उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने के लिए अनेक माध्यम चुने जाते हैं। इनमें अनाप शनाप पैसा बहाया जाता है। नौकरशाही को इस काम में लगा दिया जाता है। अफ़सर अपनी प्राथमिकताएँ और विकास के काम छोड़कर नेताओं की आरती उतारने का काम शुरू कर देते हैं। कोरोना की महामारी से जूझते हुए इस देश को प्रजातंत्र की देह में चुपचाप दाख़िल हो रही दीग़र बीमारियों से बचाने के प्रयास होने चाहिए।
मतदाता को किसी सरकार से अपेक्षा नहीं रहती कि वह दिनों की गिनती करे और ग़रीब जनता के पैसे से हर साल - छह महीने में ढोल बजा कर उसे जबरन सुनाए जाएँ। फिर ऐसा क्यों होता है? सरकारों के इतने अधीर होने का कारण क्या है?