केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को अहमदाबाद में आयोजित 'सहकार संवाद' कार्यक्रम में अपने रिटायरमेंट प्लान का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि राजनीति से संन्यास लेने के बाद वह अपना शेष जीवन वेदों, उपनिषदों के अध्ययन और प्राकृतिक खेती को समर्पित करेंगे। उनका यह बयान सहकारिता मंत्रालय के चौथे स्थापना दिवस और सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान आया।

प्राकृतिक खेती वैज्ञानिक प्रयोग हैः शाह

शाह ने कहा, "मैंने निर्णय लिया है कि रिटायरमेंट के बाद मैं अपना जीवन वेद, उपनिषद और प्राकृतिक खेती के लिए समर्पित करूंगा। प्राकृतिक खेती एक वैज्ञानिक प्रयोग है, जो न केवल स्वास्थ्य समस्याओं को कम करती है, बल्कि कृषि उत्पादकता को भी बढ़ाती है।" उन्होंने रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, थायरॉयड और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का जिक्र किया। शाह ने अपने निजी अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उनकी अपनी जमीन पर प्राकृतिक खेती अपनाने से फसल उत्पादन में 1.5 गुना वृद्धि हुई है।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा

शाह के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा को जन्म दिया है, क्योंकि उन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी सहयोगी के रूप में जाना जाता है। मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उस समय भी शाह उनके सबसे खास लोगों में थे। मोदी ने वहां भी उनको गृह मंत्री बना रखा था। मोदी के करियर की उठान के साथ शाह का करियर भी परवान चढ़ता रहा।
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मोदी जब गुजरात से दिल्ली आए तो उन्होंने बीजेपी पर पकड़ बनाने के लिए अमित शाह को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया। हालांकि उस समय तक राजनाथ सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। फिर उन्होंने राजनाथ सिंह का कद कैबिनेट में घटाया और अमित शाह को अघोषित रूप से अपना नंबर 2 बना दिया। तकनीकी रूप से आज भी नंबर 2 के पद की जिम्मेदारी राजनाथ सिंह ही निभाते हैं। लेकिन बीजेपी के लोग भी जानते हैं कि असलियत में नंबर 2 सीट पर कौन है।

क्या शाह वाकई राजनीति से रिटायर होंगे

अमित शाह भी मोदी की तरह जुमले बोलकर मीडिया हेडलाइंस बनाते रहते हैं। नेता कभी रिटायर नहीं होता। ऐसे समय में जब मोदी के बाद कौन का सवाल विपक्ष लगातार उठा रहा है तो अमित शाह का यह बयान किसी के गले नहीं उतरने वाला। बीच में जब आरएसएस ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का नाम मोदी की जगह अगले पीएम के रूप में चलाना शुरू किया तो उसी समय योगी और दिल्ली के संबंधों में खटास की खबरें आने लगीं।

केशव प्रसाद की योगी को चुनौती

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अक्सर योगी को उनकी कुर्सी की चुनौती देते रहते हैं। एक बार तो उन्होंने दिल्ली आकर आलाकमान (मोदी-शाह) से मिलने के लिए डेरा जमा लिया था। फिर उन्हें समझाकर वापस भेजा गया। योगी को हटाए जाने की खबरें खूब आईं लेकिन अभी तक हटे नहीं। इस बीच आरएसएस ने भी अपने संबंध पीएम मोदी से ठीक कर लिए। ऐसे में मोदी की पहली पसंद अभी भी अमित शाह ही बने हुए हैं। सरकार के सभी महत्वपूर्ण फैसले शाह ही लेते हैं। 

केशव प्रसाद मौर्य को अभी भी अमित शाह का संरक्षण मिला हुआ है यानी योगी के बाद यूपी के सीएम पद की उनकी दावेदारी खत्म नहीं हुई है। हाल ही में अमित शाह ने लखनऊ के एक कार्यक्रम में संबोधन के दौरान केशव को अपना मित्र कहकर संबोधित किया। जबकि उसके बाद योगी आदित्यनाथ का नाम लिया लेकिन महत्व नहीं दिया। इसके बाद तमाम अफवाहों को बल मिला।

मोदी और शाह हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर केंद्र की राजनीति में पहुंचे थे। लेकिन इस समय योगी आदित्यनाथ को हिन्दुत्व का सबसे बड़ा झंडाबरदार बताया जा रहा है। वो यूपी सरकार चलाने के दौरान एक से बढ़कर एक फैसले ले रहे हैं। जिससे उनकी हिन्दुत्व के नेता के रूप में छवि और मजबूत हो रही है। उनके इस एक्शन से पता चल रहा है कि वो सिर्फ आरएसएस को महत्व दे रहे हैं। लेकिन अगले पीएम का फैसला बहरहाल नरेंद्र मोदी ही करने वाले हैं। ऐसे में अमित शाह की जगह भला कौन ले सकता है।

शाह का राजनीतिक करियर 

बीजेपी के प्रमुख रणनीतिकार अमित शाह ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत गुजरात में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के साथ जुड़कर की। हालांकि वो पहले छोटे-मोटे कारोबारी थे। 1980 के दशक में वह BJP के सक्रिय सदस्य बने और जल्द ही अपनी संगठनात्मक क्षमता और रणनीतिक कौशल के लिए पहचाने जाने लगे। गुजरात में BJP की सरकार में उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले, जिनमें गृह और सहकारिता जैसे क्षेत्र शामिल थे। शाह ने 2014 में BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को अभूतपूर्व सफलता दिलाई, खासकर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में, जहां उनकी रणनीतियों ने BJP को प्रचंड बहुमत दिलाया। 

राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव और चुनौतियां

2019 में केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा, आंतरिक नीतियों और सहकारिता जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) जैसे बड़े फैसलों में उनकी अहम भूमिका रही। शाह ने सहकारिता मंत्रालय के तहत देश में सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए, जिसमें गुजरात मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का प्रयास शामिल है। हालांकि, उनकी नीतियों और कठोर प्रशासनिक शैली ने कई बार विवादों को भी जन्म दिया, लेकिन उनकी दृढ़ता और कार्यकुशलता ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक मजबूत व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया। उनकी हालिया घोषणा, जिसमें उन्होंने रिटायरमेंट के बाद वेद, उपनिषद और प्राकृतिक खेती पर ध्यान देने की बात कही, उनके व्यक्तित्व के एक नए आयाम को दर्शाती है।
विपक्ष ने 2002 के गुजरात दंगों में मोदी के साथ अमित शाह का नाम भी लिया। कुछ मामले अदालतों में पहुंचे। जहां से दोनों ही नेताओं को क्लीन चिट मिली। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई करने वाले जस्टिस लोया की मौत हो गई। यह मौत विवादास्पद रही। विपक्ष ने इसमें भी उनका नाम लिया। लेकिन कुछ भी साबित नहीं हो पाया।  
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बेटे जय शाह की यात्रा अमित शाह के बेटे जय शाह भी कारोबारी थे। लेकिन इस समय वो क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी (इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल) के चेयरमैन हैं। वो भारतीय क्रिकेट की संस्था भी प्रशासक हैं। जय अमितभाई शाह दिसंबर 2024 में आईसीसी के चेयरमैन बने। वे एशियाई क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और वैश्विक क्रिकेट प्रशासन में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। जय शाह के विकास को अमित शाह के विकास के साथ जोड़कर देखा जाता है।