मोहम्मद जुबैर की हर हाल में गिरफ्तारी और अब हर हाल में उन्हें जेल से बाहर नहीं निकलने देने को मानो डबल इंजन की सरकारें आमादा हैं। यूपी सरकार की ओर से मो. जुबैर के खिलाफ एसआईटी का गठन इसी बात की पुष्टि करता है।
इससे पहले जब मोहम्मद जुबैर को पहली बार गिरफ्तार किया गया था तब उन्हें जिस मामले में पूछताछ के लिए दिल्ली पुलिस ने बुलाया था उस मामले में वे पहले से ही गिरफ्तारी से अदालती छूट पा चुके थे। लिहाजा 2018 के एक ट्वीट के मामले में उन्हें जेल में डाल दिया गया। मोहम्मद जुबैर ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक हैं जो फेक न्यूज़ का फैक्ट चेक करती है।
एडिटर्स गिल्ड, डिजी पब इंडिया फाउंडेशन, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया समेत देश के कई पत्रकार संगठनो ने मो.जुबैर की गिरफ्तारी की निन्दा की है और उनकी तुरंत रिहाई की मांग की है। कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) जैसे अंतरराष्ट्रीय जगत के पत्रकार संगठनों ने भी ऐसी ही आवाज़ बुलन्द की है। इन सबका असर सरकार पर नहीं पड़ना था, नहीं पड़ा। इस आवाज़ की अनदेखी करते हुए जुबैर पर की जा रही सख्ती क्या उचित है? जुबैर के मामले ने भारत के शासन-प्रशासन-न्यायपालिका तक पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जुबैर के लिए दुनिया भर से उठ रही है आवाज
दुनिया भर में जुबैर की रिहाई के लिए आवाज़ें उठ रही हैं। जब संयुक्त राष्ट्र ने जुबैर की गिरफ्तारी की निन्दा की और उन्हें तुरंत रिहा करने का आग्रह किया तो पता चला कि दुनिया इस गिरफ्तारी को लेकर चिंतित है। मगर, भारत में किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जर्मनी ने भी पत्रकारों की आज़ादी को लेकर भारत सरकार की ओर तंज कसे और उसके केंद्र में थे जुबैर। ऐसा क्यों है कि जुबैर रातों रात दुनिया में पत्रकारिता पर दमन के प्रतीक बन गये?
![Mohammed Zubair in judicial custody - Satya Hindi Mohammed Zubair in judicial custody - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/05-06-22/629cd562b1bf0.jpg)
नूपुर और जुबैर में बड़ा गुनहगार कौन?
अंतरराष्ट्रीय जगत में किरकिरी होने लगी। तब सत्ताधारी बीजेपी ने नूपुर शर्मा और नवीन जिन्दल को पार्टी से निलंबित और निष्कासित करने का फैसला लिया। इस फैसले के बाद अब समूचे देश में बवाल शुरू हो गया। नूपुर शर्मा का बयान फिर से जिन्दा हो गया। इसके साथ ही नूपुर के पक्ष और विपक्ष में लामबंदी ने मो. जुबैर को चर्चा के केंद्र में ला दिया।
नूपुर शर्मा यानी बीजेपी की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता अकेले जिम्मेदार न ठहरा दी जाएं, इसके लिए मो. जुबैर को भी कठघरे में खड़ा किया गया कुछ इस भाव के साथ कि न तो इन्होंने ट्वीट किया होता, न मामला इतना आगे बढ़ा होता।
नूपुर के खिलाफ देशभर में केस दर्ज किए जाने लगे, सुप्रीम कोर्ट से नूपुर को फटकार लगी। तब जवाब में मो. जुबैर के खिलाफ भी केस दर्ज होने लगे। जुबैर को जेल से बाहर नहीं आने देने के तेवर दिखाए जाने लगे हैं।
सीतापुर में जिन कट्टरपंथी तथाकथित महंतों के बयानों को ट्वीट करने के मामले में जुबैर पर केस दर्ज हुए, उनमें भड़काऊ देने वाले कट्टरपंथी महंतों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जुबैर को जमानत मिली और एक नहीं, दो-दो बार सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिली। इसके बावजूद ये बेमतलब इसलिए रहे कि जुबैर की रिहाई इसके बावजूद भी संभव नहीं हो सकी।
जुबैर के खिलाफ एसआईटी क्यों?
जुबैर जिस मामले में जेल में बंद हैं उन्हें अधिक दिनों तक जेल में नहीं रखा जा सकेगा। इसे भांप कर यूपी की सरकार ने यूपी में दर्ज सारे मामलों की जांच के लिए आईजी डॉ प्रीतिंदर सिंह के नेतृत्व में एसआईटी गठित कर दी है। डीआईजी अमित वर्मा समेत एडिशनल एसपी, एसपी और इंस्पेक्टरों की टीम उनकी मदद करेगी।
निश्चित तौर पर जुबैर ने जो कुछ ट्वीट किया है उसकी पड़ताल तो होगी ही, इस बहाने उनके संपर्क, संबंध और लेन-देन तक की जांच की जाएगी। किसी न किसी बहाने जुबैर को जेल में ही रखने की तैयारी कर ली गयी दिखती है।
यह आशंका इसलिए बलवती होती है क्योंकि नूपुर शर्मा, जो पूरे विवाद की जननी है, उन पर ऐसा कोई एक्शन नहीं दिखता। इस ओर आंखें मूंदे बैठे शासन-प्रशासन-न्यायालय पर सवाल उठाने का अवसर दुनिया को मिल रहा है।
नूपुर के बयान के बाद दंगे भड़के फिर भी वह आज़ाद क्यों?
पैगंबर पर अपमानजनक टिप्पणी के बाद नूपुर शर्मा के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुए। मौत भी हुईँ। इसके अलावा उदयपुर और अमरावती की घटनाएं घटीं जिसमें नूपुर शर्मा के ट्वीट को सोशल मीडिया पर आगे बढ़ाने का बदला उनकी जान लेकर लिया गया। इसके बावजूद नूपुर शर्मा के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर कार्रवाई नहीं होने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर नूपुर की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही है? इसी संदर्भ में मो. जुबैर पर हो रही कार्रवाई को सेलेक्टिव तरीके से कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है।
![Mohammed Zubair in judicial custody - Satya Hindi Mohammed Zubair in judicial custody - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/04-06-22/629b3f4037490.jpg)
मो. जुबैर को गुनहगार ठहराने के लिए सोशल मीडिया पर लगातार कैम्पेन चलाए जा रहे हैं। कह सकते हैं कि ऐसे ही कैम्पेन नूपुर शर्मा के खिलाफ भी चल रहे हैं। मगर, बड़ा फर्क यह है कि जुबैर के खिलाफ जो कैम्पेन चल रहे हैं उनमें सत्ताधारी दल से जुड़े लोग हैं जबकि नूपुर के खिलाफ बोलने वाली ताकत विपक्ष होने की वजह से प्रभावकारी साबित नहीं हो पा रहा है।
बीते रविवार को दिल्ली में संकल्प रैली निकाली गयी जिसमें हिन्दू समुदाय के कट्टरपंथी संगठन शामिल थे। शांतिपूर्ण और अनुशासित प्रदर्शन का दावा करने के बावजूद यह प्रदर्शन इस मायने में उल्लेखनीय है कि इससे पहले शांति के लिए जुलूसों में सभी समुदाय के लोग शामिल हुआ करते थे। यह फर्क इतना बड़ा है कि शांति के मकसद को ही संदिग्ध बनाता है।वास्तव में पैगंबर के अपमान के बाद धार्मिक आधार पर हुए जुलूस-प्रदर्शन के समांतर इस संकल्प रैली को देखा जा सकता है। इसका भाव है कि ‘वे’ सड़क पर निकल सकते हैं तो ‘हम’ क्यों नहीं? दिल्ली में हुए संकल्प रैली का मकसद स्पष्ट है।
मो. जुबैर को अगर इस बात के लिए गिरफ्तार किया जाता कि उन्होंने पैगंबर के अपमान वाली नूपुर शर्मा की ट्वीट को आगे बढ़ाया है और इस तरह नफरत फैलाने का काम किया है तो यह सर्वथा उचित होता। मगर, ऐसा न कर उन्हें ऐसे मामले में गिरफ्तार किया गया है जो वास्तव में अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल है। इसके अलावा जुबैर पर दर्ज केस में बनी एसआईटी तो यूपी सरकार की ओर से की गयी ऐसी कार्रवाई है मानो यह मान लिया गया है कि जुबैर बहुत बड़े अपराधी हैं।
जहरीले बोल बोलने वाले आज़ाद हैं लेकिन उन बोलों की ओर ध्यान दिलाने वाला जेल में है और एसआईटी का सामना भी करेगा- दुनिया जुबैर के लिए आवाज़ क्यों न उठाए? क्या इसके लिए भी जुबैर को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा?
अपनी राय बतायें