भारत खुद को कितनी भी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बताए, उस आदमी से पूछे कि उसकी आर्थिक हालत क्या है। क्रेडिट कार्ड के उधार पर उसकी जिन्दगी चल रही है। लेकिन टीवी चैनलों पर शेयर और म्युचुअल फंड खरीदने की सलाह देने वाले आर्थिक विश्लेषक आम लोगों से असलियत छिपा लेते हैं।
आरबीआई ने शुक्रवार 7 फरवरी को रेपोरेट में कमी कर दी है। यानी वो अब बैंकों को सस्ता लोन देगा। रेपोरेट में कमी का आम लोगों और अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, जानियेः
ख़पत काफ़ी ज़़्यादा कम हो गई है। मध्यवर्ग की आय कम हुई है। बेरोजगारी बढ़ी है। महंगाई बढ़ी है। तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट में किस-किस से निपटेंगी?
एक रिपोर्ट के अनुसार खाने के सामान की क़ीमतें आख़िर कमाई यानी सैलरी या दैनिक मज़दूरी से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ने का क्या मतलब है? जानिए, एक रिपोर्ट में क्या कहा गया है।
अपनी यात्रा से जम्मू-कश्मीर के माहौल को गरमाने वाले राहुल वहां हो रहे चुनाव में उस तरह उपस्थित क्यों नहीं रहे हैं? यह सवाल हरियाणा चुनाव पर भी लागू होता है।
भारत में पर्याप्त भोजन की व्यवस्था और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून (2013) होने के बाद भी लगभग 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो रात में भूखे सोते हैं। पौष्टिक आहार की तो बात ही दूर है।
रोजमर्रा की सबसे बड़ी ज़रूरत वाली तीन सब्जियों- आलू, प्याज और टमाटर की महंगाई आख़िर बार-बार आसमान क्यों छू लेती है? किसान कभी सब्जियाँ सड़कों पर फेंकने को मजबूर होते हैं तो कभी ग़रीबों की इसको ख़रीदने की क्षमता तक नहीं बच पाती?
भारतीय संविधान की मर्यादाओं को ताक पर रखकर एक लोकतान्त्रिक देश का प्रधान धार्मिक अनुष्ठान करने में व्यस्त है। देश का युवा बेरोजगार है। उसकी हताशा का लेवल सत्ता माप नहीं पा रही। गरीब जनता 5 किलो राशन पर निर्भर है। मध्यम वर्ग के लिए महंगाई आसमान पर है। ऐसे में क्यों नहीं इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह का पीएम मोदी वर्चुअल उद्घाटन करें और शंकराचार्य अपना अनुष्ठान करें। करोड़ों रुपये भारत सरकार के बच जाएंगे। यह सुझाव स्तंभकार वंदिता मिश्रा का हैः
टमाटर इतना महंगा क्यों है? क्या सरकार इस पर नियंत्रण के प्रयास कर रही है और वह कामयाब नहीं हो पा रही है? क्या टमाटर ही महंगे हैं या फिर बाक़ी सब्जियाँ और दूसरी चीजें भी?
प्रधानमंत्री मोदी सरकार आख़िर महंगाई से लेकर मणिपुर हिंसा के मामले में कुछ बोलती क्यों नहीं है? वह जो बोलती है वह क्या काफी है?
सरकार ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों के जरिेए आज से 500 प्वाइंट्स पर टमाटर बेचना शुरू किया है।
सरकार की परेशानी क्या क्या है, वो कैसे जूझती है। हम आप क्या जानें। लेकिन लेखक राकेश अचल सरकार की परेशानी कुछ-कुछ समझ रहे हैं। इसे पढ़कर आप भी उनसे समझ सकते हैं।
टमाटर की कीमतें अगले कुछ दिनों में कम हो सकती हैं। सरकार ने यह दावा किया है। सरकार ने अपनी खरीद एजेंसियों से कहा है कि वे दक्षिण भारत के राज्यों से टमाटर खरीदकर खुदरा उपभोक्ता केंद्रों के जरिए बेचें।
देश के कई राज्यों में टमाटर अब पेट्रोल से भी महंगा हो गया है। जानिए चुनिन्दा शहरों में क्या कीमतें चल रही हैं।
महंगाई वैसे भी काबू नहीं आ रही है और उस पर अब टमाटर की कीमतों ने लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है। टमाटर का इस्तेमाल सब्जियों में सबसे ज्यादा होता है, इसलिए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
महंगाई बढ़ने की रफ्तार में कमी आई है। दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रोथ के दावे भी किए जा रहे हैं। सवाल यह है कि अमीर-गरीब की खाई को पाटे बिना आप ग्रोथ का फायदा अंतिम आदमी या औरत को कैसे दे पाएंगे। चीजों के दाम सस्ते नहीं हुए हैं। गरीब जनता का सरकारी आंकड़ों से कोई लेनादेना नहीं है। वो ये जानता है कि कि महंगाई कहां कम हुई है। पेश है आर्थिक विशेषज्ञ आलोक जोशी का नजरियाः
रिजर्व बैंक ने आज मौद्रिक नीति जारी कर दी है। उसने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। महंगाई में मामूली सुधार को देखते हुए आरबीआई ने लेंडिंग रेट नहीं बढ़ाया है।
कर्नाटक में आज एक तरफ मतदान चल रहा है तो दूसरी तरफ गैस सिलेंडर की पूजा चल रही है। कई मतदान केंद्रों के बाहर इस तरह के दृश्य दिखाई दिए। 2013 में नरेंद्र मोदी ने भी लोगों से महंगे गैस सिलेंडरों को नमस्कार करने को कहा था। पढ़िए पूरी कहानीः
नवंबर और दिसंबर में महंगाई कम होती दिखी थी तो क्या मुसीबत टल गई है? जनवरी में फिर से महंगाई बढ़ने और रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी किए जाने के क्या मायने हैं?
महंगाई कम होती हुई दिख रही है, लेकिन क्या आगे भी ऐसा ही होगा? रिजर्व बैंक के आकलन क्या कहते हैं? यदि मॉनसून ख़राब हुआ तो क्या हाल होगा?
रिजर्व बैंक ने कहा महंगाई के बुरे दिन बीत गए। लेकिन क्या महंगाई की फिक्र भी खत्म हुई? कंज्यूमर कॉन्फिडेंस में सुधार दिख रहा है, लेकिन क्या इससे माल बिकने लगेगा? आज माइंड योर बिजनेस में इसी पर बात।
अक्टूबर महीने के महंगाई आंकड़े सोमवार को आने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही शनिवार को आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने संकेत दिया कि महंगाई का आंकड़ा अक्टूबर में कम हो सकता है। उनका अनुमान है कि यह 7 फीसदी से नीचे रहेगी। उन्होंने और क्या कहाः
दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है और इसका असर राजनीति पर भी पड़ रहा है। जानिए, आख़िर अमेरिका कैसे निपट रहा है और ब्रिटेन के दो प्रधानमंत्रियों ने कैसे निपटने की कोशिश की। भारत इनसे सबक़ लेगा?
अमेरिका, ब्रिटेन, चीन सहित दुनिया भर में आर्थिक हालात बेहद ख़राब होने के संकेत मिल रहे हैं तो क्या भारत इससे बच बाएगा? यदि भारत को इससे मुकाबला करना है तो इसे क्या करने की ज़रूरत है?
महंगाई के जो आंकड़े आए हैं, उनमें राहत की बात कही गई है लेकिन दूसरी तरफ दूध के दाम दो रुपये बढ़ा दिए गए हैं। आखिर महंगाई की जमीनी हकीकत क्या है।