क्या आपको भी ऐसा लगता है कि सामान की क़ीमतें तो बढ़ गईं, लेकिन मज़दूरी या फिर सैलरी नहीं बढ़ी? या फिर यदि सैलरी बढ़ भी गई तो उसकी अपेक्षा खाने-पीने की चीजों की क़ीमतें बेतहासा बढ़ी हैं?