दूरदर्शन की अंतिम धुन: शहनाई से चीख़ तक
दूरदर्शन तबाही के कगार पर खड़ा है। कभी वह घर-घर की आवाज़ था, अब शायद कुछ ग्रामीण इलाकों या सरकारी कार्यालयों में चलता स्क्रीन मात्र। आज यह सरकारी गोदी मीडिया का भोंडा रूप बनकर रह गया है। अब ‘सुधीर चौधरी एक्सपेरिमेंट’ से इसका क्या हाल होने वाला है बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पांडेयः