2014 के बाद कैसा-कैसा 'विकास' हुआ है? पहले अयोध्या में राम पथ था? नहीं था। अब है और बनते ही पहली बरसात में उसमें बड़े -बड़े गड्ढे पड़ गए। राम पथ न बनता तो गड्ढे कहां पड़ते, गड्ढों को 'विकास' का अवसर इस सरकार ने भरपूर दिया है। 'विकास' हुआ या नहीं?
देश में असमानता किस कदर है और यह बढ़ रहा है, उसकी ताज़ा रिपोर्ट वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर में सामने आया है। क्या आपको पता है सबसे अमीर 1 फीसदी के पास कितना हिस्सा जा रहा है?
केंद्र सरकार में मंत्री और बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने अब गाँवों, ग़रीब, मजदूर और किसानों की हालत ख़राब क्यों बताई है? जानिए, कांग्रेस ने क्या निशाना साधा है।
भारतीय संविधान की मर्यादाओं को ताक पर रखकर एक लोकतान्त्रिक देश का प्रधान धार्मिक अनुष्ठान करने में व्यस्त है। देश का युवा बेरोजगार है। उसकी हताशा का लेवल सत्ता माप नहीं पा रही। गरीब जनता 5 किलो राशन पर निर्भर है। मध्यम वर्ग के लिए महंगाई आसमान पर है। ऐसे में क्यों नहीं इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह का पीएम मोदी वर्चुअल उद्घाटन करें और शंकराचार्य अपना अनुष्ठान करें। करोड़ों रुपये भारत सरकार के बच जाएंगे। यह सुझाव स्तंभकार वंदिता मिश्रा का हैः
प्रधानमंत्री मोदी ने आज शनिवार को 75000 युवकों को नौकरियों के नियुक्ति पत्र जारी किए। अगले डेढ़ साल में करीब दस लाख लोगों को ऐसे नियुक्ति पत्र मिलेंगे। इस इवेंट के पीछे क्या है, देश में बेरोजगारी की हालत क्या है। इन्हीं तथ्यों के संदर्भ में इस इवेंट पर यह रिपोर्टः
विश्व भूख सूचकांक को आख़िर भारत ने किस आधार पर खारिज कर दिया? क्या भारत में गरीबी का स्तर उससे बेहतर है जो उस सूचकांक में दिखाया गया है?
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के पहले साल में यानी 2020 में कितने लोग ग़रीबी में धकेल दिए गए, इस पर अब एक पुख्ता रिपोर्ट सामने आई है। जानिए, इससे कितने लोग प्रभावित हुए।
बेरोजगारी, गरीबी, असमानता के जिन आंकड़ों को केंद्र की बीजेपी सरकार खारिज करती रही है, अब उनको उसी बीजेपी का मातृ संगठन आरएसएस खुलेआम स्वीकार क्यों कर रहा है? क्या हालत इतनी ख़राब है?
कोरोना काल में अमीरों की संपत्ति जहाँ बेतहाशा बढ़ रही थी वहीं ग़रीबों की आय भी घट क्यों रही थी? कोरोना ज़िम्मेदार नहीं। जानिए, ऑक्सफैम ने किसे ज़िम्मेदार बताया।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 27.3 करोड़ लोगों को ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाया गया।
वैश्विक सन्दर्भ में हम ग़रीबी को मात दे रहे हैं जबकि अफ़्रीकी देशों में ग़रीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हुआ है, या यह सिर्फ़ आंकड़ों की बाजीगरी है।