loader

बीजेपी की विचारधारा लोकतंत्र के लिए ख़तरा: दीपांकर

बिहार विधानसभा चुनाव में वाम दलों के प्रदर्शन से लोग हैरान हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद से ज़्यादा सफलता मिली है। क्या इसके बाद देश में एक मजबूत विपक्ष के गठन का रास्ता तैयार होगा, बंगाल चुनाव में माले की क्या रणनीति रहेगी, जनता की आवाज़ को माले कैसे बुलंद करेगा, ऐसे ही तमाम सवालों पर भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से बात की वरिष्ठ पत्रकार अनिल शुक्ल ने। 
अनिल शुक्ल

सवाल- बिहार की जीत से संतुष्ट हैं या कुछ कमी-पेशी रह गई?

जवाब- पूरी तरह संतुष्ट तो नहीं हो सकते क्योंकि लक्ष्य था एनडीए सरकार को रोकना और महागठबंधन की पूरी जीत। वह लक्ष्य तो पूरा नहीं हो पाया। हम लोग समझते थे कि पंद्रह सीट जीतनी चाहिए थी लेकिन तीन सीट कम मार्जिन से नहीं जीत पाए इसलिए, थोड़ा अफ़सोस ज़रूर है। लेकिन ओवरऑल रिज़ल्ट्स से बिहार और पूरे देश के लिए एक मज़बूत विपक्ष उभर कर आया। मुझे लगता है कि अपने आप में भी यह एक बड़ी जीत है। सरकार नहीं बदली लेकिन बीजेपी का जिस तरह से विपक्ष रहित लोकतंत्र या एक दल शासन का जो इरादा है, उस पर बिहार ने एक ज़बरदस्त चोट की है। 

सवाल- आप लोग मानकर चल रहे थे और सरकार बनती हुई दिख रही थी। अगर सरकार बनती तो ‘माले’ उसका हिस्सा होती?

जवाब- अब तो यह सवाल ‘हाइपोथेटिकल’ बन गया है। हमने सोचा था कि जो एजेंडा बनकर आ रहा था, जो 'चार्टर' था, उसे ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ का रूप  देना था। उसके इम्प्लीमेंटेशन के लिए, उसकी गारंटी के लिए हमारा जो भी रोल मुनासिब होता हम करते। शायद हम लोग अंदर नहीं रहते लेकिन उस एजेंडे के इम्प्लीमेंटेशन के लिए सरकार की मदद भी करते उस एजेंडे को जारी रखने के लिए जो आन्दोलन है, उसकी गारंटी बनते। 

ताज़ा ख़बरें

सवाल- अगर ज़्यादा बड़ा प्रेशर होता, आपकी अपनी रेंक एंड फ़ाइल का और सहयोगी दलों का भी, तो क्या शामिल हो सकते थे? 

जवाब- जो नहीं हो पाया उसको लेकर अब चर्चा करके क्या होगा, लेकिन हमें नहीं लगता है कि इसमें कोई ऐसी बाध्यता है कि सरकार में शामिल होकर ही कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर जिस समय देवेगौड़ा और आईके गुजराल की सरकार थी, उस समय सीपीआई ने सरकार में हिस्सा लिया। इंद्रजीत गुप्ता इस देश में गृहमंत्री थे, चतुरानन्द मिश्र जी कृषि मंत्री रहे लेकिन मेरे ख़याल से उसको बहुत ज़्यादा लोग याद नहीं रख सके जबकि जो यूपीए वन की सरकार थी और जिस समय लेफ़्ट के पास अच्छी ताक़त थी और उस दौर में, जो थोड़ा एजेंडा बदला। मनरेगा जैसा क़ानून बना, फ़ॉरेस्ट एक्ट, राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट जैसे ढेर सारे क़ानून बने। हमें लगता है उस दौर में ये जो एजेंडा थोड़ा शिफ़्ट हुआ था, उसमें लेफ़्ट की बड़ी भूमिका थी। लोग उस भूमिका को ज़्यादा याद रखते हैं बनिस्पत इंद्रजीत जी या चतुरानन्द जी के लेफ़्ट के मंत्री होने की। 

लेफ़्ट के मंत्री बनकर (अब कुछ अलग टाइप के मंत्री हों तो अलग बात है) मेरे ख़याल से लेफ़्ट की ताक़त बढ़ने से, 'माले' जैसी पार्टी की ताक़त बढ़ने से जनता को जीत हासिल होती है- बाहर भी और अंदर भी। लोग ये देखना चाहते हैं, उसके लिए जो भी रास्ता ठीक हो।

left in bihar election 2020 - Satya Hindi

सवाल- रिज़ल्ट के बाद आपने बयान दिया था कि कांग्रेस को ज़्यादा सीट दी गईं। अगर पचास परसेंट कांग्रेस को मिलती और पचास परसेंट आपको तो नतीजे अलग होते?

जवाब- पचास परसेंट तो मैंने नहीं कहा था। मैंने कहा था जैसे मान लीजिये 2015 में 41 सीट पर कांग्रेस लड़ी थी। 41 पर लड़कर यह एक अच्छा प्रदर्शन था। इस बार उसका जीत का जो प्रतिशत है वह घटकर बहुत नीचे रह गया। उसी एंगल से हमने सोचा था कि ये जो संख्या है बहुत बड़ी संख्या है। कांग्रेस की जो तुलना थी, उस स्थिति में, उतने पर वो कॉन्संट्रेट करती तो कांग्रेस के लिए भी फायदेमंद होता और हम लोगों को भी ज़्यादा सीटें मिलतीं। सीपीआई, सीपीएम, आरजेडी- सबके लिए बेहतर होता। 

भट्टाचार्य कहते हैं, ‘जो फ़र्स्ट फ़ेज़ का चुनाव था, उसमें हमारा प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। हम लोग आठ सीट पर लड़े और सात पर जीत हासिल की। उस फेज़ में अगर हमें 15 सीट या 20 सीट मिलतीं तो हमारा स्ट्राइक रेट 90 परसेंट होता। उस हिसाब से लड़ पाते और जीत पाते तो आज परिदृश्य कुछ और होता।’

सवाल- आप तो ज़मीनी पार्टी हैं। पहले आप को अंदाज़ा नहीं था कि कांग्रेस इतनी ख़राब हालत में है। आपने पहले क्यों नहीं स्टैंड लिया?

जवाब- आरजेडी और कांग्रेस के बीच आपस में तय हुआ था सीटों के बारे में। वहाँ उस तरह का कोई 'कलेक्टिव डिस्कशन' और कोई 'कलेक्टिव नेगोसिएशन' जैसा माहौल नहीं था। अलग-अलग पार्टियों के बीच में बात हुई। हम लोगों की आरजेडी के साथ ही बातचीत हुई। अब आगे चलकर ही सीट शेयरिंग के लिए समीक्षा हो सकती है।   

सवाल- अभी तक नतीजों को लेकर आप लोगों ने मिल कर कोई समीक्षा नहीं की है? 

जवाब- नहीं। अभी तो हम लोगों के बीच दो बातें हुईं हैं। एक तो कई सीटें, जहाँ बहुत कम मार्जिन से हम हारे हैं (आरजेडी के लोग भी हारे हैं, पूरे महागठबंधन के लोग हारे हैं)। करीब 12 ऐसी सीटें हैं। उन सीटों पर हम लोगों ने 'री-काउंटिंग' की मांग की थी लेकिन वह नहीं मानी गई। अभी हम लोगों का ज़ोर है कि काउंटिंग की सीसीटीवी फुटेज  हमें उपलब्ध करवाई जाए ताकि हम उसे 'क्लोज़ एग्जामिन' कर सकें। अगर लगे कि इसमें कहीं किसी क़िस्म की अनियमतता बरती गई है तो उस पर आगे के बारे में हम लोग सोच सकें। 

दूसरा, बिहार में अभी एक मज़बूत विपक्ष के रूप में भूमिका निभानी है। अभी आपने देखा कि किस तरह नीतीश जी ने, मोदी जी ने मेवालाल चौधरी को मंत्री के रूप में थोपने की कोशिश की। जिस तरह से महागठबंधन द्वारा तगड़ा विरोध हुआ, मीडिया से लेकर जनता तक, सभी ने हमें सपोर्ट किया। तीन दिन के भीतर उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। यह  एक ज़बरदस्त मिसाल है कि अगर मज़बूत विपक्ष हो और जनता जागरूक हो, सड़क पर हो, तो क्या नहीं किया जा सकता है। 

अभी बिहार में मंगल पांडे को फिर से स्वास्थ्य मंत्री बना दिया गया है, जबकि 'चमकी' बुखार से लेकर पूरे कोविड 19 तक वह एक निकम्मे मंत्री साबित हुए हैं। ऐसे ही गया ज़िले में, दूसरा 'हाथरस काण्ड' हुआ लेकिन इसे दबाकर रखा गया ताकि चुनाव में इसका असर न पड़े। अब इस लड़की और उसके परिवार को इन्साफ मिले, इसे लेकर बिहार में बड़ी आवाज़ बुलंद हो रही है। 

बिहार चुनाव के दौरान दीपांकर भट्टाचार्य की सत्य हिन्दी से बातचीत देखिए-

सवाल- ये जो मार्जिनल विक्ट्री हुई है सत्ता दल की और जिन सीटों पर आप लोगों का जीत का दावा है, इसे लेकर कोर्ट में जाने का भी कोई प्लान है?

जवाब- इसीलिए, हम लोगों ने माँगी है सीसीटीवी की फुटेज। वह हमारा अधिकार है। उसे देख कर हम लोग तय करेंगे कि किस तरह आगे बढ़ें। कोर्ट  में भी जाने का एक प्रावधान है। 

सवाल- चुनाव आयोग क्या कह रहा है फुटेज देने के बारे में?

जवाब- हम लोगों ने तो आरओ से माँगी है। आपको पता है कि गुजरात में सीसीटीवी फुटेज को आधार बनाकर दो पिटीशन दायर हुई थीं। हमें उम्मीद है कि यहाँ भी मिलनी चाहिए। दो-चार दिन में रिस्पॉन्स नहीं आया तो आगे के बारे में सोचेंगे। 

सवाल- एक बार फिर से कांग्रेस की बात करें। अब रिज़ल्ट्स के बाद कांग्रेस को कैसे देखते हैं?

जवाब- हम समझते हैं कि कांग्रेस पार्टी खुद भी सोचेगी। कांग्रेस अभी भी देश में विपक्ष की एक बड़ी पार्टी है। इसलिए कांग्रेस की जो भूमिका बननी चाहिए इस दौर में, वह इस भूमिका को निभाए। हम तो यही सोचेंगे। 

सवाल- क्या आप राष्ट्रीय स्तर पर भविष्य के साथी के रूप में कांग्रेस को देखते हैं?

जवाब- अभी अखिल भारतीय स्तर पर तो ऐसा कोई सिंगल मोर्चा उभर कर आया नहीं है। अगर बिहार को लें तो वह एक तरह का ख़ाका है। जिस तरह का गठबंधन बिहार में बना है, अगर यह गठबंधन आगे बढ़ता है (एक संभावना के तौर पर मैं इसे देखता हूँ) तो लेफ़्ट की ताकतें, समाजवादी विचारधारा की ताकतें और कांग्रेस। 

एक प्रकार से कहें तो आज़ादी के आंदोलन की तमाम धाराएं, आज उन धाराओं के बीच में एक संवाद, उनके नज़दीक आने की एक प्रक्रिया शुरू हुई है। आरएसएस, वो धारा जो आज़ादी के आंदोलन में बिलकुल ग़ायब थी, न सिर्फ़ ग़ायब थी बल्कि आज़ादी के आंदोलन के ख़िलाफ़ खड़ी थी, उसके साथ जो वैचारिक संघर्ष रहा, वह अब फिर दिखाई पड़ रहा है देश में।

left in bihar election 2020 - Satya Hindi

सवाल- पिछले कई दशकों में साम्प्रदायिकता की बड़ी घटनाओं के साथ कांग्रेस का नाम जुड़ा रहा है। 80 का पंजाब, कश्मीर, दिल्ली के सिख विरोधी दंगे, बाबरी मसजिद का ताला खोलना, शाहबानो पर उलट-पुलट और अब राहुल गाँधी और दूसरे कांग्रेसियों का तथाकथित 'सॉफ्ट हिन्दु इज़्म'? बीजेपी और इनमें कैसे फ़र्क़ देख रहे हैं आप?

जवाब- अब सॉफ़्ट और हार्ड में (जैसा अभी आपने शब्द इस्तेमाल किया) फ़र्क़ तो है ही। भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ सम्पूर्णता में, समग्रता में, निर्णायक लड़ाई होनी चाहिए। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैचारिक धरातल पर। उसमें कांग्रेस की जो भी भूमिका बन सकती है बने। उस पर निर्भर करने की बात तो कोई नहीं कर रहा है।

सवाल- कम्युनिस्ट आंदोलन का इतिहास है- शत्रु नम्बर एक और शत्रु नम्बर दो ढूंढते रहने का। आपको नहीं लगता है कि इस सोच ने वामपंथी-जनतांत्रिक आंदोलन को काफी नुकसान पहुँचाया है? 

जवाब- किसी पुराने दौर से आज के दौर की तुलना ठीक नहीं है। आज जैसा दौर आया है, भारतीय जनता पार्टी का जैसा दबदबा बन रहा है, उसकी विचारधारा हमारे देश में लोकतंत्र के लिए, संविधान के लिए ज़बरदस्त खतरा है। एक बहुत बड़ी आपदा है- आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक। हम बदलाव और सामाजिक परिवर्तन की पार्टी हैं लेकिन हमें आपदा प्रबंधन के बारे में भी तो सोचना पड़ेगा। ये जो हम आपदा का सामना कर रहे हैं उसे रोकने में हम क्या भूमिका निभा सकते हैं, यह भी सोचना पड़ेगा? 

आज की तारीख में बीजेपी के साथ किसी और पार्टी की तुलना नहीं हो सकती। यह एक नम्बर की टारगेट है और बनी रहेगी जब तक हमारे इस लोकतंत्र में सांस लेने की जगह न बने। यह तमिलनाडु जैसे उन राज्यों में भी टारगेट नम्बर वन है जहाँ अभी यह विधानसभाओं में बड़ी ताकत नहीं है लेकिन उसका वैचारिक दबाव, केंद्र की उसकी सरकार का दबाव, आप महसूस कर सकते हैं। जिन्हें लोकतन्त्र चाहिए, जिन्हें संविधान चाहिए, उनके सामने बहस की कोई गुंजाइश नहीं है कि बीजेपी दुश्मन नंबर एक है या नहीं। 

left in bihar election 2020 - Satya Hindi

सवाल- बंगाल के चुनाव के लिए आप लोगों की गठबंधन की क्या परिकल्पना है?  

जवाब- बिहार और बंगाल में कुछ समानता भी है, कुछ फ़र्क़ भी है। मोटे तौर पर जिन हालातों में बिहार में चुनाव हुए, लगभग वैसे ही हालात बंगाल में भी रहेंगे। कोरोना का असर, लॉकडाउन की मार, मुद्दे भी काफी मिलते-जुलते हैं। हमारी प्राथमिकता रहेगी कि जैसे बिहार में पच्चीस सूत्रीय चार्टर बन के आया था, वैसा ही यहाँ भी बने। चुनाव के लिए 'पीपल्स चार्टर' बने। बीजेपी की कोशिश रहती है, जैसा कि बिहार में हमने देखा, कि राज्य के चुनाव में मोदी जी, केंद्र सरकार और उसकी नीतियां-ये सब विमर्श से बाहर रहें। हमारी कोशिश होगी कि बंगाल के चुनाव में केंद्र सरकार और उसकी नीतियों को भी कटघरे में खड़ा किया जाए। 

भट्टाचार्य कहते हैं, ‘जिन नीतियों के ख़िलाफ़ 26 तारीख को देशव्यापी हड़ताल हो रही है उन नीतियों को, किसान जो इतने बड़े-बड़े प्रदर्शन कर रहे हैं उन नीतियों को, नई शिक्षा नीतियों को जिसके ख़िलाफ़ छात्रों-नौजवानों का आंदोलन चल रहा है, रोज़गार का सवाल। इन सभी सवालों को चुनाव का केंद्रीय विषय बनाया जाए ताकि चुनाव एकांगी न हो।’

सवाल- अभी अपने बताया कि बिहार में सीटों के तालमेल को लेकर आपसे पूछा नहीं गया। बंगाल में तालमेल कैसे होगा? बड़ा भाई कौन होगा, सीपीएम या आप लोग?

जवाब- अभी हमें नहीं पता कि सीपीएम और कांग्रेस के बीच बातचीत कहाँ तक पहुंची है। हम देखेंगे कि लेफ़्ट के बीच में जो बातचीत हो उसमें सीटों के तालमेल से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि चुनाव एकांगी न रहने दिया जाए। हमें सबसे पहले यह देखना होगा की बंगाल में कांग्रेस-लेफ़्ट का जो गठबंधन होगा, वह इस रणनीति के साथ है या नहीं। अगर इस रणनीति के साथ है तो तालमेल की गुंजाइश बनेगी और नहीं तो अलग से देखना होगा। 

सवाल- बंगाल की जो पॉलिटिकल एम्बिएंस है, 2011 में जब वोटर ने सीपीएम-सीपीआई को बेदख़ल किया था, आपको क्यों लगता है कि इन 9 सालों में उन्होंने ऐसी क्या राजनीतिक पहल कर डाली है कि लोग बीजेपी के बजाए उनको स्वीकार कर लेंगे और उनके साथ आपको?

जवाब- लोगों का अपना तजुर्बा होता है। बिहार में हमने देखा कि सन 2014 के बाद 2019 में लोगों के सोचने में फ़र्क़ आया। सन 2014 में जो नौजवान मोदी-मोदी करते थे, इस बार हमने देखा कि जैसे ही बीजेपी वाले मोदी जी का वीडियो अपलोड करते हैं, वही नौजवान 'डिस्लाइक' का बटन दबा देते हैं। हालात बदले हैं। उन्होंने महसूस किया कि रोज़गार का जो सवाल है, मोदी सरकार इसकी दुश्मन है। मोदी सरकार निजीकरण की सरकार है। जितना निजीकरण आगे बढ़ेगा उतना ही उनका भी नुकसान होगा। निजी शिक्षा जितनी महंगी होगी उतना ही उनकी मुश्किलें बढ़ेंगी। उसी तरह निजी चिकित्सा, कोविड ने उसका दर्द बता दिया है। जो सवाल कल तक महत्वपूर्ण नहीं थे आज बन गए हैं। 

2014 के चुनाव में, यहाँ तक कि 2019 के चुनाव में जो प्रवासी मज़दूर अपने घर फ़ोन करके कहते थे कि मोदी जी को एक मौक़ा ज़रूर देना, विकास करेंगे, लॉकडाउन के बाद वही मज़दूर कहते हैं कि इनको सबक़ ज़रूर सिखाना। ये सारे सवाल बंगाल में भी हैं और बंगाल में लेफ़्ट अभी भी एक मज़बूत ताकत है और लोगों को भरोसा है लेफ़्ट पर।


दीपांकर भट्टाचार्य, महासचिव भाकपा (माले)

सवाल- सीपीएम-सीपीआई ने बंगाल, केरल और त्रिपुरा में अपने शासन के दौरान भूमिहीन किसान और कृषि मज़दूरों की राहत के लिए कोई सॉलिड काम नहीं किया है?

जवाब- हाँ, उतना नहीं किया है जितनी उम्मीद थी लेकिन कुछ तो किया है। भूमि सुधार के लिए, ग्रामीण मज़दूरों के लिए जिन सरकारों ने किया है उनमें सबसे पहले वाम सरकारों पर ही चर्चा होगी। हाँ, मानता हूँ कि जितना करना चाहिए था, उतना नहीं किया। भूमि सुधार तभी हो सकता है जब जनता संगठित हो। उसमें आप किसी एक सरकार को ही ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते। 

सवाल- नैनो के लिए टाटा को ज़मीन देना जिसके चलते उनकी 'प्रो पुअर' वाली सारी इमेज छिन्न-भिन्न हुई और ममता राजनीति में ऊपर आ गयीं? 

जवाब- हाँ, वह एक गलत फैसला था। हम लोगों ने खुद इसका पुरज़ोर विरोध किया था। नंदीग्राम और सिंगूर की अधिग्रहण की कार्रवाई, यह वाममोर्चा सरकार की भारी गलती थी। लोग लेकिन एक घटना या एक दौर से हमेशा नहीं देखते, किसानों के प्रति, गरीबों के प्रति जो प्रतिबद्धता रही है लेफ्ट फ्रंट की, वह एक रिकॉर्ड है। आज भी लोग उन पर भरोसा करेंगे।

left in bihar election 2020 - Satya Hindi

सवाल- जब आप लोग इतनी ज़मीनी लड़ाइयों से जुड़े हैं तो साम्प्रदायिता के सवाल पर, दूसरे बेसिक सवालों पर, चुनाव लड़ने के सवाल पर, सीपीआई (एमएल) क्यों नहीं नेतृत्व की कमान संभालने की पहल करता? क्यों हमेशा पीछे-पीछे, कभी आरजेडी तो कभी सीपीएम?

जवाब- नहीं, जितना संभव होता है उतना करते हैं। इसीलिये आज हम यहाँ हैं। इन तमाम सवालों पर, जहां हमारी पहलकदमी संभव है, हम लोग करते रहे हैं। बढ़ाएंगे इसको।  

सवाल- मुसलिम समाज के जो अंदरूनी सवाल हैं, 'माले' उसे कैसे लेती है? 

जवाब- इस समय जबकि संविधान और लोकतंत्र ख़तरे में है, जो अल्पसंख्यक हैं, कहीं धर्म के आधार पर, कही भाषा के आधार पर उनके लिए असुरक्षा बढ़ गयी है। जो अल्पसंख्यक हैं उन पर जो दबाव बढ़ाया जा रहा है उसे कम किया जाए। समानता क़ानून आंदोलन में जिस तरह से मुसलिम लोगों ने भाग लिया और उनकी महिलाओं ने जिस तरह से बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी निभाई वह शानदार है। हमारा काम यह है कि हम देखें कि जो लोग आंदोलन में भाग ले रहे हैं, उन्हें वीक्टिमाइज़ न किया जाए। 

सवाल- यह तो एक मुद्दा है, मैं जो बात कह रहा हूँ वह उनके भीतर के अंतर्विरोध की है (उनके जातीय और वर्गगत भेद) उन्हें लेकर। उनके बीच में भी अशरफ़ (अभिजात्य), अज़लाफ (पिछड़े) और अरज़ाल (दलित) हैं। आंदोलनों में भी अशरफ़ के मुक़ाबले अज़लफ और अरज़ाल की बड़ी हिस्सेदारी थी। उन्हें सीपीआईएमएल जैसा राजनैतिक संगठन कैसे लेता है?

जवाब- देखिये, जैसा कि आपने कहा, कम्युनिटी के जो अपने अंतर्विरोध हैं, उन्हें कम्युनिटी के लोग स्वयं हल करेंगे। हमने उस आंदोलन को उस नज़र से नहीं देखा था। हमें नहीं पता कि उस कम्युनिटी के किस हिस्से का कितना प्रतिनिधित्व उसमें हो रहा है। हमारा ज़्यादा काम किसी भी कम्युनिटी में जो सबसे ज़्यादा दबे-कुचले हैं, उन्हीं के बीच में है। हम लोगों का जब काम बढ़ेगा, हमारी सीटें बढ़ेंगी तो हाशिये पर जो लोग हैं उनके सामने ज़्यादा स्पेस होगा। 

राजनीति से और ख़बरें

सवाल- ओवैसी को आप कैसे देखते हैं? क्या वह भविष्य में आपके साथी बन सकते हैं?

जवाब- अभी भविष्य के बारे में तो कहना मुश्किल है, लेकिन हम उन लोगों में नहीं जो ये सवाल उठाएं कि ओवैसी साहब इतने चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? और लोग क्यों उन्हें वोट दे रहे हैं? हमें लगता है कि यह उनका लोकतान्त्रिक अधिकार है। हैदराबाद की पार्टी है लेकिन अब पूरे देश में फैलना चाहती है। हमने ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कि लोग उन्हें वोट क्यों कर रहे हैं? 

हमें तो ये समझ में आया कि कम्युनिटी के जो बहुत सारे सवाल हैं, (हालाँकि वह उस तरह से कम्युनिटी के सवाल नहीं हैं, वह सवाल संविधान के हैं) डेमोक्रेसी जिस तरह से खतरे में जा रही है, उससे जुड़े सवाल हैं ये। फिर भी इन्हें मुसलमानों से जुड़ा समझा जाता है। उन्हें लगा कि ये जो गैर बीजेपी, ग़ैर लेफ़्ट पार्टियां हैं, वे वोट तो लेना चाहती हैं लेकिन सवालों पर खामोश हो जाती हैं। 

कफील ख़ान की गिरफ्तारी हो जाए, उमर ख़ान की गिरफ़्तारी हो जाए, तो इन सारे सवालों पर चुप्पी सी दिखती है। हमें लगता है कि इस चुप्पी को तोड़ना बहुत ज़रूरी है। मैं आपको तीसरे चरण के चुनाव के 2 उदहारण देता हूँ। ओवैसी फेक्टर के बावजूद, चम्पारण ज़िले में महागठबंधन को एक ही सीट मिली माले को। मुसलिम बहुल इस क्षेत्र में, यहाँ ओवैसी के केंडिडेट भी थे, उसे सिर्फ़ 8000 वोट मिले। क्योंकि उन्हें पता है कि ओवैसी की पार्टी से ज़्यादा मुखर है 'माले'। अगर ओवैसी से माले की तुलना होगी तो लोग जानते हैं कि वह ज़्यादा कंसिस्टेंट है। वहां हमने 2 सीटें जीती।

 

सवाल- बंगाल में ओवैसी आपके फ़्रंट का हिस्सा बन सकते हैं? 

जवाब- देखिये, अभी तो हम ही किसी फ़्रंट का हिस्सा नहीं हैं। बंगाल की अभी क्या स्थिति बनेगी, हमको नहीं पता। ओवैसी यहाँ आकर कितनी सीटों पर लड़ना चाहेंगे, क्या करेंगे, हमें कुछ नहीं पता।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अनिल शुक्ल
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

राजनीति से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें