मई में ही अप्रैल महीने के लिए थोक महंगाई का जो आँकड़ा आया उसमें महंगाई बढ़ने की दर ग्यारह साल की नई ऊंचाई पर दिख रही है। पिछले साल के मुक़ाबले साढ़े दस परसेंट ऊपर।
देश में पेट्रोल 100 ₹ मंहगा बिक रहा है । ब्लैक फ़ंगस की दवा नहीं मिल रही है और चर्चा दिग्विजय सिंह पर हो रही है ? असफल सरकार या असफल समाज ? आशुतोष के साथ चर्चा में मनीषा प्रियम, विनोद कापड़ी, हरजिंदर, पंकज श्रीवास्तव और आलोक जोशी ।
मूंगफली, सरसों, वनस्पति, सोया, सूरजमुखी और पाम के पैक किए हुए खाने वाले तेल के दाम इस महीने पिछले एक दशक में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है।
ऐसे समय जब भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी पटरी पर नहीं लौटी है, खाने-पीने और घरेलू इस्तेमाल की दूसरी चीजों की कीमतें तेज़ी से बढ़ी हैं। सब्जियाँ, किराना की चीजें महंगी हुई हैं और परिवहन खर्च बढ़ा है।
पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की क़ीमतें बढ़नी रुक गईं, लेकिन हरी सब्जियों के दाम अब रसोई का बजट बिगाड़ने लगा है। दिल्ली में तो भिंडी और तोरी 90 रुपये प्रति किलो पार हो गया है।
घरेलू रसोई गैस के दाम सात साल में दोगुने हो गए हैं तो खाने की क़ीमतें पिछले एक साल में 50 फ़ीसदी बढ़ गई हैं। यानी ग़रीब के घरों का बजट तो गड़बड़ा गया है। लेकिन क्या इनसे सरकार पर भी असर पड़ा है?
पेट्रोल-डीजल-गैस के बेलगाम बढ़ते दाम का असर लोगों की जेब पर पड़ने लगा है और आने वाले दिनों में जेब का सुराख और बड़ा होता चला जाएगा। क्या मोदी सरकार महंगाई से जनता में उभरते जनाक्रोश को देख नहीं पा रही है?
खाने के तेलों के दाम इतने बढ़ गए हैं कि लोगों की पहुँच से बाहर होते जा रहे हैं। हालत यह है कि सरसों का तेल जो ग़रीबों का खाद्य तेल माना जाता है खुदरा बाज़ार में डेढ़ सौ रुपए लीटर से भी ज़्यादा का हो गया है।
वैसे तो पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था के क्षेत्र से आ रही लगभग सभी ख़बरें निराश करने वाली ही हैं, लेकिन इन दिनों बेरोज़गारी में इजाफ़े के साथ ही सबसे बड़ी और बुरी ख़बर यह है कि आम आदमी को महंगाई से राहत मिलने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं।
सितंबर महीने में महंगाई यानी मुद्रास्फीति की जो दर 7.34 फीसदी के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गई थी उसका सबसे बड़ा कारण था खाद्य वस्तुओं यानी खाने-पीने के जरूरी सामान का महंगा हो जाना।
खुदरा महंगाई 14.12 प्रतिशत बढ़ गई है, सब्जियों की कीमतों में 60 प्रतिशत का इजाफ़ा हुआ है। यह ऐसे समय हुआ है जब वित्त मंत्री बजट तैयार करने में मशगूल हैं। प्रधानमंत्री चुप हैं तो गृह मंत्री नागरिकता क़ानून को सख़्ती से कुचलने में लगे हुए हैं। क्या अर्थव्यवस्था से ध्यान हटाने के लिए यह सब हो रहा है? सत्य हिन्दी पर देखें प्रमोद मल्लिक का विश्लेषण।
पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होने के आसार हैं, जिससे पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। आख़िर क्यों ऐसा होगा और सरकार क्या करेगी? सरकार ने इस स्थिति से बचने के लिए क्या तैयारी की है? सत्य हिन्दी पर देखें प्रमोद मल्लिक का विश्लेषण।
ऐसे समय जब सरकार बार-बार कह रही है कि अर्थव्यवस्था में कुछ भी गड़बड़ नही है, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इससे जुड़ा थोक मूल्य सूचकांक नवंबर में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया। यह पिछले 71 महीने के उच्चतम स्तर पर है।
सरकार चाहे जो दावे करे, सच यह है कि देश की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। अब महँगाई दर बढ़ कर तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को एक प्रेस कान्फ्रेंस में दावा किया कि अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है और इसके लक्षण साफ़ दिखने लगे हैं।