हिंदू समाज के लिए उसके इतिहास का सबसे संकटपूर्ण क्षण है। यह भी कहा जा सकता है कि यह उसका सबसे संघर्षपूर्ण क्षण है।हिंदू ख़ुद सभ्य समाज के रूप में बचाए रखने की जुगत तलाश रहे हैं।कोई भी समाज एक स्वर में कभी नहीं बोलता, वह संगठित नहीं होता। उसका कोई एक प्रतिनिधि नहीं होता। हिंदुओं में भी अगर बिखराव है तो स्वाभाविक ही है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि संगठित तौर पर उसका गुंडाकरण किया जा रहा है।