भारत ने सुरक्षा परिषद का यह अपूर्व अवसर अपने हाथ से फिसल जाने दिया है। इसकी जिम्मेदारी दिल्ली में बैठे हमारे नादान नेताओं पर है, जिन्होंने विदेश नीति को चलाने का ठेका अफसरों को देकर छुट्टी पा ली है। यदि शांति-सेना का प्रस्ताव पारित हो जाता तो वह किसी के भी विरुद्ध नहीं होता।