सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं पर ख़र्च को जीडीपी के 10% तक लाने की ज़रूरत है और इस दिशा में ठोस क़दम उठाये जाने चाहिए।
बिहार में इंसेफ़ेलाइटिस से जितने बच्चे मारे गए हैं, उनमें ज़्यादातर गरीब और दलित परिवारों के हैं। इससे यह सवाल तो उठता ही है कि ऐसा क्यों हो रहा है।
क्या बिहार में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत के लिए लीची ज़िम्मेदार है? कहीं इस सवाल के पीछे सरकार और इसके स्वास्थ्य महकमे की बड़ी लापरवाही को छुपाने की कोशिश तो नहीं?
हर साल चमकी बुखार से मौतें होती रही हैं। इस बार भी इसका प्रकोप क़रीब एक पखवाड़ा पहले शुरू हो गया था लेकिन अफ़सोस की बात है कि जैसी तेज़ी अभी दिखाई जा रही है वह एक पखवाड़े पहले नहीं थी।
यूपी-बिहार में चमकी बुखार से बच्चों की सालोंसाल होती चली आ रही मौत कोई क़ुदरती क़हर नहीं बल्कि आपराधिक सरकारी लापरवाही की प्रवृत्ति का नतीजा है।
बच्चों की मौत और सोते नीतीश कुमार! जुड़िए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के साथ।
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बुखार यानी एक्यूट इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम (एईस) से अब तक 146 बच्चों की मौत हो चुकी है।