सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन के श्री बाँके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 पर उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। कोर्ट ने सरकार के 'जल्दबाजी' और 'चोरी छिपे तरीके' तरीक़े से मंदिर प्रबंधन को नियंत्रित करने के फ़ैसले पर सवाल उठाए। इसके साथ ही कॉरिडोर विकास के लिए मंदिर के पैसे के उपयोग की अनुमति को वापस लेने का प्रस्ताव दिया। कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन के लिए एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में समिति गठन का सुझाव भी दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार जिस श्री बाँके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 को लागू कर रही है वह अध्यादेश मंदिर के प्रबंधन को राज्य के नियंत्रण में लाने का प्रावधान करता है। कोर्ट ने सरकार के इस कदम को 'चोरी छिपे तरीके' से लिया गया निर्णय करार देते हुए नाराजगी जताई और 15 मई 2025 के उस फैसले को वापस लेने का प्रस्ताव रखा, जिसमें सरकार को मंदिर की निधि का उपयोग कॉरिडोर विकास के लिए करने की अनुमति दी गई थी।
ताज़ा ख़बरें
वृंदावन का श्री बाँके बिहारी जी मंदिर 1200 वर्ग फीट में फैला है। यहाँ रोजाना करीब 50,000 श्रद्धालु पहुँचते हैं। वीकेंड और त्योहारों के दौरान यह संख्या 1.5 से 2 लाख तक पहुंच जाती है, जबकि विशेष अवसरों पर 5 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की भीड़ और बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण 2022 में एक भगदड़ की घटना भी हुई थी, जिसके बाद मंदिर के प्रबंधन और सुविधाओं को बेहतर करने की मांग उठी।

मंदिर के फंड पर यूपी ने क्या कहा था?

इसी संदर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार ने मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट से अनुमति प्राप्त की थी कि मंदिर की निधि से 500 करोड़ रुपये का उपयोग कर 5 एकड़ जमीन खरीदी जाए, जिसका इस्तेमाल बाँके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के विकास के लिए किया जाएगा। इस कॉरिडोर में पार्किंग, श्रद्धालुओं के लिए आवास, शौचालय, सुरक्षा चौकियाँ और अन्य सुविधाएँ विकसित करने की योजना है। कोर्ट ने यह शर्त रखी थी कि खरीदी गई जमीन मंदिर या भगवान के नाम पर पंजीकृत होगी।
हालाँकि, मंदिर प्रबंधन समिति और सेवायकों ने इस फैसले का विरोध किया, क्योंकि उन्हें इस मामले में पक्ष रखने का मौक़ा नहीं दिया गया था। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने 'श्री बाँके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025' जारी किया, जिसके तहत मंदिर का प्रबंधन 'श्री बाँके बिहारी मंदिर न्यास' के पास होगा। इस न्यास में 11 ट्रस्टी होंगे, जिनमें अधिकतम 7 सरकारी अधिकारी होंगे और सभी सदस्य सनातन धर्म के अनुयायी होंगे।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सोमवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाला बागची की पीठ ने मंदिर प्रबंधन समिति की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें इस अध्यादेश को असंवैधानिक और दुर्भावनापूर्ण करार दिया गया। मंदिर प्रबंधन की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान और कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह मंदिर निजी है और इसे स्वामी हरिदास जी के उत्तराधिकारियों द्वारा प्रबंधित किया जाता रहा है। उन्होंने 15 मई के फ़ैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह एक निजी विवाद में पारित किया गया था, जिसमें मंदिर प्रबंधन को सुना नहीं गया।

जस्टिस सूर्यकांत ने सरकार से पूछा, 'आपने इतनी जल्दबाजी में यह अध्यादेश क्यों जारी किया? यह चोरी छिपे तरीके से क्यों किया गया?' कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि सरकार ने एक निजी विवाद में हस्तक्षेप कर मंदिर की निधि के उपयोग की अनुमति प्राप्त की, जो सही नहीं था। कोर्ट ने सुझाव दिया कि 15 मई के फ़ैसले को वापस लिया जा सकता है और मंदिर के प्रबंधन के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित की जा सकती है, जिसकी अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज करें।
उत्तर प्रदेश से और खबरें

बाँके बिहारी मंदिर प्रबंधन का पक्ष

मंदिर की 350 सदस्यीय प्रबंधन समिति और सेवायत राजत गोस्वामी ने याचिका में कहा कि सरकार का यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 213 और 300A का उल्लंघन करता है। उनका दावा है कि यह मंदिर निजी है और 1939 में स्थापित प्रबंधन योजना के तहत संचालित होता है। उन्होंने सरकार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित एक जनहित याचिका के परिणाम को प्रभावित करने का आरोप लगाया। याचिका में कहा गया कि 8 नवंबर 2023 को हाई कोर्ट ने मंदिर की निधि का उपयोग जमीन खरीदने के लिए करने से मना कर दिया था, जिसके ख़िलाफ़ सरकार ने कोई अपील नहीं की, बल्कि एक बिना जुड़े मामले में हस्तक्षेप कर सुप्रीम कोर्ट से अनुमति प्राप्त की।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि सरकार निजी मंदिर के प्रबंधन को अपने नियंत्रण में नहीं ले सकती। उन्होंने कहा कि देश में तिरुपति और वैष्णो देवी जैसे मंदिरों का प्रबंधन सरकार के पास है, लेकिन बाँके बिहारी मंदिर निजी है और इसका प्रबंधन गोस्वामी परिवार के पास रहा है।

सरकार का पक्ष

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने तर्क दिया कि अध्यादेश का उद्देश्य मंदिर के विकास और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए है। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा मंदिर की निधि को हड़पने की नहीं है, बल्कि यह कॉरिडोर परियोजना के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए है। सरकार ने यह भी कहा कि मंदिर में भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा के लिए यह क़दम ज़रूरी है।

कोर्ट की टिप्पणियां और प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हस्तक्षेप को 'निजी विवाद को हाईजैक करने' के रूप में देखा और कहा कि यह क़ानून के शासन के ख़िलाफ़ है। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि सरकार ने देश भर में कितने मंदिरों का प्रबंधन क़ानून के ज़रिए अपने हाथ में लिया है। जब याचिकाकर्ताओं ने बताया कि यह मंदिर निजी है, तो कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि 'क्या कोई मंदिर भी निजी हो सकता है?'

कोर्ट ने यह भी प्रस्ताव दिया कि मंदिर के प्रबंधन की जटिलताओं को हल करने के लिए एक समिति गठित की जाए, जिसमें एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज शामिल हों। इस समिति का काम अध्यादेश की वैधता पर फ़ैसला होने तक मंदिर का प्रबंधन देखना होगा। कोर्ट ने सुनवाई को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया, ताकि सरकार इस प्रस्ताव पर निर्देश ले सके।
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख

इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 21 जुलाई को एमिकस क्यूरी संजय गोस्वामी की टिप्पणियों के आधार पर सरकार से जवाब मांगा था। गोस्वामी ने कहा था कि बाँके बिहारी मंदिर निजी है और इसका प्रबंधन स्वामी हरिदास जी के उत्तराधिकारियों द्वारा किया जाता है। उन्होंने अध्यादेश को 'पिछले दरवाजे से प्रवेश' और हिंदुओं के अधिकारों पर अतिक्रमण करार दिया। हाई कोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने टिप्पणी की थी कि सरकार को धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए और मंदिर के आंतरिक प्रबंधन में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई ने बाँके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और निधि के उपयोग को लेकर एक अहम बहस को जन्म दिया है। कोर्ट का यह रुख कि सरकार को निजी धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, संवैधानिक स्वतंत्रता और धार्मिक स्वायत्तता के सवालों को उजागर करता है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि उसका उद्देश्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करना है। इस मामले का अगला चरण मंगलवार को होने वाली सुनवाई में साफ़ होगा, जब कोर्ट सरकार के जवाब और प्रस्तावित समिति के गठन पर विचार करेगा।