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एमके स्टालिन के प्रधानमंत्री बनने में क्या दिक्कत: फारुख अब्दुल्ला 

डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के जन्मदिन पर चेन्नई में आयोजित एक रैली में भाग लेने पहुंचे नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने बुधवार को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए संयुक्त विपक्ष के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार के रुप में स्टालिन के नाम का समर्थन किया। पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए फारुख अब्दुल्ला ने कहा "क्यों? वह पीएम क्यों नहीं बन सकते? इसमें गलत क्या है?"
फारूख अब्दुल्ला ने यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक संयुक्त चुनौती की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने संवाददाताओं से यह बात कही। यहां पर उन्होंने यह भी कहा बीजेपी को हराने के लिए सबको एक साथ आना होगा। उन्होंने कहा, "जब हम सभी एकजुट होंगे और जीतेंगे,  उस समय (संयुक्त विपक्ष) तय करेंगे कि देश का नेतृत्व करने और एकजुट करने के लिए सबसे योग्य व्यक्ति कौन है।"
फारुख अबदुल्ला इससे पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होकर उनको भी समर्थन दे चुके हैं। यात्रा में शामिल होने के दौरान उन्होंने राहुल गांधी की खूब तारीफ की थी, और अपने पुराने दिनों को भी याद किया था। 
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। बीजेपी जहां अगला चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है, विपक्ष कैसे भी करके बीजेपी को तीसरी बार सरकार बनाने से रोकना चाह रहा है।
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इसके लिए हर कोई अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है। ऐसा ही एक प्रयास हुआ देश के दक्षिणी छोर तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में। मौका था तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के जन्मदिन का। स्टालिन ने अपने जन्मदिन के मौके पर एक रैली का आयोजन किया गया, जिसमें उन्होंने देशभर के विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया था।
यह पहली बार है जब एमके स्टालिन का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे बढ़ाया गया हो। इससे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर इस मुहिम में लगे हुए थे, जबकि वे खुद को इस पद के दावेदार के रुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। जबकि, स्टालिन के नाम को आगे कर फारूख अब्दुल्ला ने विपक्षी एकता को नए सिरे से हवा दी है।
फारुख अबदुल्ला द्वारा स्टालिन का नाम आगे बढ़ाये जाने के बाद दक्षिण भारत से दो नेता हो गये हैं जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। इससे पहले केसीआर ही एस मुहिम में लगे हुए थे। इसके लिए सबसे पहले तो उन्होंने पार्टी का नाम बदलने के बाद आयोजित पहली रैली में देशभर के नेताओं को आंमत्रित किया। उसके बाद अलग-अलग नेताओं से मुलाकात करनी शुरु की।  
इससे पहले जो संयुक्त विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार माने जा रहे थे उसमें केसीआर के अलावा ममता बनर्जी, नीतिश कुमार प्रमुख हैं। लेकिन ममता बनर्जी फिलहाल इस मामले में शांत हैं, उनकी तरफ से ऐसे किसी गठबंध में जाने की संभावनाएं भी नहीं जताई हैं।
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बीते सोमवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद से विपक्षी एकता की बात जोर-शोर से उठाई जा रही है। विपक्षी एकता के अभी तक के प्रयासों में क्षेत्रीय दलों के नेता ही सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं, जबकि सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी इस मसले पर शांत है। जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार विपक्षी एकता के प्रयास शुरु करने के लिए कांग्रेस को लगातार कहते रहे हैं। ज्ञात होकि बिहार सरकार चला रहे गठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस भी शामिल है।
किसी भी प्रकार के गठबंधन की संभावनाओँ के बीच कांग्रेस की तरफ से सिर्फ इतना कहा गया है कि समान विचारधारा वाले दलों को साथ आना चाहिए, और कांग्रेस इसके लिए कुर्बानी देने के लिए तैयार है, लेकिन जो भी गठबंधन होगा उसमें वह कांग्रेस के नेतृत्व में बनेगा।   
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क़मर वहीद नक़वी
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