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सिद्दीक कप्पन की जमानत फिर नामंजूर, आख़िर उनका गुनाह क्या है?

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पत्रकार सिद्दीक कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी है। उन पर हाथरस बलात्कार मामले के संबंध में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज है। 

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकल पीठ ने मंगलवार को मामले में अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था और इसने गुरुवार को यह निर्णय सुना दिया।

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दिल्ली के मलयाली पत्रकार कप्पन को अक्टूबर 2020 में एक दलित महिला की हत्या के बाद हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था। हाथरस में एक दलित युवती से चार सवर्णों ने कथित तौर पर गैंग रेप किया था और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी थी। इस पर विवाद तब और बढ़ गया था जब प्रशासन ने कथित रूप से अभिभावकों की सहमति के बिना ही लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया था। इसको लेकर प्रशासन की काफ़ी आलोचना हुई थी। इस बीच पुलिस ने कहा था कि उसने चार लोगों को मथुरा में पीएफ़आई के साथ कथित जुड़ाव के आरोप में गिरफ्तार किया और चारों की पहचान केरल के मालप्पुरम के सिद्दीक कप्पन, उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के अतीक-उर-रहमान, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के आलम के तौर पर हुई।

हाथरस की उस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस मामले में यूपी सरकार की किरकिरी हुई थी। इसके बाद यूपी सरकार ने कार्रवाई की और कहा कि सरकार को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी। इसी साज़िश में शामिल होने का आरोप कप्पन पर भी लगा।

उस घटना की रिपोर्टिंग पूरे देश में हो रही थी और पत्रकार सिद्दीक कप्पन भी कथित तौर पर उसकी रिपोर्टिंग करने जा रहे थे। लेकिन पुलिस ने उनको गिरफ़्तार कर लिया। उन पर यूएपीए के तहत और राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। कप्पन इस समय उत्तर प्रदेश की एक जेल में बंद हैं।

कप्पन की गिरफ़्तारी के क़रीब एक साल बाद इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। यूपी एसटीएफ़ की चार्जशीट में कहा गया था कि सिद्दीक कप्पन ने मुसलिमों को पीड़ित बताया, मुसलिमों को भड़काया, वामपंथियों व माओवादियों से सहानुभूति जताई।

2021 में सितंबर के आख़िर में दाखिल 5000 पन्ने की चार्जशीट में कप्पन द्वारा मलयालम मीडिया में लिखे गए उन 36 लेखों का हवाला दिया गया जो कोरोना संकट के बीच निजामुद्दीन मरकज, सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन, उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा, अयोध्या में राम मंदिर और राजद्रोह केस में जेल में बंद शरजील इमाम के आरोप-पत्र को लेकर लिखे गए थे।

'द इंडियन एक्सप्रेस' ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी थी कि एसटीएफ़ की चार्जशीट के नोट में निष्कर्ष निकाला गया, 'सिद्दीक कप्पन के उन लेखों को काफी हद तक सांप्रदायिक कहा जा सकता है। दंगों के दौरान अल्पसंख्यक का नाम लेना और उनसे जुड़ी घटनाओं के बारे में बात करना भावनाओं को भड़का सकता है। ज़िम्मेदार पत्रकार ऐसी सांप्रदायिक रिपोर्टिंग नहीं करते। कप्पन केवल और केवल मुसलमानों को उकसाने की रिपोर्ट करते हैं, जो कि पीएफ़आई का एक छिपा हुआ एजेंडा है। कुछ रिपोर्ट माओवादियों और कम्युनिस्टों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए लिखी गई थीं।'

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नोट में पुलिस का दावा था कि कप्पन ने पीएफ़आई के 'थिंक टैंक' के रूप में काम किया। यह भी आरोप लगाया गया था कि वह मलयालम मीडिया में 'हिंदू विरोधी' रिपोर्ट को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे थे और दिल्ली दंगों को भड़काने की योजना बना रहे थे। 

बता दें कि इस मामले में कप्पन को पिछले साल फरवरी में पाँच दिन की जमानत तब मिली थी जब उनकी माँ बहुत बीमार थीं। बाद में उनकी मां का निधन हो गया था। सुप्रीम कोर्ट ने वह जमानत इस शर्त के साथ दी थी कि केरल में वह मीडिया से बात नहीं कर सकते हैं और वह न तो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकते हैं और न ही रिश्तेदारों, डॉक्टरों और किसी से भी मिल सकते हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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