कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन का मुद्दा एक बार फिर संसद पहुँच गया है। मंगलवार को राज्यसभा में इस पर हंगामा हुआ और दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित की गई।
सरकार और शासक दल जनता के उन हिस्सों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़का रहे हैं जो उसके उन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं जो उन्हें हानिकर लगते हैं।
कृषि क़ानूनों के वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन ने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ कर लोगों को एकजुट कर दिया है। इसके अलावा, इन्होंने राजनेताओं को इस मामले से दूरी बनाये रखने के लिए कहा है।
उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद प्रशासन ने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन से जुड़े संगठनों को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर खाली करने का नोटिस दे दिया है।
16 विपक्षी दलों के नेताओं ने इसका एलान करते हुए कहा है कि वे आन्दोलनकारी किसानों के साथ है और उनके साथ एकजुटता प्रकट करने के लिए राष्ट्रपति के अभिभाषण का बायाकॉट करेंगे। इन दलों ने एक तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की माँग सरकार से की है।
सरकार शुरू से कृषि क़ानून वापस नहीं लेने और किसान आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए फूट डालने की रणनीति पर चल रही थी। ट्रैक्टर परेड के बाद उसे बहाना मिल गया है।
छह महीने के राशन-पानी और चलित चौके-चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं, क्या ऐसा मान लिया जाए?
क्या केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों पर पहले से अधिक सख़्त रुख अपनाएगी और बातचीत फिर शुरू करने में दिलचस्पी नहीं लेगी? क्या किसान संगठन ट्रैक्टर रैली और हिंसा के बाद अपने स्टैंड से पीछे हटेंगे?
आन्दोलनकारी किसानों का बहुत बड़ा जत्था लाल किला पर मौजूद है। उन्होंने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहरा दिया है।
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन कर रहे किसान राजधानी दिल्ली के अंदरूनी हिस्सों तक पहुँच चुके हैं। केंद्रीय दिल्ली के आईटीओ के पास पुलिस उन्हें रोकने की नाकाम कोशिश कर रही है।
किसान आंदोलन से संघ के एजेंडे को बहुत ज़्यादा नुक़सान होने वाला है। संघ हिंदुत्व के एजेंडे को जल्दी से जल्दी पूरा करने की जुगत में है। क्या इस कारण मोदी और संघ में मतभेद है?
26 जनवरी को किसान रैली को देश का ही नहीं विदेश का मीडिया भी कवर कर रहा है। वह एक फ़रवरी को भी यह आंदोलन कवर करेगा।
क्या कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुँचाने के लिए मोदी देश के करोड़ों किसानों की बात नहीं मान रहे हैं? क्या मोदी लाखों किसानों की मौजूदगी को किसानों की समग्र आवाज नहीं मानते? तब क्या पूरे भारत के किसानों को दिल्ली आना पड़ेगा?