'हिंदुत्व और राष्ट्रवाद' के भरोसे कब तक रहेंगे मोदी-शाह?
दिल्ली के चुनाव में क्या होगा? क्या झारखंड की तरह ही नतीजे आएँगे? सीएसडीएस के सर्वे में साफ़ संकेत हैं कि झारखंड में 'हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी' मुद्दे नहीं चले। तो क्या दिल्ली में ये चल पाएँगे? क्या मोदी-शाह रणनीति बदलेंगे?