मोहनदास करमचंद गांधी किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर न थे।न जवाहरलाल नेहरू। न ही भीमराव अंबेडकर। बालगंगाधर तिलक भी कहीं नहीं पढ़ाते थे।गोखले भी नहीं।पेरियार साहब भी अध्यापक न थे।लेकिन विश्वविद्यालयों, स्कूलों में गांधीवादी, अम्बेडकरवादी या पेरियार के अनुयायी अनेक थे।शिक्षक भी और छात्र भी। अगर भारत से बाहर निगाह ले जाएँ तो सिमोन द बुआ की ख्याति अध्यापिका की नहीं थी।मार्क्स का जीवन पुस्तकालयों में ज़रूर बीता लेकिन अध्यापक वे न बन पाए।लेनिन कहीं पढ़ाते नहीं थे। हो ची मिन्ह भी नहीं और न मार्टिन लूथर किंग या नेल्सन मांडेला। चारु मजूमदार भी बंगाल के किसी कॉलेज में न थे।