क्या प्रधानमंत्री मोदी को धोखा दिया गया है और यदि हाँ तो किसने दिया? सरकार समर्थक माने जाने एक्स हैंडल ही यह सवाल क्यों पूछ रहे हैं कि 'क्या उन्होंने भारत की कूटनीति को नुकसान पहुंचाने के लिए ओआरएफ को वित्त पोषण करके मोदी जी को धोखा दिया है?' Mr Sinha नाम के यूज़र ने लिखा, 'लगता है कि पीएम मोदी को धोखा दिया गया है... उम्मीद है कि वह उन्हें छोड़ेंगे नहीं...।' इन हैंडलों के अनुसार किसने पीएम मोदी को धोखा दिया है? इन सवालों का जवाब एक्स के दूसरे हैंडलों से मिल सकता है जिसमें ओआरएफ़, विदेश मंत्री एस जयशंकर के बेटे, अजीत डोभाल के बेटे, पीएम मोदी का नाम और अमेरिकी टैरिफ़ का ज़िक्र किया जा रहा है। 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर यह नया विवाद तब सामने आया है जब कथित तौर पर सत्ताधारी पार्टी की आईटी सेल के हैंडल्स ने मुकेश अंबानी द्वारा फंडेड थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन यानी ORF और इसके प्रमुख व्यक्तियों पर निशाना साधा। इस हमले का केंद्र विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बेटे ध्रुव जयशंकर और ORF के अध्यक्ष समीर सरन हैं। कहा जाता है कि ध्रुव जयशंकर ORF अमेरिका के कार्यकारी निदेशक हैं। एक्स हैंडलों से संकेत मिल रहा है कि इन लोगों ने प्रधानमंत्री कार्यालय और भारत सरकार के साथ विश्वासघात किया है।
एक वरिष्ठ पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने एक पोस्ट में इन आरोपों को लेकर साफ़-साफ़ लिखा, 'वाजिब सवाल: कुख्यात आईटी सेल के पेड हैंडल्स क्यों मुकेश अंबानी द्वारा वित्त पोषित ओआरएफ़ पर हमला कर रहे हैं, ध्रुव जयशंकर और समीर सरन को गाली दे रहे हैं, और कह रहे हैं कि इन लोगों ने प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ विश्वासघात किया है? क्या भारत सरकार में दरार अब परमाणु स्तर पर पहुंच गई है? और अरबपति बनाम अरबपति का यह खेल क्या है?'
यह विवाद तब शुरू हुआ जब कुछ एक्स पोस्टों में दावा किया गया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के समर्थन से चलने वाले ओआरएफ़ और ध्रुव जयशंकर ने सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ काम किया है। मोदी सरकार के समर्थक माने जाने वाले रोहन दुआ नाम के यूज़र ने सूत्रों के हवाले से लिखा था कि 'एक थिंक टैंक शीर्ष नौकरशाहों और राजनीतिक हलकों से गंभीर जांच के घेरे में है, क्योंकि यह भारत की विदेश नीति में हस्तक्षेप कर रहा है, विशेष रूप से अमेरिका, फ्रांस, रूस, मेक्सिको, इटली, जर्मनी और नेपाल के साथ।' 

रोहन दुआ ने लिखा था कि सूत्रों के अनुसार, इसके असर से पिछले 8 महीनों से सिस्टम के भीतर तनाव और चिंता बढ़ रही है, खासकर भारत और अमेरिका के बीच। इसने सूत्रों के हवाले से यह भी लिखा था कि सूत्रों का कहना है कि उनको आशंका है कि यह थिंक टैंक केवल राजनेताओं और आईएफएस पर जासूसी करता है और टोक्यो, मार्सेल, जिनेवा में आयोजन करके भारत के निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है..। 
इन यूज़रों के ट्वीट को शेयर करते हुए मोहम्मद ज़ुबैर ने बीजेपी की आईटी सेल पर तंज कसा है। 

दिव्या मरुंथिया ने सूत्रों के हवाले से जयशंकर और डोभाल के बीच प्रतिद्वंद्विता की बात कहते हुए लिखा है, 'सूत्रों का कहना है कि यह थिंक टैंक केवल राजनेताओं और आईएफएस की जासूसी करता है और भारत के निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है और भारत के भीतर एक समानांतर सरकार चला रहा है। जैसे-जैसे अडानी बनाम अंबानी प्रतिद्वंद्विता तेज़ होती जा रही है और जयशंकर तथा एनएसए अजीत डोभाल के बीच तनाव की सुगबुगाहट तेज़ होती जा रही है, मोदी-शाह द्वारा नियंत्रित इस नैरेटिव में दरारों को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होता जा रहा है।'
एक अन्य पोस्ट में प्रताप नाम के यूज़र ने लिखा, 'बीजेपी ORF और अंबानी की फंडिंग को लेकर रो रही है। मजेदार बात यह है कि मोदी के अपने विदेश मंत्री के बेटे ध्रुव जयशंकर ओआरएफ़ अमेरिका चलाते हैं। वे 2019 में तब शामिल हुए जब उनके पिता विदेश मंत्री बने और अब वे इसके वाशिंगटन कार्यालय का नेतृत्व करते हैं।'

ओआरएफ़ और जयशंकर का संबंध

ओआरएफ़ को 1990 के दशक में धीरूभाई अंबानी के नेतृत्व में स्थापित किया गया था। इसके संचालन और फंडिंग में रिलायंस इंडस्ट्रीज जुड़ा हुआ है। 2019 में ध्रुव जयशंकर के ओआरएफ़ में शामिल होने और इसके अमेरिका कार्यालय की स्थापना के बाद से संगठन पर सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का आरोप लगता रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके बेटे ध्रुव दोनों ही ORF के प्रमुख आयोजन रायसीना डायलॉग में हिस्सा लेते रहे हैं। यह आयोजन विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर आयोजित किया जाता है।
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सरकार में दरार की अटकलें

सोशल मीडिया पर उठे इस विवाद ने सरकार के भीतर संभावित मतभेदों की अटकलों को हवा दी है। कुछ पोस्टों में दावा किया गया है कि यह 'अरबपति बनाम अरबपति' का मामला है, जिसमें मुकेश अंबानी और अन्य प्रभावशाली कारोबारी हस्तियों के बीच टकराव की बात कही जा रही है। हालांकि, इन दावों की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। जानकारों का कहना है कि यह विवाद भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के तनावों से भी जुड़ा हो सकता है, खासकर ट्रंप प्रशासन के भारत पर व्यापारिक टैरिफ और रूसी तेल खरीद को लेकर दबाव के बाद।

ओआरएफ़ और ध्रुव जयशंकर की ओर से इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालाँकि, ध्रुव ने पहले कहा था कि वे अपने पिता के साथ पेशेवर सीमाओं का पालन करते हैं ताकि हितों के टकराव से बचा जा सके। दूसरी ओर, ओआरएफ़ ने हमेशा अपनी स्वतंत्रता का दावा किया है, लेकिन रिलायंस के साथ इसके गहरे संबंधों ने हमेशा सवाल खड़े किए हैं।

यह विवाद न केवल सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि भारत की राजनीति और कारोबारी दुनिया में शक्ति संतुलन पर भी सवाल उठा रहा है। जब तक सरकार और ओआरएफ़ की ओर से इस मामले पर सफ़ाई नहीं आती है तब तक, यह 'अरबपति बनाम अरबपति' का खेल और सरकार के भीतर कथित दरार की कहानी सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरती रहेगी।