तीन अंक को अशुभ मानने वाले संघ ने आज़ादी के बाद दशकों तक तिरंगा नहीं फहराया। लेकिन छद्म राष्ट्रवाद के ज़रिए राष्ट्रीय राजनीति में दाखिल होने के लिए संघ ने पहले मजबूरी में तिरंगे को अपनाया और सत्ता में आते ही भगवा को आगे बढ़ा दिया। मोदी सरकार में खुलकर बीजेपी की रैलियों, उसके सांस्कृतिक आयोजनों और यहाँ तक कि संविधान की मर्यादा की परवाह किए बगैर सरकारी कार्यक्रमों में भी भगवा लहराया जाने लगा।
अगर किसान आंदोलन और आगे बढ़ता है तो मोदी सरकार और संघ के बीच द्वन्द्व सामने आ सकता है। कुछ राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मोदी और संघ के बीच पहले से ही सब कुछ ठीक नहीं है।
लगता है संघ ने योगी को विकल्प के रूप में चुन लिया है। दरअसल, 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव भारी बहुमत से जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के फ़ैसले पर संघ का ही दबाव था।
कारपोरेट कुबेर अपना व्यापार बढ़ाने और पूंजी बनाने के लिए दूसरे दलों को भी चंदा देते हैं और सरकार बदलने पर फ़ायदा उठाते हैं। ऐसे में उनका विचारधारा से क्या लेना-देना हो सकता है।