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क्या यूपी में मुख़्तार अंसारी के नाम पर फ़र्ज़ी मुठभेड़ हो रही हैं? 

ग़ाज़ीपुर सहित समूचा पूर्वांचल इन दिनों जिस गहरे आतंक में डूबा है, उससे लोग हैरान हैं। अकेले ग़ाज़ीपुर में 22 लोगों को 'गुंडा एक्ट' और 'गैंगस्टर एक्ट' में निरुद्ध किया गया है। इनमें ज़्यादातर सीएए विरोध वाले हैं। 'उप्र रिहाई मंच' के संयोजक राजीव यादव का मानना है 'अपराध के आँकड़े ज्यों-ज्यों बढ़ते जा रहे हैं, खिसियाई बिल्ली की तरह पुलिस निरपराध लोगों को जेल में डालकर 'खंभा नोंच अभियान' की इतिश्री कर रही है। सवाल उठता है कि योगी सरकार के अपने इस राजनीतिक क्रियाकलाप से राज्य को कहाँ तक सुधार सकेगी?'
अनिल शुक्ल
उत्तर प्रदेश सरकार के फ़र्जी मुठभेड़ में मारने की कार्रवाइयों पर दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के ठीक एक पखवाड़े बाद मऊ के रिटायर्ड फ़ौजी नायब सूबेदार बलदत्त पांडेय ने आरोप लगाया है कि मुठभेड़ के नाम पर एसटीएफ़ ने उनके निरपराध बेटे की ह्त्या की है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में बीते सप्ताह दायर याचिका में उन्होंने कहा है कि उनके बेटे के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला नहीं था, मुख़्तार अंसारी गैंग का शार्प शूटर बताकर उसे फ़र्जी मुठभेड़ में मार डाला गया।      

'ऑपरेशन मुख़्तार'

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के ज़िलों में इन दिनों त्राहिमाम-त्राहिमाम है। गैंगस्टर मुख़्तार अंसारी के नाम पर मऊ सहित अन्य ज़िलों में बड़े पैमाने पर चले पुलिस के 'ऑपरेशन मुख़्तार' ने आम लोगों का जीना दूभर कर रखा है। 8 अगस्त की देर रात मऊ के राकेश पांडेय नाम के जिस व्यक्ति को वाराणसी एसटीएफ़ ने लखनऊ में कथित मुठभेड़ में मार गिराया, वह लखनऊ के एक अस्पताल में ‘ब्रॉन्काइटिस’ के गंभीर रोग के चलते 5 दिन से भर्ती था। पुलिस ने पूर्वांचल में 'ऑपरेशन मुख्तार' के नाम पर बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियाँ भी की हैं।
पुलिस ने हाल में 'गैंगस्टर एक्ट', 'गुंडा एक्ट' और ‘संपत्ति ज़ब्ती कार्रवाई’ में जितने लोगों को निरुद्ध किया है, उनमें ज़्यादातर वे हैं, जो बीते दिसंबर में 'नागरिकता संशोधन क़ानून' (सीएए) में गिरफ़्तार किए गए थे और बाद में ज़मानत पर रिहा हुए थे।

फ़र्जी मुठभेड़?

मऊ ज़िले के लितारी भरौली गाँव के राकेश पांडेय उर्फ़ हनुमान पांडेय को 8-9 अगस्त की रात वाराणसी एसटीएफ़ ने लखनऊ में सरोजिनी नगर थाने के अंतर्गत कानपुर रोड पर मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था। एसटीएफ़ के लखनऊ रेंज के आईजी अमिताभ यश के मुताबिक़ राकेश पांडेय उर्फ़ हनुमान पांडेय 1993 से 2010 के बीच 10 आपराधिक मामलों में वांछित था। उस पर 1 लाख रुपये का इनाम घोषित था।
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एसटीएफ़ का कहना है कि राकेश पांडेय बीजेपी नेता कृष्णानद राय की हत्या में शामिल था। एसटीएफ़ की कहानी के अनुसार, राकेश अपने 4 अन्य साथियों सहित वारदात हेतु जा रहा था, फ़ोर्स के रोके जाने पर गैंग ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाब में एसटीएफ़ ने गोली चलाई, जिसमें राकेश घायल हो गया। अस्पताल पहुँचने पर उसे मृत घोषित कर दिया गया। उसके बाक़ी 4 साथी अँधेरे का लाभ उठा कर भागने में सफ़ल हो गए। पुलिस ने बिना नम्बर प्लेट की इनोवा गाड़ी बरामद कर ली है। 

मामला क्या है?

मऊ के बलदत्त पाण्डेय कहते हैं कि 9 अगस्त की सुबह-सुबह करीब 6 बजे सोकर उठा था, उसी वक़्त गाँव का एक लड़का आया और बोला मामा कुछ ख़बर मिली? हमने पूछा क्या? उसने कहा टीवी देखा? टीवी खोला तो देखा कि नीचे स्ट्रिप पर चल रहा है कि लखनऊ में कृष्णानंद के हत्यारे राकेश पाण्डे उर्फ हनुमान को एसटीएफ़ ने ढेर कर दिया, जिसके ऊपर एक लाख का ईनाम घोषित था। 
राकेश पांडेय के पुत्र आकाश पांडेय ने 'सत्य हिंदी' को बताया कि उनकी दादी को गेंग्रीन हो गया था। पिताजी उन्हें लेकर लखनऊ के केजीएमसी मेडिकल विश्वविद्द्यालय गए और 2 जुलाई को भर्ती करवाया। अगले दिन दादी का ऑपरेशन हुआ। वह वहीँ उनकी सेवा-सुश्रूषा करते रहे।

पुलिस पर आरोप

उन्होंने कहा, 'बाद में कानपुर से बुआ और गाँव से बड़े पिताजी आ गए। पिताजी को साँस की समस्या रहती थी। जब उनकी स्थिति ज़्यादा बिगड़ गयी तो वह 2 अगस्त को लखनऊ के ही श्री साईं हॉस्पिटल में दाखिल हो गए। 8 अगस्त की रात लगभग ढाई बजे वाराणसी एसटीएफ़ ने हॉस्पिटल पर धावा बोला और उन्हें उठा कर ले गए।' आकाश बताते हैं कि उनके पिता के पास गाँव के पड़ोसी का बेटा विशाल सेवा के लिए मौजूद था। एसटीएफ़ वालों ने न सिर्फ़ विशाल सहित मरीज़ों के सभी तीमारदारों को वार्ड से बाहर निकाल दिया बल्कि सभी के मेडिकल पर्चे वगैरा भी ज़ब्त कर लिए। 
आकाश पांडेय बताते हैं कि महीना भर पहले मऊ के थाना कोपागंज से एक एसआई और कुछ पुलिस वाले आये थे। पूछताछ की तो हमने बता दिया की वह दादी का इलाज करने केजीएमसी लखनऊ गए हैं। उन्होंने उनका फोटो माँगी थी। हमने दी। इसके 2 सप्ताह बाद पुलिस फिर आई। इस बार वह हमारे रिश्तेदारों का पता पूछते रहे। पूछने पर बताया कि चूंकि मम्मी के नाम शस्त्र लाइसेंस है इसलिए खानापूरी की जा रही है। हम यह नहीं समझ पाए की क्या षड्यंत्र चल रहा है। 
आकाश बताते हैं कि 2005 में मम्मी के नाम से शस्त्र लाइसेंस निर्गत हुआ था। इसके पहले भी लाइसेंस को ज़ब्त करने की कोशिश हुई। राकेश के ऊपर 1993 में एक और 2000 में दो केस दर्ज थे जो लाइसेंस जारी होने के वक़्त विचाराधीन नहीं थे। फिर भी एलआईयू की रिपोर्ट थी कि वे बंदूक लेकर गांव में घूमते हैं, दहशत फैलाते हैं, और 2010-11 तक लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था।
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गिरफ़्तार क्यों नहीं किया?

आकाश सवाल उठाते हैं कि उनके पिता का एनकाउंटर का वाराणसी एसटीएफ ने दावा किया है, जबकि वह पिछले एक महीने से लखनऊ में पीजीआई-केजीएमयू के चक्कर काटकर अपनी माता जी का इलाज करवा रहे थे। आखिर उनकी ऐसी ही तलाश थी तो लखनऊ एसटीएफ ने क्यों नहीं पकड़ लिया? वह तो लखनऊ में थे, उनके लिए आसान भी होता। राकेश के पिता बलदत्त का कहना है कि राकेश के ख़िलाफ़ कोई वारंट नहीं था। एफ़आईआर, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कुछ नहीं मिली। मानवाधिकार के तहत हमको लाश मिलनी चाहिए थी, पर वह भी नहीं मिली। कोई सूचना तक नहीं दी गई। 
मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए बलदत्त पूछते हैं कि यह कैसा एनकाउंटर, जिसमें एक आदमी मारा गया, चार आदमी भाग गए? ईनामी बदमाश की बात कर रहे हैं, क्या किसी पेपर में गजट हुआ है? कोई नोटिफिकेशन है या कोर्ट का आदेश जिसकी उन्होंने अवहेलना की? उनके ख़ि़लाफ़ ग़ैर जमानती वारंट था?

अस्पताल से उठा ले गए?

रात 11 बजे पिता से राकेश ने बात की थी। रात के ढाई-तीन बजे के करीब कुछ लोग अस्पताल के उस कमरे से राकेश को उठा ले गए। उन लोगों ने कहा कि माताजी की तबीयत ख़राब हो गई, इसलिए उन्हें चलना होगा। उसके बाद एसटीएफ की दूसरी टीम आई जो राकेश को वहाँ न देखकर भौचक्की हुई और इधर-उधर फोन किया। तब आश्वस्त हुए की वह भागे नहींस एसटीएफ ने ही उठाया। एसटीएफ फिर आई और अबकी बार अस्पताल का डीवीआर, काग़ज़ात सब लेकर चले गए, जिससे राकेश के उठाए जाने का कोई सुबूत न मिले। वह बताते हैं कि पिस्टल जैसे असलहों से धमकाया गया। अस्पताल वालों को भी मार-पीट कर धमकाया कि राकेश के के बारे में कुछ भी नहीं बताना है। 
एक लाख के ईनामी बदमाश की कहानी को खारिज करते हुए परिजन कहते हैं कि उनको एफआईआर, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट यहाँ तक कि लाश तक नहीं मिली। 2 साल पहले वह मऊ से रिहा हुए थे। कृष्णानंद राय, मन्नासिंह मामलों से वह बरी हो गए थे। अपराधियों की जो सूची है उसमें भी उनका नाम नहीं है।

लाश नहीं दी?

आकाश कहते हैं कि जब मालूम चला कि पुलिस उनके पिता को मारने के बाद केजीएमसी पोस्टमॉर्टम के लिए ले आई है तो 2 बजे वे वहाँ पहुंचे। वहाँ से भैसा कुंड श्मशान घाट ले जाने की तैयारी पुलिस कर रही थी। एडिशनल एसपी समेत बहुत से लोग थे। एक केशरवानी एसओ थे जो सरोजिनी नगर के थे। कोतवाल ने गाड़ी में बैठा लिया। छह बजे वे भैसाकुंड पहुंचे। उनसे कई कागजों पर न चाहते हुए हस्ताक्षर करवाए गए। सात-साढ़े सात बजे के करीब दाह संस्कार करवा दिया। लाश काली प्लास्टिक में बंधी थी। राकेश के पिता कहते हैं कि वो लाश मांगते रहे पर उनको नहीं दी गई।
देखना होगा कि हाई कोर्ट में मृतक के पिता की याचिका क्या असर दिखाती है, लेकिन मऊ में 'ऑपरेशन मुख़्तार के नाम पर बड़े पैमाने पर हुई गिरफ़्तारियों ने लोगों को आतंकित कर दिया है। मऊ में 5-6 लोगों के ज़िलाबदर की सूचना है। सीएए विरोध के नाम पर दिसंबर में जो गिरफ्तारी हुई थी और बाद में वे ज़मानत पर रिहा हुए थे, ज्यादातर पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है।
आसिफ चंदन, मेजर मजहर, अल्तमस ऐसे बहुत से नाम हैं जिनके सामाजिक-राजनीतिक कार्य हैं, जिनपर गैंगेस्टर लगाया गया है। जिनमें कई जेल में हैं। एक और हास्यास्पद बात है कि सीएए प्रकरण में एडवोकेट दरोगा सिंह ने कई लड़कों को थाने में हाज़िर करवाया था, जिसको पुलिस ने अलग जगह से पकड़ने का दावा किया था। अब उक्त वकील को प्रशासन  ‘मुख़्तार  अंसारी के एडवोकेट' के रूप में पेश कर रहा है। 
ग़ाज़ीपुर के करीमुद्दीनपुर के नन्हे खाँ को  'मुख़्तार के आदमी' के बतौर गिरफ्तार करने की ख़बर मीडिया में आई है। उनके ऊपर नदी की ज़मीन पर कब्जा और मगई नदी पर उनके द्वारा बनाए जा रहे पुल को जेसीबी से ढहाने की खबरें आम हुई हैं। सवाल है कि कैसे कोई पुल बनाकर जमीन कब्जा करेगा? क्या सिर्फ वह अपने लिए पुल बनवा रहे थे? वस्तुतः लगातार मांग होने और सरकार द्वारा उसे पूरा न होने पर ऐसे प्रयास नदी किनारे के लोग करते रहते हैं।
ग़ाज़ीपुर सहित समूचा पूर्वांचल इन दिनों जिस गहरे आतंक में डूबा है, उससे लोग हैरान हैं। अकेले ग़ाज़ीपुर में 22 लोगों को 'गुंडा एक्ट' और 'गैंगस्टर एक्ट' में निरुद्ध किया गया है। इनमें ज़्यादातर सीएए विरोध वाले हैं। 'उप्र रिहाई मंच' के संयोजक राजीव यादव का मानना है 'अपराध के आंकड़े ज्यों-ज्यों बढ़ते जा रहे हैं, खिसियाई बिल्ली की तरह पुलिस निरपराध लोगों को जेल में डालकर 'खंभा नोंच अभियान' की इतिश्री कर रही है। सवाल उठता है कि योगी सरकार के अपने इस राजनीतिक क्रियाकलाप से राज्य को कहाँ तक सुधार सकेगी?'
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