1853नवाब वाज़िद अली शाह के ज़माने में पहली बार हिंसक वारदात हुई। निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि बाबर के समय एक हिंदू मन्दिर को गिरा कर वहां मसज़िद बनवाई गई थी।

1859

ब्रितानी हुक़ूमत ने मंदिर और मसज़िद के बीच एक दीवार खड़ी करवा दी। मुसलमानों को अंदरूनी हिस्से का इस्तेमाल करने की इजाज़त दी गई तो हिंदूओं के लिए बाहरी आँगन छोड़ दिया गया।

1885

महंत रघुबीर दास ने जनवरी में मामला दायर कर मसजिद के बाहर बने राम चबूतरे के ऊपर छतरी बनाने की अनुमति माँगी। फ़ैजाबाद के ज़िला प्रशासन ने इससे इनकार कर दिया।

1949

मसज़िद के अंदर भगवान राम की मूर्ति पाई गई। हिंदू समूहों पर आरोप लगा कि उन्होंने वहाँ वह प्रतिमा रख दी। हिंदू और मुसलमान, दोनों पक्षों ने मामले दायर किए। सरकार ने इस इलाक़े को विवादित घोषित कर दिया और परिसर के मुख्य द्वार पर ताला जड़ दिया।

1950

गोपल सिंह विशारद और महंत परमहंस रामचंद्र दास ने फ़ैजाबाद ज़िला अदालत में याचिका दायर की। उन्होंने माँग की कि 'राम जन्मस्थान' पर मौजूद राम की मूर्ति की पूजा करने की इजाज़त दी जाए। परिसर का अंदरूनी हिस्सा बंद ही रखा गया, पर बाहरी हिस्से में पूजा की अनुमति दे दी गई।