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रोहिंग्याओं को मुद्दा बना कर किसकी ज़मीन मज़बूत कर रही है आप?

आम आदमी पार्टी पर भारतीय जनता पार्टी की 'बी टीम’ या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की दत्तक संतान होने के आरोप यूं ही नहीं लगते हैं। खुद आम आदमी पार्टी भी मौके-मौके पर अपने चाल-चलन से इन आरोपों की पुष्टि करती रहती है। इस समय दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाक़े में सांप्रदायिक दंगे के बाद अतिक्रमण हटाने के नाम पर वहां के रहवासियों के मकान-दुकान तोड़े जाने के मामले में भी वह यही कर रही है।

आम आदमी पार्टी दिल्ली में पिछले साढ़े सात साल से सरकार चला रही है। पिछले दोनों विधानसभा चुनाव में उसे मिले भारी बहुमत में मुसलिम समुदाय के एकतरफ़ा समर्थन का भी योगदान रहा है। इसके बावजूद उसने हर मौक़े पर यह सावधानी बरती है कि उस पर सर्वसमावेशी पार्टी या मुसलमानों की हितैषी होने का 'आरोप’ चस्पां न हो जाए। यही नहीं, वह कई मौकों पर अपने राजनीतिक कर्मकांडों के जरिए यह जताने में भी पीछे नहीं रही कि वह बीजेपी से ज़्यादा हिंदू हितों का ध्यान रखने और उनकी धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करने वाली पार्टी है।

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इस बार हनुमान जयंती के मौक़े पर जहांगीरपुरी इलाक़े में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर भी आम आदमी पार्टी ने उसी तरह चुप्पी साधे रखी, जिस तरह ढाई साल पहले वह नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाद आंदोलन के समय तटस्थ बनी हुई थी या उसके बाद दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों पर मौन रही थी या कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार और भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए तबलीगी जमात के बहाने मुसलमानों को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा रही थी।

जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद जब भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम ने दिल्ली पुलिस के सहयोग से उस इलाके के रहवासियों के मकानों-दुकानों को बुलडोजर से रौंदना शुरू किया, तब भी आम आदमी पार्टी की चुप्पी बरकरार रही। उसकी चुप्पी टूटी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बुलडोजर की कार्रवाई रुकने के बाद। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो सिर्फ ट्वीट करके लोगों से शांति की अपील कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली लेकिन उनके पार्टी नेताओं के जो बयान आए, उनसे भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी की राजनीतिक जुगलबंदी को आसानी से समझा जा सकता है। 

आमतौर पर सरकारें जब भी कानून को खूंटी पर टांग कर कोई काम करती हैं तो उन्हें अपने किए के लिए जनसमर्थन की जरूरत होती है। इसके लिए उन्हें  ऐसे नागरिकों के निर्माण की जरूरत होती है जो हर हाल में उनका समर्थन करे। दिल्ली में यह प्रयोग सिर्फ नागरिकों तक सीमित नहीं रह गया बल्कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार ने भी अलग अंदाज में न सिर्फ निर्ममतापूर्वक लोगों के आशियाने ढहाए जाने का समर्थन किया बल्कि केंद्र में सत्तासीन भाजपा सरकार के विभाजनकारी राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने का काम भी किया।

जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के मौके पर पैदा हुए सांप्रदायिक तनाव के लिए भाजपा ने तो ध्रुवीकरण की अपनी पारंपरिक राजनीति के मुताबिक मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया।

स्थानीय पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई भी भाजपा की प्रतिक्रिया के अनुरूप ही रही, लेकिन आम आदमी पार्टी ने इस मामले में बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों का भी प्रवेश करा दिया। उसकी ओर से उसके नेताओं, राघव चड्ढा और विधायक आतिशी सिंह के अलग-अलग लेकिन एक जैसे जो बयान आए, वे भाजपा के एजेंडा को आगे बढ़ाने के साथ ही चिंता पैदा करने वाले हैं। इन नेताओं ने अपने बयानों में साफ कहा कि जहांगीरपुरी में तनाव भाजपा ने अपने ही द्वारा बसाए गए रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी घुसपैठियों के जरिए फैलाया है और अगर यह पता चल जाए कि भाजपा ने कहां-कहां इन रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया है तो यह जानना आसान हो जाएगा कि अब और कहां-कहां सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं।

दिलचस्प है कि केंद्र सरकार और भाजपा जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक आधार पर की गई मकानों-दुकानों की तोड़फोड़ को हमेशा की तरह अपना चेहरा बचाने के मकसद से अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई बता रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार इस मामले को खुलकर सांप्रदायिक तो बना ही रही है, साथ ही परोक्ष रूप से इसे जायज भी ठहरा रही है।

kejriwal aap on rohingya bangladeshi muslims amid jahangirpuri issue - Satya Hindi

दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के नेताओं से पूछा जा सकता है कि जब केंद्र की भाजपा सरकार कथित तौर पर रोहिंग्या मुसलमानों या बांग्लादेशी शरणार्थियों को इस इलाके में या अन्य इलाकों में भी बसा रही थी तब दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी क्या कर रही थी? जहांगीरपुरी इलाका एक विधानसभा क्षेत्र है, जहां से आम आदमी पार्टी लगातार चुनाव जीत रही है। सवाल है कि क्या वहां के विधायक को इस बात की जानकारी नहीं होनी चाहिए कि उसके क्षेत्र में किन नए लोगों को बसाया जा रहा है? लेकिन यह मसला इससे पहले कभी चर्चा में नहीं आया तो अब अचानक इस मामले में रोहिंग्या मुसलमान कहां से आ गए?

ऐसे समय में दिल्ली की निर्वाचित सरकार को अपने मतदाताओं और नागरिकों के बीच होना चाहिए और केंद्र सरकार की किसी भी अनुचित कार्रवाई का खुलकर विरोध करना चाहिए। लेकिन आम आदमी पार्टी ऐसा करने के बजाय इस तनाव को बढ़ाने और इसे पूरी तरह सांप्रदायिक शक्ल देने की कोशिश कर भाजपा और उसकी केंद्र सरकार के एजेंडा को आगे बढ़ा रही है।

दरअसल, आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों ही यह बात अच्छी तरह जानती हैं कि अगर ऐसे मामलों में रोहिंग्या मुसलमानों का जिक्र आ जाए तो लोगों का ध्यान बांटा जा सकता है और प्रकारांतर से तोड़फोड़ की इन नाजायज कार्रवाइयों का इस्तेमाल राजनीतिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

यह बात सब जानते हैं कि केंद्र सरकार पहले ही दिल्ली सरकार के काफी पर कतर चुकी है और अब तो उसकी हैसियत व्यावहारिक तौर पर लगभग शून्य जैसी हो गई है। तीनों नगर निगमों को फिर से एक कर दिए जाने के बाद दिल्ली अब व्यावहारिक तौर पर एक राज्य के बजाय फिर से एक महानगर में तब्दील हो गया है। एक आधे-अधूरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को हासिल शक्तियों से ज़्यादा शक्तियां अब दिल्ली के महापौर को हासिल हो चुकी हैं। यही वजह है कि नगर निगम ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली पुलिस के सहयोग से जहांगीरपुरी में तोड़फोड़ की कार्रवाई को जिस तरह अंजाम दिया उससे दिल्ली का एक नया चेहरा सामने आया है।

'डबल इंजन की सरकार’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया हुआ राजनीतिक फॉर्मूला है। भाजपा और आम आदमी पार्टी के अलग-अलग झंडों और अलग-अलग चुनाव चिन्हों की वजह से केंद्र की भाजपा सरकार और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के बीच यह डबल इंजन का फार्मूला दिल्ली में उस तरह से सक्रियता से काम नहीं कर सका जैसा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, असम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में कर पा रहा है। तीनों नगर निगमों का एकीकरण करके उसे दिल्ली सरकार से ज्यादा अधिकार दे देने के बाद अब दिल्ली के लोगों को भी एक तरह से डबल इंजन की सरकार मिल गई है।

विचार से ख़ास

अपने राजनीतिक एजेंडे के मुताबिक मनमाने कामों और कार्रवाइयों के लिए डबल इंजन की सरकार बहुत मुफीद है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बुलडोजर-प्रशासन की चुनावी कामयाबी के बाद अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी गवर्नेंस का यह फार्मूला तेजी से अपनाया जा रहा है। मध्य प्रदेश के खरगोन और देश की राजधानी दिल्ली में इसे पूरी तैयारी के साथ आजमाया गया है। बुलडोजर-गवर्नेंस के इस मॉडल को खाए-अघाए शहरी और अर्ध शहरी तबकों का वैसा ही समर्थन मिल रहा है, जैसे महंगाई और बेरोजगारी स्थायी जनाधार मिलता दिख रहा है। 

चूंकि आम आदमी पार्टी में न तो कूवत है और न ही उसका चरित्र ऐसा है कि वह गवर्नेंस के इस नए अलोकतांत्रिक मॉडल का मैदानी विरोध कर सके, लिहाजा वह इसका विरोध करने के बजाय दिल्ली नगर निगम के आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए रोहिंग्या मुसलमानों के बहाने जहांगीरपुरी मामले को सांप्रदायिक शक्ल देकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रही है। लेकिन ऐसा करते हुए वह यह भूल रही है कि भाजपा इस खेल की अपनी 'बी टीम’ से ज्यादा बड़ी चैम्पियन है।

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अनिल जैन
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