डर इस बात का नहीं है कि हमें बुखार नहीं है फिर भी बुखार जैसा लग रहा है। डर इस बात का ज़्यादा है कि सही में तेज़ बुखार होने पर भी हम कहीं बर्फ़ की पट्टियाँ रख-रखकर ही उसे दबाने में नहीं जुट जाएँ। जब बहुत सारे लोग ऐसा करने लगेंगे तब मान लेना पड़ेगा कि आपातकाल तो पहले से ही लगा हुआ था।
आपातकाल के बाद आडवाणी जी ने मीडिया की भूमिका को लेकर टिप्पणी की थी कि : ‘आपसे तो सिर्फ़ झुकने के लिए कहा गया था, आप तो रेंगने लगे।’ आडवाणी जी तो स्वयं ही इस समय मौन हैं, उनसे आज के मीडिया की भूमिका को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया कैसे माँगी जा सकती है?