बीते 26 दिसंबर को भारत के 13वें प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की पुण्य तिथि थी. पूर्वप्रधानमंत्री स्व.मनमोहन सिंह को याद करते हुए एक पुरानी घटना याद आ गई. 2012 के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का मजाक उड़ातेहुए उन्हें ‘मौन’ मोहन सिंह कहा था. मोदी ने डॉ सिंह पर आरोप लगाया कि वो महंगाईऔर बेरोजगारी के मुद्दों पर मौन रहते हैं कुछ बोलते नहीं. उन्होंने कहा, “पिछले सप्ताह सोनिया जी और प्रधानमंत्री हिमाचल दौरे पर आए, मुझे खुशी होती अगर दोनों बढ़ती महंगाई और गरीबों के लिए अपनी चिंताव्यक्त करते. लेकिन एक बार भी इस पर चर्चा नहीं की.” नरेंद्र मोदी ने मजाक उड़ातेहुए यह भी कहा “यह पता लगा पाना कठिन है कि देश के हालात पर पीएम क्या सोचते हैं”.
उस समय नरेंद्र मोदी को यह वहम हो गया था कि वो हर मुद्दे पर खुलके बोलते हैं, बेबाकी से अपनी राय रखते हैं लेकिन पीएम मनमोहन सिंह ज्यादातर मुद्दों पर चुप रहते हैं. जबकि सच यह है कि पीएम मनमोहन सिंह नेअपने 10 साल के कार्यकाल में सैकड़ों बार प्रेस को संबोधित किया उनसे बात की प्रेस के सवालों का खुलकर जवाब दिया, लेकिन ख़ुद को बेबाक राय का मसीहा मानने वाले मोदी ने 11 साल के अपने प्रधानमन्त्री कार्यकाल में एक प्रेस कांफ्रेंस भी ढंगसे नहीं की है. तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने बतायाकि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 के बीच 117 बार प्रेसवार्ता की जबकि मोदी एक भी नहीं कर सके.
स्वर्गीय मनमोहन सिंह के पास न छिपाने के लिए कुछ था और न ही गोल गोल घुमाने के लिए. जबकि पीएम नरेंद्र मोदी का कार्यकाल अंधकार का युग है यहाँ सरकारी कुप्रबंधनों और अनदेखी की श्रृंखला कहीं टूटती ही नहीं. इसलिए पीएम मोदी मीडिया के सामने आकर खुलके सवालों का जवाब देने से कतराते हैं. मोदी छिपे रहते हैं और सिर्फ़उन लोगों के सामने आते हैं जो उनसे सवाल नहीं करते. वो डरते हैं कि कहीं किसी नेयह पूछ किया कि बिलकिस बानो का बलात्कार करने वालों और उसकी दो महीने की बच्ची को पटककर मारने वालों को गुजरात बीजेपी सरकार ने क्यों छोड़ा? वे कौन लोग हैं, उनका बीजेपी से क्या नाता है जिन्होंने इन 11 हत्यारों और बलात्कारियों को जेल से बाहर आते ही फूल माला पहनाई और मिठाइयाँ बाँटी? अगर पूछ लिया कि जिस योगी आदित्यनाथ की पीठ थपथपाते हुए मोदी थकते नहीं वो सरकार गोमांस के झूठे आरोप में अख़लाक़ की लिंचिंग करने वालों को जेल सेक्यों छुड़वा रही है? 
ताज़ा ख़बरें
इन सभी बातों का पीएम मोदी के पास कोई जवाब नहीं है इसलिए वो मीडिया की आलोचनात्मक दृष्टि सेभाग खड़े होते हैं और देश के सबसे ज़रूरी मुद्दों पर चुप्पी साधकर बैठे रहते हैं. पीएम मोदी असल में ‘मौन-वादी’ प्रधानमंत्री हैं जिन्हें भारत का मौन-प्रमुख कहा जासकता है. न जाने उनकी आवाज़ सिर्फ़ तब क्यों निकलती है जब नेहरू को अपमानित करना होता है, उनकी आवाज़ तब भी निकलने लगती है जब अपनी पार्टी के परिवारवाद को माला पहनानी होती है और विपक्षी दलों के परिवारवाद को जमकर कोसना होता है. वे तब भी बोलने लगते हैं जब ग़ैर-जरूरी मुद्दों को हवा में उछालना होता है, जब सांप्रदायिकता को पीएम की गरिमामयी कुर्सी से थाली में परोसना होता है. बाक़ी पूरे समय पीएम मोदी चुप्पी साधकर बैठे रहते हैं. 
मामला कोई भी हो-भारतके भीतर का या बाहर का-मोदी सिर्फ़ अपने कम्फर्ट जोन में ही बोलते पाये गए हैं कम्फ़र्टजोन से बाहर निकलकर उन्होंने कभी देश के ज़रूरी सवालों पर बोला नहीं, बस चुप ही रहे.नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमन्त्री की गरिमामयी कुर्सी पर बैठेलेकिन सत्ता पाने के बाद से भारत का लगभग हर पड़ोसी देश से बिगाड़ हो गया, पाकिस्तान के साथ उनकी शॉल और बिरयानी डिप्लोमेसी बुरी तरह फेल हो गई, चीन के साथ झूला डिप्लोमेसी ने दम तोड़ दिया, नेपाल के साथ ‘हिंदू-हिंदू भाई-भाई’ का पासा नहीं चल पाया, राम अयोध्या के और जानकी नेपाल की यह जुमला नेपाल के साथ विदेश नीतिमें काम नहीं आया, बांग्लादेश औरश्रीलंका, भारत की विदेश नीति के डिजास्टर साबित हुए, ‘माय फ्रेंड डोलैंड’ अमेरिका के साथ काम नहीं किया, ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ ने भारत के प्रधानमन्त्री के साख की नाक कटवाके रख दी, अनगिनत बार प्रेसिडेंट ट्रम्प ने भारत की संप्रभुता को ललकारा औरअपमानित किया, दक्षिण-दक्षिण का नेता बनने का सपना चूर-चूर होगया. 
जिन देशों का प्राकृतिक झुकाव भारत की ओर होता था वो भारत के करीब आने में हिचकनेलगे और ज़्यादा से ज़्यादा देश आतंक की पनाहगार बन चुके पाकिस्तान के साथ खड़े होते दिखाई दिए. भारत अकेला पड़ता गया. लेकिन पीएम मोदी, मौन रहे एक शब्द भी नहीं बोला.
इतने सम्मानित और बड़े देश के प्रधानमन्त्री का ऐसा होना दुख से भरा है, परेशानी का सबब है और इसको लेकर देश भर में चिंता भी है लेकिन यह भी सच है कि यह सब नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की विफलता ही है जिसकी वजह से भारत को इस कदर अपमानित होना पड़ रहा है.

भारत एक मजबूत देश है. विश्व चाहे या ना चाहे भारत की अर्थव्यवस्था कातेजी से बढ़ना तय है. पीएम मोदी की अनावश्यक चुप्पी की कीमत सिर्फ़ भारत की विदेशनीति ने ही नहीं चुकाई. इसकी कीमत सबसे ज़्यादा देश के वंचित वर्ग ने चुकाई है, मुख्यतया- महिलाएं, दलित औरअल्पसंख्यक. अख़लाक़ से लेकर अंकिता भंडारी तक देश में जो कुछ भी अविश्वास औरअसुरक्षा फैली है उसे लेकर पीएम मोदी की चुप्पी उन्हें पीएम के लिए अनफिट औरअयोग्य बनाती है.
बीते 25 दिसंबर को क्रिसमस के दौरान ईसाइयों पर हुए हमलों, मदर मेरी की तोड़ी गई मूर्तियों और चर्च के बाहर किए गए हुड़दंग पर पीएम मोदी के मौन ने पूरे भारत का सर दुनिया में शर्म से झुका दिया है. लेकिन पीएम मोदी देश के इस अपमान पर भी कुछ नहीं बोलेंगे. इसके अलावा हाल में दो ऐसे मामले हैं जिन पर पीएम मोदी की ‘मौन साधना’ ने देश में महिलाओं की आज़ादी को खतरे मेंडाल दिया है. बांगरमऊ (उन्नाव) से विधायक रहे कुलदीप सेंगर ने एक नाबालिग लड़की काबलात्कार किया, उसके पिता को जान से मार डाला, पीड़िता की गाड़ी पर ट्रक चढ़वा दिया जिससे उसके वकील और अन्य रिश्तेदार की मौत हो गई. 
यह अपराधी इतनी मजबूत स्थिति में था कि सत्ता और शासन इसके पैरों में ऐसे लोट रहे थे. जब तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश नहीं दिया तब तक पुलिस की हिम्मत ही नहीं हुई कि इस आदमी के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कर सके. किसी तरह कुलदीप सेंगर अपराधी साबित हुआ और इसे उम्रकैद की सजा हुई. लेकिन हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस अपराधी की सजा ऐसे तकनीकी ग्राउंड पर सस्पेंड कर दी जिसका विरोध किया जाना चाहिए था. लेकिन पता नहीं क्यों सीबीआई, जो कि गृहमंत्रालय के अंतर्गत काम करती है उसने सजा सस्पेंड किए जाने का विरोध ही नहीं किया. पूरे देश में शोर मच गया. पीड़िता ने इंडिया गेट पर धरना दिया तो पुलिस ने उसके साथ असभ्य व्यवहार किया. इस पूरे समय पीएम मोदी चुप रहे, उनकी सरकार चुप रही. 
जब पीड़िता को राहुल गांधी ने मिलने को बुलाया और न्याय दिलाने के लिए साथ लड़ने का वादा किया तो मोदी सरकार हिल गई. अचानक उसी सीबीआई को याद आया कि उच्च न्यायालय का फ़ैसला ‘विकृत’ है और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी. ऐसे ही उत्तराखंड में नाबालिग अंकिता भंडारी का बलात्कार किया गया और 2022 में उसकी हत्या कर दी गई. अब उसकी हत्या में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव का नाम सामने आ रहा है लेकिन पीएम मोदी चुप हैं कुछ बोल नहीं रहे हैं.बीजेपी की ही एक महिला नेता आरोप लगा रही हैं कि बीजेपी के बड़े नेता इसमें शामिल हैं और मुख्यमंत्री उन्हें बचा रहे हैं. 
यही हाल हाथरस कांड में हुआ जहाँ राज्य प्रशासन अपराधियों को बचाने में लगा था. ऐसे ख़तरनाक़ और महत्वपूर्ण घटनाक्रम के दौरान पीएम मोदी के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकलता. वे एक बार भी नहीं कहते कि नेता चाहे उनकी पार्टी का हो, या विपक्ष का, अपराधी सामान्यआपराधिक नेचर का हो या सामान्य नागरिक या अधिकारी, या फिर कोई बाहुबली, किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं छोड़ा जाएगा जिसका नाम महिलाओं के बलात्कार, शोषण और हत्या में आयेगा.
हम जिस किस्म का चरित्र और व्यवहार बीजेपी का देख रहे हैं उससे यह बात साफ़ हो जाती है कि महिलाओं के बलात्कार और यौन उत्पीड़न को लेकर न तो पीएम मोदी गंभीर हैं न ही बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री. बीजेपी के नेता गुंडों की तरह खुलेआम महिलाओं को धमका रहे हैं लेकिन शासन चुप है. सेना की वरिष्ठ अधिकारी सोफिया कुरैशी को बीजेपी के मंत्री विजय शाह खुले आम भला बुरा कहते हैं और पूरीबीजेपी न सिर्फ़ चुप रहती है बल्कि मंत्री जी के ख़िलाफ़ FIR का आदेश देने वाले उच्च न्यायालय के जज को दण्डस्वरूप दूसरे उच्च न्यायालय भेज दिया जाता है. ऐसे में बीजेपी सरकार और नरेंद्र मोदी के जेश्चर का क्या मतलब निकाला जाये? क्या इसका मतलब यह है कि बीजेपी में महिलाओं के ख़िलाफ़अपराध को लेकर खुली छूट है? या फिर साफ़ साफ़ उनकी विचारधारा में यह बात लिखी गयी है कि महिला शोषण और महिला अपराधों को गंभीरता से नहीं लेना है इसलिए अपराधियों को बचाने का फ़ैसला किया गया है?
बिलकिस बानो हो या अंकिता भंडारी या उन्नाव की लड़की किसी भी मामले में पीएम मोदी ने कुछ नहीं कहा, उनकी चुप्पी चीख चीख कर बता रही है कि भारत की मोदी सरकार, महिला अपराधों को लेकर एक नए दौर में है जहाँ सरकार से जुड़ा हुआ नेता खुलकर यौन उत्पीड़न करेगा, लोकल प्रशासन उसे गिरफ्तार करने से डरेगा और राज्य न्यायालय में पीड़िता का केस कमजोर करने की कोशिश की जाएगी. अपराधी को पता होता है कि सरकार उसे बचा लेगी. और अपराधी बच जायेगा, वह पीड़ित को कहीं का नहीं छोड़ेगा.

जिस तरह बृजभूषण शरण सिंह ने कुलदीप सेंगर की सजा सस्पेंड होने कोलेकर बधाई दी और स्वागत किया उससे लगता है कि महिला सुरक्षा की ताबूत में आख़िरी कील ठोंक दी गई है. बृजभूषण पर ख़ुद महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न का आरोपथा लेकिन जिस तरह पीएम ने चुप्पी साधी, महिलाओं का साथ नहीं दिया उनका हौसला टूटगया.
विमर्श से और खबरें
सोचकर देखिए, उस व्यक्ति को देश का नेता मानना कितना अन्यायपूर्ण होगा जो देश के कमजोर वर्ग के साथ खड़ा ही नहीं हो सकता, वो उन लोगों कीआवाज़ नहीं बन सकता जिन्हें परेशान किया जा रहा हो, वो देश के वंचित वर्ग को जीवन का अधिकार सुनिश्चित नहीं होने देता. उसे नायक कैसे कहेंगे, जो सिर्फ़ बहुसंख्यकों के साथ खड़ा रहे और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ होरहे अत्याचारों पर मौन वादी बना रहे, जो महिलाओं केलिए सुरक्षित वातावरण का इंतज़ाम ना कर सके, वह देश का नेता नहीं कहा जा सकता है.
पीएम मोदी ने देश में असफलताओं के कई स्मारक बनवायें हैं जिसमें ‘महिला असुरक्षा’ और अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा अत्याचार सबसे प्रमुख हैं. इन स्मारकों में चार चाँद लगाती है हर जरूरी मुद्दे पर पीएम मोदी की अनंत काल तक चुप्पी. मैं समझती हूँ कि वाक़ई “यह पता लगा पाना कठिन है कि देश के हालात पर पीएम क्या सोचते हैं”.