आज सुबह-सुबह दो ऐसे बुजुर्ग साथियों के फोन आ गए, जिनकी आयु 80 और 90 के बीच है। उन्होंने कहा कि आप दुनिया के हर मसले पर लिख रहे हैं लेकिन हम बूढ़ों की दुर्दशा पर किसी का ध्यान ही नहीं है। मैं उनके बारे में सोचने लगा, इतने में ही अख़बारों का बंडल आ गया। उनमें कई मार्मिक ख़बरों पर नज़र गई लेकिन मुंबई की एक ख़बर ने मेरे मित्रों की बात पर मुहर लगा दी।