अश्वेत और ग़ैर गोरे समाजों का अमेरिकी पुलिस एवं न्याय व्यवस्था पर भरोसा इतना कम है कि वे हमेशा उसको लेकर सशंकित रहते हैं। यही वज़ह है कि जॉर्ज फ्लॉयड के मामले में भी वे पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे कि उन्हें न्याय मिल ही जाएगा।
अमेरिका में अश्वेतों के जगह-जगह विरोध प्रदर्शनों के बीच पुलिस ज़्यादती में एक और अश्वेत के मारे जाने की ख़बर आई है।
भारत, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, यहाँ तो उस अश्वेत की नृशंस हत्या पर जू भी नहीं रेंग रही है। हम लोग क्या इतने स्वार्थी और पत्थरदिल लोग हैं?
जिस मीनियापोलिस में फ़्लॉयड के साथ ज़्यादती हुई थी, वहाँ के पुलिस विभाग को भंग करने का फ़ैसला कर लिया गया है।
क्या भारत में ऐसा सम्भव है या कभी हो सकेगा कि राष्ट्रपति भवन या प्रधानमंत्री आवास के आसपास या कहीं दूर से भी गुजरने वाली सड़क को करोड़ों प्रवासी मज़दूरों के जीवन के नाम पर कर दिया जाए?
अमेरिका के कई बड़े शहरों में अश्वेतों के हिंसक प्रदर्शनों के बाद कर्फ़्यू लगा दिया गया है।