पीएम मोदी
लोकसभा चुनाव 2024 में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। सभी राजनीतिक दल पहले से ही चुनावी मोड में हैं। लेकिन भाजपा की तैयारी कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा बेहतर नजर आ रही है। भाजपा के चुनावी नायक पहले की तरह मोदी ही हैं। यानी भाजपा का पूरा दांव ब्रैंड मोदी पर ही है। लेकिन यह चुनाव भाजपा के लिए जितना आसान लग रहा है, उतना आसान भी नहीं है। तमाम बारीकियों को राजनीतिक विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री से समझिएः
इस सबसे उत्साहित भाजपा ने अबकी बार एनडीए के लिए चार सौ पार का नारा भी दे दिया है।खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए चार सौ से ज्यादा सीटों का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता,जनता में उनकी विश्वसनीयता मोदी सरकार की उपलब्धियां, राम मंदिर की लहर और विपक्षी गठबंधन में बिखराव और निराशा से बन रही भाजपा की तीसरी लगातार विजय की अवधारणा से काफी उम्मीदे हैं।विपक्ष खासकर कांग्रेस के कुछ नेताओं (अशोक च्हवाण, मिलिंद देवरा, विभाकर शास्त्री, आचार्य प्रमोद कृष्णम आदि) के पाला बदल ने भी भाजपा और एनडीए को उत्साहित कर दिया है।
यूं तो 1988 में पार्टी के पालनपुर अधिवेशन में राम मंदिर के मुद्दे को अपने एजेंडे में लेने का बाद हर चुनाव में यह मुद्दा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है, लेकिन अब जबकि राम मंदिर अयोध्या में आकार ले रहा है,तब भाजपा इसका पूरा श्रेय लेते हुए इसका पूरा लाभ लेना चाहती है।वहीं भाजपा का मोदी की गारंटी का नारा वैसा ही है जैसा 2014 में अबकी बार मोदी सरकार का नारा भाजपा ने दिया था।हालांकि गारंटी को नारे के रूप में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनावों में दिया था, लेकिन बड़ी राजनीतिक चतुराई से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे मोदी की गारंटी में बदल दिया और अब कांग्रेस को नया नारा गढ़ने की जरूरत पड़ी और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण का नाम भारत न्याय यात्रा रखा गया है।इसलिए स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी एनडीए जहां मोदी की गारंटी के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतर रहा है तो विपक्षी इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस ने उसका मुकाबला राहुल के न्याय से करने का फैसला किया है।
लेकिन न्याय योजना को लेकर कांग्रेस विशेषकर राहुल गांधी का आग्रह अभी भी बरकरार है।इसीलिए उनकी यात्रा को भारत न्याय यात्रा का नाम देकर इसका लक्ष्य जनता को आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय और राजनीतिक न्याय दिलाना बनाया गया है।इसे और स्पष्ट करते हुए कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रभारी जयराम रमेश कहते हैं कि आर्थिक न्याय के तहत देश में बढ़ रही आर्थिक विषमता और कुछ चुनींदा उद्योग घरानों को ही दिए जाने वाले सारे लाभ का मुद्दा उठाया जाएगा।सामाजिक न्याय के तहत समाज के पिछड़े दलित आदिवासी महिलाओं और वंचित वर्गों को उनकी आबादी के मुताबिक शासन प्रशासन में हिस्सेदारी देने और उसके लिए जातीय जनगणना कराने के सवाल को जनता के बीच ले जाया जाएगा।जबकि राजनीतिक न्याय का मतलब देश में लोकतंत्र संविधान संघवाद और संवैधानिक संस्थाओं व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाना है।
अब जबकि लोकसभा चुनावों की घोषणा मार्च के महीने में कभी भी हो सकती है,तब सीटों के बंटवारे और चुनावी प्रचार के लिए बहुत कम समय बचा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, प.बंगाल वो राज्य हैं जहां कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के साथ समझौते में चुनाव लड़ना है। जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा, गोवा, असम, मेघालय, अरुणाचल, मिजोरम, मणिपुर,हरियाणा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में ज्यादातर उसे अकेले ही चुनाव लड़ना है।असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में कहीं कुछ क्षेत्रीय दलों से समझौता हो सकता है।
सीटों की साझेदारी के मामले में एनडीए गठबंधन में भी स्थिति बहुत सामान्य व सहज नहीं है।बिहार में नीतीश कुमार के आ जाने के बाद कौन कितनी सीटें लड़ेगा यह एक यक्ष प्रश्न है। कुल चालीस सीटों में नीतीश अपनी पुरानी संख्या 17 पर लड़ना चाहेंगे जबकि चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस का अलग अलग दावा सात सात सीटों पर है।जीतनराम मांझी औऱ उपेंद्र कुशवाहा भी अलग अलग तीन से चार सीटें मांग रहे हैं। उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, जयंत चौधरी संजय निषाद के साथ सीटों का बंटवारा होने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आनी चाहिए लेकिन राजभर बिहार में भी सीटें चाहते हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे) का दावा 2019 की 23 सीटों पर है जबकि एनसीपी (अजित पवार) पिछले चुनाव में लड़ी 17 सीटें मांग रही है। ऐसे में कुल 48 सीटों में भाजपा और दूसरे सहयोगी दलों के लिए महज आठ सीटें बचती हैं।कर्नाटक में जद(एस) ने भी भाजपा से पांच सीटें मांगी हैं।