प्रधानमंत्री मोदी। (फ़ाइल फ़ोटो)
प्रधानमंत्री के पास तो अपने मन की बात कह देने के कई ज़रिए हैं। नागरिकों को अगर अपनी कोई बात प्रधानमंत्री से करनी हो तो कैसे करें? लोग भी बहुत कुछ कहना चाहते हैं। पर कैमरों के सामने नहीं। क्या हम ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद रख सकते हैं जिसमें प्रजा भी अपने मन की बात सीधे राजा के कानों में कह सके?
ख़राब मानसून, अकाल, सोने को गिरवी रखने जैसे आर्थिक हालात, भूकम्प, अतिवर्षा और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ तो देखते और झेलते भी रहते हैं पर मौजूदा संकट अपने तरह का पहला अनुभव है।
यह एक बहस का विषय हो सकता है कि जिस लोकतंत्र में चुनावी राजनीति ने भीड़ को ही अपनी ताक़त बनाया हुआ हो और जिसमें नायकों और खलनायकों की पहचान केवल मुँह देखकर की जाती हो, उसमें चेहरों को गमछों से ढककर दो गज की दूरी बनाए रखने को जन समुदाय अपनी जीवन शैली कैसे बना पाएगा?