सवाल किसी उद्योगपति गौतम अडानी के तमाम सरकारों को करोड़ों रुपये घूस दे कर महंगे दर पर बिजली बेचने का दीर्घकालिक अग्रीमेंट कर गरीब जनता और टैक्स पयेर्स की गाढ़ी कमाई हड़पने का नहीं है। सवाल यह भी नहीं है कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट संख्या (4) में वर्णित दो किस्म के भ्रष्टाचार में से एक-- कोल्युसिव (मिलकर) – किस्म के इस सिस्टमिक करप्शन की गहराई और विस्तार ने पूरे भारत की छवि दुनिया में कितनी गिराई। सवाल इसका भी नहीं है कि इतने बड़े घोटाले में कोड नेम “नुमेरो उनो” (नंबर वन) अडानी का था या नहीं या “नुमेरो उनो माइनस वन” उसकी एक कंपनी के सीईओ विनीत जैन का था या कोई और का।
तो अडानी घोटाले का “नुमेरो उनो प्लस वन” कौन है?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

अब ट्रम्प का शासन है। क्या “नुमेरो उनो प्लस वन” जिनकी सरपरस्ती में अडानी फलफूल रहा है, ट्रम्प से अपने संबंधों की दुहाई दे कर इस “उद्योगपति” को बचाएंगे और “हाँ” तो उसकी कीमत भारत को कितनी चुकानी होगी।
सवाल तो यह है कि इतने बड़े सिस्टमिक फेल्योर, जिसका खुलासा भारत की “वाचडॉग” संस्था सेबी नहीं कर पाई लेकिन जिसे अमेरिका की एजेंसी ने पूरे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के साथ उजागर किया, उसका “नुमेरो उनो प्लस” कौन है। कैसे और किस नुमेरो उनो प्लस वन की शह पर पिछले दस वर्षों में यह उद्योगपति दिन-दूना रात चौगुना अपनी तिजोरी भरता रहा और देश–विदेश में नंबर दो की कमाई का काला-सफ़ेद करता रहा और जब एक अन्य विदेश खोजी संस्था –हिंडनबर्ग—विस्तार से इसके कुकृत्यों का राजफाश किया तो क्यों सेबी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सब ने इसकी करनी पर लगातार पर्दा डाली, इसकी रक्षा की या कुकर्मों की अनदेखी की।