उत्तराखंड में त्रिपुरा के एमबीए छात्र अंजेल चकमा की नस्लीय हमले में हत्या के बाद, एनएचआरसी ने देहरादून के डीएम और एसएसपी को नोटिस जारी किया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की देर से आई प्रतिक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।
त्रिपुरा के छात्र अंजेल चकमा की देहरादून में हत्या पर देश के कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में त्रिपुरा के एक छात्र की नस्ली हमले में मौत के मामले ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लिया है। 24 वर्षीय एमबीए छात्र अंजेल चकमा, जो एक निजी विश्वविद्यालय में अंतिम वर्ष के छात्र थे, 9 दिसंबर 2025 को कुछ युवकों द्वारा चाकू और ब्रेसलेट से हमला किया गया था। 17 दिनों तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद 26 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।
उनके पिता, जो बीएसएफ जवान हैं और मणिपुर के तंगजेंग में तैनात हैं, ने आरोप लगाया कि हमला नस्ली आधार पर हुआ था। हमलावरों ने उनके भाई पर नस्ली टिप्पणियां कीं, जैसे "चीनी और चिंकी" कहकर फब्तियां कसीं, और जब अंजेल ने कहा कि "वह भी भारतीय हैं, चीनी नहीं", तो उन पर चाकू और अन्य हथियारों से हमला किया गया।
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के तहत स्वत: संज्ञान लिया। आयोग ने देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को नोटिस जारी कर आरोपों की जांच करने और सात दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। साथ ही, उत्तराखंड के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को मामले की प्रक्रिया की प्रति भेजने और पूरे राज्य में पूर्वोत्तर क्षेत्र के छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के आदेश दिए गए। एनएचआरसी ने कहा कि आरोप प्रथम दृष्टया पीड़ित के जीवन, गरिमा और समानता के अधिकार का उल्लंघन प्रतीत होते हैं।
इस घटना ने देशभर में आक्रोश पैदा कर दिया है। देहरादून के गांधी पार्क में 29 दिसंबर को छात्र संगठनों और स्थानीय लोगों ने कैंडललाइट मार्च निकाला, जबकि त्रिपुरा में भी विरोध प्रदर्शन हुए। एक आदिवासी संगठन ने मामले की सुनवाई उत्तराखंड के बाहर कराने की मांग की है। राजनीतिक दलों के नेता भी इस पर एकजुट दिखे, और पूर्वोत्तर राज्यों में नफरत की अपराधों को रोकने के लिए व्यापक प्रयासों की मांग की गई।
घटना के बाद जब छात्र की मौत हो गई तो उत्तराखंड सरकार हरकत में आई। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 29 दिसंबर को पीड़ित के पिता से बात की और आरोपियों को कड़ी सजा देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि यह घटना "बेहद दर्दनाक और दुखद" है, और राज्य सरकार परिवार को न्याय दिलाएगी। पांच आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं, जबकि छठे की तलाश जारी है। हालांकि, सीएम धामी की प्रतिक्रिया में देरी पर सवाल उठ रहे हैं। घटना 9 दिसंबर को हुई थी, लेकिन मौत 26 दिसंबर को होने के बाद ही 29 दिसंबर को उन्होंने पीड़ित परिवार से संपर्क किया।
इस देरी के पीछे संभावित कारण राजनीतिक व्यस्तताएं या तथ्यों की प्रतीक्षा हो सकती है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि शुरुआती हमले के समय ही हस्तक्षेप से स्थिति नियंत्रित की जा सकती थी। पुलिस ने मामले में जमकर लीपापोती की। उसने अंजेल चकमा पर हमले को नशे से जोड़ा। यह भी कहा कि नस्ली टिप्पणियां नहीं हुईं। लेकिन परिवार ने पुलिस की बातों का खंडन किया। अंजेल के पिता और भाई ने कहा कि नस्ली टिप्पणियां की गईं। यह पूरी तरह नस्लीय हमला था। सीएम की देरी से प्रतिक्रिया पूर्वोत्तर समुदाय में असुरक्षा की भावना को बढ़ा रही है, खासकर जब उत्तराखंड में ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। आलोचकों का मानना है कि धामी सरकार की प्राथमिकताएं स्थानीय राजनीति पर केंद्रित हैं, और अल्पसंख्यक सुरक्षा पर कम ध्यान दिया जा रहा है।
उत्तराखंड में पूर्वोत्तर युवाओं और अल्पसंख्यकों पर खतरे की जांच से पता चलता है कि यह समस्या गहरी जड़ें रखती है। मुख्य कारणों में कट्टरता, अपने धर्म को सर्वोच्च मानना, सामाजिक प्रोफाइलिंग, अवसरों की असमानता, राज्य सरकार की उदासीनता और मानसिकता की समस्या शामिल हैं। पूर्वोत्तर के लोगों को अक्सर "चीनी" या "मोमो" जैसे नस्ली शब्दों से पुकारा जाता है, जो अज्ञानता और स्टीरियोटाइपिंग से पैदा है। कोरोना के साथ यह भेदभाव में बदला और अब उन्हें हिन्दू कट्टरपंथी मुस्लिमों की तर्ज पर देवभूमि के लिए "खतरा" माना गया।
देहरादून जैसे शिक्षा केंद्रों में पूर्वोत्तर के छात्र और आसपास के मुस्लिम छात्र बड़ी संख्या में आते हैं, लेकिन स्थानीय गुंडों या राजनीतिक तत्वों द्वारा उन्हें निशाना बनाया जाता है।
भारत में नस्लवाद विरोधी सख्त कानून की कमी ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रही है। बीजेपी शासित राज्य में सरकार की उदासीनता से अल्पसंख्यक, आदिवासी, दलित असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। पिछली जितनी भी ऐसी घटनाएं हुई हैं, उनमें सरकार ने सख्त कार्रवाई नहीं की। उत्तराखंड के कई शहरों और कस्बों से मुस्लिम कारोबारियों के खिलाफ अभियान छेड़ा गया, सरकार ने एक भी घटना में उग्र कट्टर और धर्मांध समूहों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। उसी का नतीजा है कि वही असामाजिक तत्व अब पूर्वोत्तर के युवकों को निशाना बना रहे हैं।