दंगे फैलाने के लिए इस्तेमाल! सीएम योगी और पीएम मोदी को बदनाम करने की साजिश!

ये सनसनीखेज़ सुर्खियां 5 अक्टूबर की सुबह से मुख्य मीडिया और वेबसाइट पर चल रही हैं। उत्तर प्रदेश की पुलिस के हवाले से ये सुर्खियां हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से एक दिन पहले दिए गये बयान को भी इन सुर्खियों से जोड़ा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था, 'जिन्हें विकास अच्छा नहीं लग रहा है, वह जातीय व सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं।' 

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सीएम का संकेत, थ्योरी हाजिर 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘राजनीतिक रोटियाँ सेंकने’ और ‘षडयंत्र’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया था। ऐसा लगा मानो वह विपक्ष के विरुद्ध राजनीतिक बयान दे रहे हों। मगर, कुछ घंटों में ही यह साफ हो गया कि सीएम योगी का यह बयान महज राजनीतिक नहीं था, बल्कि विपक्ष की घेराबंदी की पृष्ठभूमि थी। 

अब तक की सुर्खियों और मुख्यमंत्री के बयान के साथ-साथ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार के बयान को देखें, जिन्होंने हाथरस केस में बलात्कार नहीं होने की ग़लत साबित हो चुकी थ्योरी रखी थी, तो यह बात साफ है कि हाथरस केस में दंगे की साजिश का खुलासा होना बाकी है। संभव है कि ये दावे सच हों।
बगैर साजिश को समझे, पकड़े और साजिश से परस्पर गुंथे तारों को जोड़े पुलिस ने ‘खुलासा’ कैसे कर दिया! क्या मक़सद है इसका? क्या ऐसा करके पुलिस और योगी सरकार ने दंगा कराने की साजिश करने वालों को सतर्क नहीं कर दिया है? किसी केस के अनुसंधान की प्रवृत्ति को नुकसान पहुंचाने वाला रवैया है यह।

शाहीन बाग वाले पैटर्न पर?

सुर्खियों में यह बात भी है कि शाहीनबाग की तरह हाथरस केस में भी विदेशी फंडिंग, पीएफआई जैसे ‘पाकिस्तान परस्त संगठनों की सक्रियता’ दिख रही है। सवाल है कि सत्ता और कथित षडयंत्रकारियों में कौन हैं शाहीनबाग वाले पैटर्न पर? शाहीन बाग के मामले में भी पुलिस के काम करने का यही तरीका था। 

पुलिस ने मीडिया का इस्तेमाल फरवरी के पहले हफ़्ते में ही शुरू कर दिया था। मुख्य धारा का ख़ास मीडिया जो हमेशा सत्ताधारी दल के साथ वाली लाइन को लेकर चलता है, शाहीन बाग को पाकिस्तानी साजिश, पीएफआई और नक्सली संगठनों से जोड़ा जाने लगा था। इस बीच इस थ्योरी से उपजे आक्रोश को नारों के रूप में ज़ुबान देकर भड़काने की कोशिश भी सत्ताधारी दल के मंत्री, सांसद और नेता करने  लगे। फिर फरवरी के तीसरे और आखिरी हफ्ते में कुख्यात दिल्ली दंगा हुआ। उस दंगे के दौरान दिल्ली पुलिस की निष्क्रियता और भूमिका ने खुद पूर्व पुलिस अधिकारियों को चौंकाया।
वही पैटर्न यूपी पुलिस और योगी सरकार भी हाथरस केस में दिखा रही है। पुलिस के आला अधिकारी, बीजेपी के नेता, बीजेपी की आईटी सेल खुलेआम कह रहे हैं कि हाथरस में कोई बलात्कार नहीं हुआ। इसी तरह योगी सरकार दोनों पक्ष का नार्को टेस्ट कराने की घोषणा कर पीड़ित पक्ष पर ही दबाव बना रही है।

हाथरस में भी, दिल्ली में भी 

हाथरस से बीजेपी के पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान के घर जातीय पंचायत हुई है। इसमें राजवीर सिंह ने कहा है कि बलात्कार हुआ ही नहीं। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राजवीर सिंह यह जानकारी देते हैं कि इस मामले में झूठ का पर्दाफाश करने के लिए सबका नार्को टेस्ट कराने और सीबीआई की जाँच की मांग उन्होंने ही की थी जिसे योगी सरकार ने मान लिया। 

एक और तसवीर वायरल हो रही है, जिसके पीछे पुलिस खड़ी है और जो पीड़ित परिवार की मदद में आने वालों को सरेआम धमकी दे रहा है। यह तस्वीर दिल्ली दंगे से ठीक पहले दिल्ली पुलिस अफ़सर के सामने कपिल मिश्रा के बयान वाली तसवीर जैसी है।
पीड़ित पक्ष से मुलाक़ात करने, उनसे सहानुभूति जताने, उनके लिए अधिक मुआवजे की मांग करने वालों के लिए मानदंड अलग है। उनके लिए धारा 144 है, महामारी एक्ट है, पुलिस की लाठियाँ हैं।

और, अब वह कथित साजिश भी है जो ‘सीएम योगी और पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए’ चल रही है। इस साजिश में शामिल लोग ‘देशविरोधी’ भी होंगे क्योंकि इसमें ‘पीएफआई जैसे संगठन हैं जो पाकिस्तान परस्त’ हैं।

मीडिया बंटा हुआ है

मीडिया पहले ही बंट चुका है। जो हाथरस केस में पुलिस और योगी सरकार की साजिश थ्योरी के साथ हैं या फिर उसे आगे बढ़ाने वाले हैं वह ‘देशभक्त’ कहलाएँगे। जो मीडिया पीड़ित पक्ष के साथ होगा उसे साजिशकर्ताओं का सहयोगी कहा जाएगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसी पैमाने और इसी तर्ज पर विपक्षी दल दंगाई और देशविरोधी करार दिए जाएंगे।

अब मीडिया का एक धड़ा अपने प्रतिस्पर्धी मीडिया को साजिशकर्ताओं से मिला हुआ, दंगे भड़कानेवाला और योगी-मोदी सरकार के ख़िलाफ़ साजिश करने वाला बताएगा। यह ठीक उसी तर्ज पर होगा जिस तर्ज पर सत्ताधारी दल अपने प्रतिस्पर्धी दलों को ‘देश विरोधी’ बताता रहा है। यह एक नया पैटर्न दिख रहा है। 

खुलासे का पैटर्न बदला

पुलिस और उसके ‘खुलासे’ का भी अजीबोगरीब पैटर्न है। पहले जब पुलिस कोई खुलासा करती थी तो अभियुक्त सामने होता था, सबूत सामने होते थे और पूरी स्टोरी एवं उससे जुड़े एक-एक तार सामने होते थे। अब ऐसा नहीं है। अब हुक्मरान पहले बयान देते हैं। उस बयान के हिसाब से केस दर्ज होता है। पुलिस का ‘खुलासा’ होता है। उस खुलासे में न तथ्य होते हैं, न सबूत और न ही मुकम्मल जाँच के बाद परस्पर गुंथे हुए तार। यह टास्क तो वे आगे पूरा करेंगे। पहले थ्योरी ले लीजिए।

फिर इस थ्योरी का राजनीतिक तौर पर और फिर मीडिया के द्वारा मनमाफिक इस्तेमाल कर लीजिए। सरकार और पुलिस की थ्योरी का डंका मीडिया पीटता है। मीडिया को सबूत नहीं चाहिए। वह बाइट मीडिया है। सरकार ने बोला। पुलिस ने बोला। दोनों की बाइट है। हो गयी साजिश। हो गया भंडाफोड़। कौन हैं दोषी, कौन हैं जिम्मेदार?- पुलिस इसका पता लगा रही है। 

क्या दब जाएंगे सवाल?

जाहिर है इन सुर्खियों में खो जाएंगे वे तमाम सवाल जो हाथरस रेप-मर्डर केस में वास्तव में जिन्दा रहने चाहिए थे। यह आम बलात्कार का केस नहीं है, जिसकी किसी अन्य केस से तुलना हो। यह दबंग पड़ोसी जिसका जातीय अभिमान बयान बनकर सामने है कि वे दलितों से दूरी बनाकर रहते हैं बलात्कार कैसे कर सकते हैं! मानो छुआछूत बलात्कार की वजह नहीं सुरक्षा की गारंटी हो! 

लगातार छेड़छाड़ और फिर एक दिन सामूहिक बलात्कार। बिना कपड़ों में मुआहाल स्थिति देखकर भी बलात्कार का केस दर्ज नहीं होना, छेड़छाड़ का केस भी देर से दर्ज होना, बाद में गैंगरेप का केस, इलाज नहीं मिल पाने से लेकर मौत तक की कहानी और फिर गैंगरेप नहीं होने की बात से लेकर लाश को जबरदस्ती फूंक डालने तक का किस्सा भयानक है।
यह वास्तव में शासन और सरकार के आपराधिक कृत्य की कहानी है।
मीडिया को कवरेज से रोकना, विपक्ष को पीड़ितों से मिलने नहीं देना और पीड़ित परिवार पर तमाम तरह का दबाव बताता है कि साजिश मामला दबाने की हो रही है, साजिश पीड़ित परिवार के ख़िलाफ़ हुई है, हो रही है। इस साजिश का पर्दाफाश करने के लिए न एसआईटी है, न सीबीआई जाँच।
नार्को टेस्ट और ये जाँच पीड़ित परिवार को झूठा बताने के लिए है या फिर अभियुक्तों के ख़िलाफ़ सबूत जुटाने के लिए- यह महत्वपूर्ण बात है। लेकिन, जिस तरीके से अभियुक्त के पक्ष में प्रशासन और सरकार दिख रही है उससे सही जाँच ही सवालों के घेरे में है। पीड़िता से हमदर्दी रखने वालों के लिए अब मुश्किल घड़ी है कि कहीं उन्हें भी किसी साजिश का हिस्सा न क़रार दिया जाए। 
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प्रेम कुमार
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