यूपी सरकार ने सिपाही भर्ती के आवेदन 17 जनवरी तक मांगे थे। जो आंकड़े अभी तक सामने आए हैं, उसके मुताबिक 1 सिपाही की पोस्ट के 83 दावेदार हैं। करीब 15 लाख महिलाओं ने भी आवेदन किया है। हालांकि महिला सिपाहियों के लिए कुल 12 हजार पद हैं। इस तरह महिला सिपाही के एक पद के लिए 125 दावेदार हैं।
यूपी भर्ती बोर्ड ने अंदाजा लगाया था कि करीब 32 लाख आवेदन आ सकते है और एक या दो पाली में लिखित परीक्षा करा दी जाएगी लेकिन अब कम से कम दो दिनों तक चार पालियों में परीक्षा कराना पड़ेगी।
यूपी में इतनी बड़ी तादाद में सिपाही भर्ती के लिए आवेदनों का आना बताता है कि राज्य में बेरोजगारी दर घटने के दावों में दम नहीं है। भारत में रोजगार पर मासिक और त्रैमासिक डेटा जारी करने वाले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार मार्च 2017 में बेरोजगारी दर 2.4 प्रतिशत थी, जब योगी ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था।
हालांकि वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के मुताबिक यूपी में 2017-2018 में बेरोजगारी दर 6.2 प्रतिशत थी। सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में बेरोजगारी दर 18 प्रतिशत तक पहुंच गई है, लेकिन यह जून 2016 में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार के तहत और योगी के सत्ता में आने से कुछ महीने पहले थी। मार्च 2017 में जब भाजपा ने यूपी की सत्ता संभाली तो यह दर 2.4 फीसदी थी। यानी योगी आदित्यनाथ को विरासत में 2.4 फीसदी बेरोजगारी दर मिली थी।
यूपी में मौजूदा सिपाही भर्ती प्रक्रिया अगले साल तक चलेगी। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान इसकी वेकैंसी निकलना और आवेदन मांगा जाना, भी सवाल खड़े कर रहा है। जिस तरह से यूपी में भाजपा सरकार द्वारा रोजगार देने को उछाला जा रहा है, उसकी वास्तविकता यही है कि सिपाहियों की भर्ती अगले साल होगी, लेकिन अभी प्रचार जमकर हो रहा है। इस बीच अगर मामला किसी अदालत में नहीं जाता है या परीक्षा होने के बाद अदालत में जाता है तो भी सिपाहियों की भर्ती लंबे समय तक लटकी रहेगी। क्योंकि राज्य में सरकारी नौकरियों की कई प्रतियोगी परीक्षाएं हुईं लेकिन पर्चा लीक हो जाने या मामला कोर्ट में जाने पर सारी नियुक्ति प्रक्रिया अभी तक रुकी हुई है।