हिंदुओं के दलितों और पिछड़ों में भी मुसलमानों से ज़्यादा पिछड़ापन, ग़रीबी और अशिक्षा है। असली प्रश्न यह है कि भारत के अल्पसंख्यकों के लिए हर क्षेत्र में शिखर तक पहुंचने के अवसर हैं या नहीं? अवसर हैं लेकिन आजकल वे असुरक्षित भी महसूस कर रहे हैं, यह भी सच्चाई है। असुरक्षा का कारण न तो सरकार है और न ही व्यापक समाज है बल्कि वे सिरफिरे लोग हैं, जो अपने आप को गोरक्षक कहते हैं लेकिन वे ख़ुद नरभक्षक हैं।
लंदन में बैठे-बैठे मैंने जैसे ही भारतीय टीवी चैनल खोले, मैंने देखा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयानों को काफ़ी प्रमुखता मिल रही है। मोदी ने कहा कि विरोधियों में दम हो तो वे धारा 370 और 35ए की वापसी का वादा करें। जाहिर है कि 5 अगस्त को हुए कश्मीर के पूर्ण विलय का विरोध करके कांग्रेस ने अपनी फजीहत करवा ली है। लेकिन मोहन भागवत का बयान अपने आप में अजूबा है। उनके बयान का कुछ मुसलिम नेता डटकर विरोध भी कर रहे हैं।
भागवत ने कहा कि मुसलमान यानि अल्पसंख्यक भारत में जितने ख़ुश हैं, उतने दुनिया में कहीं नहीं हैं। बहुत हद तक यह बात सही है। इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। मैं दुनिया के लगभग 70-80 देशों में गया हूं, उनमें रहा हूं, पढ़ा हूं और पढ़ाता रहा हूं। उन-उन देशों के अल्पसंख्यकों से मेरा निकट संपर्क भी होता रहा है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-छात्र होने के नाते इनके बारे में पढ़ता और लिखता भी रहा हूं। वे चाहे ईसाई देश हों या मुसलिम देश हों, वे चाहे पूंजीवादी देश हों या साम्यवादी देश हों, वे चाहे ग़रीब देश हों या अमीर देश हों, उनमें रहने वाले अल्पसंख्यक लोग अक्सर डरे हुए, कमजोर, ग़रीब और पीड़ित ही दिखाई पड़ते रहे हैं। जैसे चीन में उइगर मुसलमान, कम्युनिस्ट रुस में मध्य एशिया के पांचों मुसलिम गणतंत्रों के नागरिक, अमेरिका में नीग्रो लोग, यूरोपीय देशों के एशियाई नागरिक, नेपाल, श्रीलंका और बर्मा के मुसलमान, पाकिस्तान के शिया और हिंदू आदि!
गोरक्षक नहीं नरभक्षक
गोरक्षा के नाम पर ये लोग मुसलमानों पर हमला कर देते हैं। उनकी निंदा मोदी, बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी, कम्युनिस्ट, आरएसएस सबने एक स्वर से की है। भारत के मुसलमानों को मैंने दुबई के अपने एक भाषण में ‘दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मुसलमान’ कह दिया था, क्योंकि भारत के हज़ारों सालों के संस्कार उनकी रग-रग में दौड़ रहे होते हैं। कई अरब शेख़ मेरी बात सुनकर अचंभे में पड़ गए थे। जिन्हें मैं भारतीय संस्कार कहता हूं, उन्हें ही मोहन भागवत हिंदू संस्कार कहते हैं।