क्या आपको भी ऐसा लगता है कि सामान की क़ीमतें तो बढ़ गईं, लेकिन मज़दूरी या फिर सैलरी नहीं बढ़ी? या फिर यदि सैलरी बढ़ भी गई तो उसकी अपेक्षा खाने-पीने की चीजों की क़ीमतें बेतहासा बढ़ी हैं?
कमाई की अपेक्षा भोजन की क़ीमतें ज़्यादा तेज़ी से बढ़ीं: रिपोर्ट
- अर्थतंत्र
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- 28 Oct, 2024
एक रिपोर्ट के अनुसार खाने के सामान की क़ीमतें आख़िर कमाई यानी सैलरी या दैनिक मज़दूरी से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ने का क्या मतलब है? जानिए, एक रिपोर्ट में क्या कहा गया है।

एक रिपोर्ट में पिछले एक साल की क़ीमतों की तुलना करने से तो कम से कम ऐसी ही बात सामने आई है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2024 में औसतन स्वस्थ भोजन की लागत पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 52% बढ़ गई है। इस बीच औसत वेतन और मजदूरी में 9 से 10% की वृद्धि हुई है। वैसे तो ऐसी स्थिति होने से सभी लोग प्रभावित हुए हैं, लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों और कम वेतन पाने वालों के लिए यह बेहद ही डरावनी तस्वीर है।